
Aughad
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Aughad |
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Author: | ||
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Language: | English Hindi Bengali | |
Pages: | 235 | |
Price | [price_with_discount] |
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brand | eBook, Paperback | |
Generic Name : | book | |
Dimensions : | 8.00 X 5.00 inch | |
Item Weight: | 399 g | |
Country of Origin: | India | |
list price | 197.00 sale price: 197.00 | |
Keywords | #Aughad |
‘औघड़’ भारतीय ग्रामीण जीवन और परिवेश की जटिलता पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें अपने समय के भारतीय ग्रामीण-कस्बाई समाज और राजनीति की गहरी पड़ताल की गई है। एक युवा लेखक द्वारा इसमें उन पहलुओं पर बहुत बेबाकी से कलम चलाया गया है जिन पर पिछले दशक के लेखन में युवाओं की ओर से कम ही लिखा गया। ‘औघड़’ नई सदी के गाँव को नई पीढ़ी के नजरिये से देखने का गहरा प्रयास है। महानगरों में निवासते हुए ग्रामीण जीवन की ऊपरी सतह को उभारने और भदेस का छौंका मारकर लिखने की चालू शैली से अलग, ‘औघड़’ गाँव पर गाँव में रहकर, गाँव का होकर लिखा गया उपन्यास है। ग्रामीण जीवन की कई परतों की तह उघाड़ता यह उपन्यास पाठकों के समक्ष कई विमर्श भी प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में भारतीय ग्राम्य व्यवस्था के सामाजिक-राजनितिक ढाँचे की विसंगतियों को बेहद ह तरीके से उजागर किया गया है। ‘औघड़’ धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, महिला की दशा, राजनीति, अपराध और प्रसाशन के त्रियक गठजोड़, सामाजिक व्यवस्था की सड़न, संस्कृति की टूटन, ग्रामीण मध्य वर्ग की चेतना के उलझन इत्यादि विषयों से गुरेज करने के बजाय, इनपर बहुत ठहरकर विचारता और प्रचार करता चलता है। व्यंग्य और गंभीर संवेदना के संतुलन को साधने की अपनी चिर-परिचित शैली में नीलोत्पल मृणाल ने इस उपन्यास को लिखते हुए हिंदी साहित्य की चलती आ रही सामाजिक सरोकार वाली लेखन को थोड़ा और आगे बढ़ाया है।.
From the Publisher 1. अपने उपन्यास ‘औघड़’ की प्रस्तावना में आप ने लिखा है- ‘मैंने उपन्यास नहीं लिखा बल्कि अपने मारे जाने की ज़मानत लिखी है’। आपके ज़ेहन में ऐसा लिखने का ख़याल कैसे आया? हम जिस सामाजिक परिवेश और दौर में रह रहे हैं वहाँ जातिय और लैंगिक तथा आर्थिक तथा राजनीतिक-सामाजिक विचारधाराओं का भेद इतना ज़्यादा जटिल और गहरा है कि अगर इस पर कोई भी क़लम मुखर होकर बोले, तो वह उन विडंबनाओं और रूढ़ियों को ख़ुद पर हमला लगता है। ऐसे में ज़ाहिर है कि वे पलटवार करेंगे, क़लम के विरोध में आक्रामक होंगे। इसलिए किसी भी कलम के लिए रूढ़ियों के खिलाफ़ लिखने का मतलब उस ख़तरे के लिए तैयार रहना है जो रूढ़ियों की तरफ़ से होगा। इसलिए भूमिका में मैंने अपने मारे जाने की ही ज़मानत लिखी है। दरअसल, मैं उन हमलों के लिए तैयार हूँ। 2. ‘औघड़’ ग्रामीण परिवेश को रेखांकित करता उपन्यास है। ग्रामीण परिवेश पर लिखना कैसा अनुभव रहा? मैं उसी परिवेश में रहने वाला आदमी हूँ। उसी दुनिया का आज भी हिस्सा हूँ। इस कारण लिखने में रुचि रही और सहज लिख पाया। 3. सोशल मीडिया पर आपकी पकड़ मज़बूत होती जा रही है। क्या सोशल मीडिया साहित्य के उत्थान में एक कारगर घटक बन सकता है? मेरी पकड़ क्या है, यह नहीं बताया जा सकता। सोशल मीडिया पर पकड़ का पैमाना क्या है, यह नहीं पता मुझे। हाँ, इतना भर ही जानता हूँ कि वहाँ से ढेरों पाठक मिले, उनका स्नेह मिला और उनके दिए हौसले से लिखने की हिम्मत मिली। इस लिहाज़ से सोशल मिडिया मेरे लिए तो बेहद कारगर रहा है। औघड़ ‘औघड़’ भारतीय ग्रामीण जीवन और परिवेश की जटिलता पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें अपने समय के भारतीय ग्रामीण-कस्बाई समाज और राजनीति की गहरी पड़ताल की गई है। एक युवा लेखक द्वारा इसमें उन पहलुओं पर बहुत बेबाकी से कलम चलाया गया है जिन पर पिछले दशक के लेखन में युवाओं की ओर से कम ही लिखा गया। ‘औघड़’ नई सदी के गाँव को नई पीढ़ी के नजरिये से देखने का गहरा प्रयास है। ‘औघड़’ गाँव पर गाँव में रहकर, गाँव का होकर लिखा गया उपन्यास है। ग्रामीण जीवन की कई परतों की तह उघाड़ता यह उपन्यास कई विमर्श भी प्रस्तुत करता है। साल 2019 का सबसे चर्चित उपन्यास ग्रामीण परिवेश को केंद्र में रखकर किसी युवा लेखक द्वारा लिखा गया 21वीं सदी का एकमात्र उपन्यास 4. वेब सीरीज और इंटरनेट के दौर में हिंदी साहित्य का भविष्य को आप किस तरह देखते हैं? अभी कुछ कहना जल्दीबाज़ी होगी। हम भविष्य की संभावना टटोल रहे हैं। उम्मीद है कुछ बेहतर निकल कर आएगा। 5. आज एक लेखक के पास बहुत से प्लेटफ़ॉर्म होते हैं जहाँ वह अपनी रचनाओं को पाठक तक पहुँचा सकता है। यह कितना सकारात्मक है? निश्चित रूप से अब एक लोकतांत्रिक मंच बना है, लोकतांत्रिक माहौल बना है, जहाँ आप बिना किसी मठ या गुरु महाराज की कृपा के बिना सीधे पाठक से मुख़ातिब होते हैं और वही पाठक आपके लिखे की योग्यता के अनुसार आपको इनाम देते हैं। 6. आपकी नई रचना पाठकों के बीच कब तक देखने को मिलेगी? इसी साल के अंत तक। 7. अब आप सार्वजनिक मंचों पर गायन और कविता पाठ करने लगे हैं। इन सबका लेखन पर कितना प्रभाव पड़ता है? इससे मेरी सोच और समझ मे विविधता आती है। अनुभव का संसार ज़्यादा समृद्ध होता है। इसका लाभ रचना को मिलता है। मैं अपने उपन्यासों में इसी कारण संस्कृति और समाज के कई फलक खोल पाता हूँ। कई बार तो लोकगीतों का प्रयोग भी करता हूँ। ये सब रचना को और प्रभावी और व्यापक बनाते हैं। 8. नई वाली हिंदी को लेकर आपके मन में क्या विचार हैं? ज़िंदाबाद है, ज़िंदाबाद रहेगी नई वाली हिंदी। जय हो। |
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