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भारत के श्रमिकों की कठोर वास्तविकता: उनके जीवन पर एक नज़र (The Harsh Reality of India’s Workforce: A Look at Their Lives)

बेरोज़गारों को आवाज़ देना: भारत के मजदूरों की वास्तविकता (Giving Voice to the Voiceless: The Reality of India's Workers)

भारत के कामगारों की सच्चाई!

नमस्कार दोस्तों, चाहे बाहर 45 डिग्री की तपती गर्मी हो या तेज बारिश की वजह से पानी भर गया हो, चाहे आंधी चल रही हो या पोल्यूशन ज्यादा हो, चाहे दिन हो या रात हो, आज इस कन्वीनियंस के जमाने में हमें फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि हम हमेशा अपने घर के कंफर्ट से जो चाहे वह ऑर्डर करके मंगा सकते हैं, सिर्फ एक स्मार्टफोन ऐप के जरिए। लेकिन क्या कभी आपने उन अनजान लोगों के बारे में सोचा है जो यह काम करते हैं? कभी चीजों को उनके पर्सपेक्टिव से सोचकर देखा है?

गिग वर्कर्स: अदृश्य कामगारों की कहानी

ऐसे लोगों को गिग वर्कर्स बुलाया जाता है। नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के एक सर्वे के अनुसार, ऑन एवरेज एक गिग वर्कर हमारे देश में 69.3 आवर्स काम करता है एक हफ्ते में। यह ऐसा हो गया कि मान लो हफ्ते में आप सातों दिन काम कर रहे हो, ऑलमोस्ट 10 घंटों के लिए, और कोई संडे की छुट्टी भी ना मिलती हो। और कंपैरिजन, इसी सर्वे में बाकी वर्कर्स की एवरेज है 56 आवर्स पर वीक। हमारे सीनियर हमें कोरियर तो दे देते हैं, उनकी एड सारी हम पे आ जाती है। कम से कम 8 घंटे से लेकर 12 घंटे के बीच में बाइक चलानी पड़ती है। एक एवरेज गिग वर्कर जितने घंटे काम करता है, जितना क्वालिफाइड है, और जितने कम पैसे कमाता है, इतनी बुरी हालत शायद ही किसी और वर्कर की है हमारे शहरों में। कमाल की बात यह है कि एक एवरेज गिग वर्कर की क्वालिफिकेशंस बेहतर है बाकी और वर्कर से, कंपेयर किया जाए तो। लेकिन एट द सेम टाइम, 75% गिग वर्कर्स हमारे देश में फाइनेंशियल डिफिकल्टीज फेस कर रहे हैं। ऑन एवरेज सिर्फ ₹10,000 एक महीने के यह कमाते हैं इतना काम करके।

गिग इकॉनमी: एक गहराई से समझ

आज के इस वीडियो में, आइए दोस्तों, इस गिग वर्कर प्रोफेशन को गहराई से समझते हैं।

यह जो गिग शब्द है दोस्तों, GIG, इसका मतलब होता है एक टेंपरेरी जॉब या फिर एक परफॉर्मेंस एक्ट। अभी के यह गिग वर्कर्स के पॉपुलर होने से पहले, यूजुअली म्यूजिशियंस और कॉमेडियंस इसका इस्तेमाल किया करते थे, क्योंकि इन परफॉर्मिंग आर्टिस्ट की जॉब ऐसी होती है कि इन्हें कोई रेगुलर सैलरी नहीं मिलती, इन्हें इंडिविजुअल एक्ट्स के पैसे मिलते हैं। किसी कॉमेडियन ने जाकर कहीं कॉरपोरेट कंपनी में एक शो कर दिया, तो वह उसके लिए एक गिग हो गई जिसके लिए उसे पैसे मिले। सबसे पहली बार इस गिग शब्द का इस्तेमाल एक टेंपरेरी पेड जॉब के लिए किया गया था, साल 1952 में, जब एक इन्फ्लुएंस ऑथर, जैक केरुएक ने एक आर्टिकल लिखा था, कैसे उन्हें रेल रोड में ब्रेकमैन के तौर पर काम करने के लिए एक गिग मिली थी। आज के दिन, फ्रीलांस काम को भी इसी कैटेगरी के अंदर डाला जाता है। और पिछले 10 सालों में, इनफैक्ट पिछले चार सालों में, कोविड के बाद से एक जबरदस्त ग्रोथ देखने को मिली है, गिग इकॉनमी में।

गिग इकॉनमी: दो प्रकार की जॉब्स

अब वैसे तो गिग इकॉनमी को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक है सर्विस बेस्ड गिग्स, और दूसरी है नॉलेज बेस्ड गिग्स। सर्विस में आ गए लो टू सेमी स्किल्ड वर्कर्स, जैसे कि डिलीवरी एजेंट्स, और नॉलेज में आ गई हाई स्किल्ड जॉब्स, जैसे कि कंसल्टेंट्स और डेटा साइंटिस्ट्स। सर्विस वालों को ब्लू कॉलर गिग वर्कर्स भी कहा जाता है, और नॉलेज वालों को वाइट कॉलर गिग वर्कर्स भी कहा जाता है। लेकिन यूजुअली जब भी गिग वर्कर्स की बात करी जाती है, यहां पर फर्स्ट कैटेगरी को ही रेफर किया जाता है, वह लोग जो Zomato, Swiggy, Urban Company, Porter, Zepto जैसी कंपनियों के लिए काम कर रहे हैं, जिनके काम डेस्क जॉब से हटकर हैं, और वह लोग जो इन डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की सर्विसेस को असली में डिलीवर करने का काम कर रहे हैं।

गिग इकॉनमी के फायदे: एम्प्लॉयर और एम्प्लॉई दोनों के लिए

अब थोड़े थ्योरेटिक्स के कंपैरिजन में इस गिग इकॉनमी के काफी सारे फायदे हैं, दोनों एम्प्लॉयज और एम्प्लॉयर के लिए। इन कंपनियों के लिए, एम्प्लॉयर के लिए क्या फायदा है? जब मर्जी हायर करो एम्प्लॉयज को, जब मर्जी फायर करो, कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है एम्प्लॉई के साथ। अगर कोई पसंद आया, तो उसे इमीडिएट हटाया जा सकता है जॉब से, और अगर कोई पसंद आ रहा है, तो इमीडिएट उसे हायर भी किया जा सकता है। और दूसरी तरफ एम्प्लॉयज को मिलती है फ्लेक्सिबल जॉब, जब वह चाहे तब काम करें। जिस कंपनी के लिए चाहे उसी कंपनी के लिए काम करें, किसी ऑफिस में जाने की जरूरत नहीं। वर्क फ्रॉम एनीवेयर! एक नौकरी पसंद नहीं आ रही, तो उस नौकरी को छोड़ो, दूसरी नौकरी ढूंढ लो। साथ-साथ मल्टीपल कंपनियों के लिए काम करना है, वह भी पॉसिबल है, एक्स्ट्रा पैसे कमाए जा सकते हैं, और ऊपर से अगर आपकी कोई मेन जॉब है, आप इसे साइड जॉब की तरह कर सकते हो, एक्स्ट्रा सप्लीमेंट्री इनकम कमाने के लिए।

गिग वर्कर्स की वास्तविकता: चुनौतियां और संघर्ष

चारों तरफ फायदे ही फायदे हैं। सब कुछ सुनने में तो बहुत अच्छा लग रहा है। लेकिन आप पूछोगे, फिर प्रॉब्लम क्या है? प्रॉब्लम यह है कि यह सारे फायदे बस थ्योरेटिक्स में हैं। देखा जाए तो, हालात बहुत खराब हैं। नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट, “India’s Booming Gig and Platform Economy,” को अगर हम देखें, तो कोविड पेंडमिक के आने से पहले देश में करीब 30 लाख गिग वर्कर्स थे। लेकिन यही नंबर 2021 में 77 लाख तक पहुंच गया, और इस सेक्टर में इतनी ग्रोथ एक्सपेक्ट करी जा रही है कि 2030 तक यह नंबर 2.35 करोड़ पर पहुंच जाएगा। ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टिट्यूट का ऑनलाइन लेबर इंडेक्स हमें बताता है कि इंडिया का ऑनलाइन लेबर मार्केट शेयर 24% पर है। यानी कि इंडिया नंबर वन देश है दुनिया में इस मामले में। इससे हमें क्या पता चलता है? इससे हमें पता चलता है कि ज्यादातर लोग हमारे देश में गिग इकॉनमी को सप्लीमेंट्री, एक्स्ट्रा इनकम के तौर पर नहीं, बल्कि अपनी मेन जॉब की तौर पर देख रहे हैं।

गिग वर्क: मुख्य आय का स्रोत

इनफैक्ट, पसोस रिसर्च के 2024 के सर्वे के अनुसार, देश में 88% गिग वर्कर्स के लिए गिग वर्क उनका प्राइमरी सोर्स ऑफ इनकम है। और दूसरी तरफ इस नंबर को देखिए, Flourish Ventures की सितंबर 2020 की सर्वे, लॉकडाउन के 6 महीने बाद, 90% गिग वर्कर्स ने कहा कि कैसे उनकी तनख्वाह नीचे चली गई है। 47% गिग वर्कर्स उस समय पर अपना खर्चा भी नहीं चला पा रहे थे बिना बोरो करे पैसे को। कोविड के समय पर इन लोगों को हम अक्सर “कोविड वॉरियर्स,” “फ्रंटलाइन वॉरियर्स,” या “लाइफलाइन्स” करके पुकारते थे, लेकिन ज्यादातर लोग इस प्रोफेशन में मजबूरी की वजह से आए।

गिग वर्कर्स की कहानी: करण सिंह का उदाहरण

द लॉजिकल इंडियन ने एक करण सिंह नाम के गिग वर्कर की कहानी कवर करी थी। करण दिल्ली में, पश्चिम बिहार के इलाके में रहते थे और कंस्ट्रक्शन का काम करते थे। जब कोविड की वजह से कंस्ट्रक्शन के काम पर रोक लगा दी गई, तो इनके लिए कोई खाना-पानी, राशन का जरिया नहीं बचा। इनकी दो बेटियां थी और एक बीवी थी, और घर चलाने के लिए जो बर्डन था, वह बढ़ता जा रहा था। फिर इनके एक दोस्त ने इन्हें गिग वर्क के बारे में बताया और इन्होंने फैसला किया कि अपनी आखिरी बची हुई सेविंग्स का इस्तेमाल करेंगे एक सेकंड हैंड स्कूटर रिलीज पर लेने में, और यह एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए डिलीवरी पार्टनर बन गए। फ्रंट लाइन वर्कर होने का मतलब था कि यह एसेंशियल गुड्स को डिलीवर करते रह सकते थे, कोविड लॉकडाउन के दौरान।

गिग इकॉनमी: नामों के पीछे की सच्चाई

लेकिन देखते ही देखते, यह उनका मेन पेशा बन गया, और आज यह एक बाइक टैक्सी सर्विस प्लेटफॉर्म में काम करते हैं। ऐसी कहानियों की भरमार है हमारे देश में दोस्तों, जहां पर गिग इकॉनमी ने लोगों के रोजगार को बचा लिया। आज के दिन यह कंपनियां अपने गिग वर्कर्स को अलग-अलग नामों से बुलाती हैं। कोई बाइक टैक्सी वाली कंपनी है, कैप्टन शब्द का इस्तेमाल करती हैं, कोई इन्हें एक्सपर्ट बुलाता है। लेकिन ज्यादातर कंपनियां इन्हें पार्टनर का नाम देती हैं।

गिग वर्कर्स: पार्टनरशिप का भ्रम

अब आमतौर पर किसी बिजनेस में अगर पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, तो इसका मतलब होता है कि कोई इंसान आपके साथ भागीदारी करेगा, आपके साथ काम करेगा। जो भी प्रॉफिट और लॉसेस होंगे, उन्हें शेयर किया जाएगा। लेकिन क्या गिग वर्कर्स के लिए ऐसा कुछ भी होता है? गिग वर्कर्स को काम करने के लिए जो स्कूटर या बाइक खरीदनी होती है, वह खुद के पैसे से खरीदनी होती है। पेट्रोल का जो खर्चा आएगा, अपनी जेब से भरना होता है। यहां Ola ड्राइवर्स का एक बड़ा क्लासिक एग्जांपल है। मान लो किसी टैक्सी ड्राइवर ने आपको एक जगह पर ड्रॉप किया है और उस लोकेशन पर उसे कोई और राइड नहीं मिल पाती। राइड ढूंढने के लिए उसे 15-20 किमी दूर ट्रैवल करना पड़ता है किसी हॉटस्पॉट में, तो उस 15-20 किमी चलने के लिए उसे जो पेट्रोल का खर्चा आया, या कंपनी उसका 50% पे करती है? बिल्कुल भी नहीं पे करती।

गिग वर्कर्स: वास्तविकता और कानूनी जाल

अगर मान लो मैं गाड़ी चला रहा हूं, मेरे ₹1 का पेट्रोल जला अगर ऑर्डर नहीं मिला, तो उसका 50% कौन देगा? कंपनी देने जा ना? पार्टनर तो मतलब वही है। तो सवाल यही उठता है कि यह कैसी पार्टनरशिप हुई? असलियत में दोस्तों, पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है ताकि कोई लीगल प्रॉब्लम्स ना हो इन कंपनियों के लिए। अगर वह कंपनियां इन्हें एम्प्लॉयज करके बुलाने लग गई, तो बहुत सारी रिस्पांसिबिलिटीज उन कंपनियों के ऊपर आ जाएंगी। इनके हेल्थ इंश्योरेंस का ध्यान रखना होगा। अगर कोई वर्क रिलेटेड एक्सीडेंट हो जाता है, उसकी लायबिलिटी कंपनी के ऊपर आएगी, टैक्स और एक मिनिमम वेज देने की रिस्पांसिबिलिटी आ जाएगी।

गिग वर्कर्स की स्थिति: शोषण और असुरक्षा

लेकिन ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टिट्यूट के फेयर वर्क रिसर्च प्रोजेक्ट, 2022 के अनुसार, 11 इंडियन प्लेटफॉर्म्स को इन्होंने स्टडी किया था, और इनमें से एक भी प्लेटफॉर्म भी सबूत नहीं दे पाया कि इनके गिग वर्कर्स को एटलीस्ट लोकल लिविंग वेज मिलती हो, सारी वर्क रिलेटेड कॉस्ट कवर करने के बाद। सेंटर फॉर लेबर स्टडीज एट द नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु और मोंटफोर्ट सोशल इंस्टिट्यूट ने साथ में मिलकर एक स्टडी करी, जिसमें इन्होंने Ola और Uber के टैक्सी ड्राइवर्स को देखा हैदराबाद में। इन्होंने एक बड़ी शॉकिंग चीज पाई कि जितना भी पैसा एक ड्राइवर कमाता है एक दिन का काम करने के बाद, ऑन एवरेज 40% उस कमाई का सिर्फ पेट्रोल और डीजल पर ही खर्च हो जाता है, और ज्यादातर ड्राइवर्स 12 से 14 घंटे काम करते हैं ऑन एवरेज एक दिन में।

गिग वर्कर्स की कमाई और काम के घंटे

मतलब सारा खर्चा उठाने के बाद, इस बढ़ती महंगाई में अगर सिर्फ मिनिमम वेज तक की ही बात बन पा रही है, तो यही गिग वर्कर्स एक्स्ट्रा घंटे काम करने लग जाते हैं। नोट करने वाली बात यह भी है कि यह कंपनियां खुद को कैसे डिफाइन करती हैं? यह खुद को टेक एग्रीगेटर या मीडिएटर या फैसिलिटेटर करके पुकारती हैं, कभी भी एम्प्लॉयर शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगी। फिर से, लीगल प्रॉब्लम्स क्रिएट हो जाएंगी कि यह एम्प्लॉयर बन गए, और वह एम्प्लॉयज हैं। बहुत सारा खर्चा उठाना पड़ेगा, उनका ध्यान रखना पड़ेगा। इस सब झंझट में नहीं पड़ना। हम तो भाई टेक एग्रीगेटर हैं। यह कंपनियां अक्सर कहती हैं कि इन्होंने मार्केट को रिवॉल्यूशनराइज कर दिया है, मिडल मैन को रास्ते से हटाकर।

गिग इकॉनमी: मिडल मैन का नया रूप

लेकिन जरा सोच कर देखो दोस्तों, असलियत में इन्होंने किया क्या है? कि यह खुद मिडल मैन बन गए हैं। यह हर राइड, हर डिलीवरी, हर सर्विस का 15 से 25% कमीशन चार्ज करके खुद ही एक टेक बेस्ड मिडल मैन बन गए। और यहां अगर इन टेक कंपनियों की बात कर ही रहे हैं, तो यह भी जान लेना जरूरी है कि इन कंपनियों का सॉफ्टवेयर और इनके एल्गोरिथम्स कैसे और प्रॉब्लम्स क्रिएट करते हैं इनके गिग वर्कर्स के लिए।

गिग वर्कर्स: एल्गोरिथम्स का शोषण

लेकिन इसकी बात करने से पहले, मैं आपको आज के वीडियो के स्पॉन्सर्स के बारे में बताना चाहूंगा जो कि आपके लिए बहुत यूज़फुल होंगे अगर आप अपनी वेबसाइट का ट्रैफिक या वेबसाइट की रैंकिंग इंप्रूव करना चाहते हो। That Ware, That Ware एक SEO कंपनी है, जो हजार से ज्यादा प्रोपराइटी AI एल्गोरिथम्स और एडवांस्ड SEO टेक्निक्स का इस्तेमाल करती है। यह आपकी मदद करेंगे, आपकी वेबसाइट या आपके ब्रांड को टॉप पर रैंक कराने में।

Google जैसा है क्योंकि हजारों नए कस्टमर्स आपकी वेबसाइट पर आ सकते हैं सिर्फ एक…

GoogleWebLight.com दिन क्या हुआ कि इनका एक्सीडेंट हो गया। इसकी वजह से उस दिन की जितनी भी और जॉब्स थी, गिग्स थी, उन्होंने कैंसिल कर दी क्योंकि खुद की ट्रीटमेंट करानी थी इन्हें। और अगले दिन जब यह अपना अकाउंट चेक करते हैं, तो इन्हें खबर मिलती है कि Urban Company ने इनका अकाउंट परमानेंटली ब्लॉक कर दिया है। यह हैरान हो जाते हैं देखकर कि क्या कारण हो सकता है इसके पीछे। और जब इन्होंने देखा, तो लिखा आता है, “For cancelling more than five jobs a month.” पांच दिन की बात नहीं हो रही यहां पर, पांच जॉब्स की बात हो रही है। यानी कि इन्होंने पांच गिग्स को कैंसिल कर दिया, अपने एक्सीडेंट की वजह से, और उसकी वजह से इनका अकाउंट परमानेंटली ब्लॉक हो गया।

गिग वर्कर्स: अकाउंट ब्लॉकिंग और रेटिंग सिस्टम का दबाव

बहुत से गिग वर्कर्स यह प्रॉब्लम्स फेस करते हैं कि किसी रैंडम रीजन की वजह से इनके अकाउंट को या इनकी आईडी को इन एप्स के द्वारा बैन कर दिया जाता है। इसके पीछे कई सारे रीजंस हो सकते हैं। किसी ने कंपनी को कॉल करके कोई बड़ी कंप्लेन कर दी आपके खिलाफ, या फिर आपकी रेटिंग्स कम हो गई ऐप पर, या फिर आपने छुट्टियां ज्यादा मार ली। सोच कर देखो दोस्तों, जब मैंने बताया था कि गिग इकॉनमी के क्या फायदे होते हैं, सबसे बड़ा फायदा एम्प्लॉयज के लिए यह था कि फ्लेक्सिबल जॉब मिलेगी, जब वह काम करना चाहे तब वह काम कर सकते हैं।

गिग वर्कर्स के लिए असली “फ्लेक्सिबिलिटी”

लेकिन अगर ऐसे रूल्स रखे जाएंगे कि अगर आपने इतनी जॉब्स रिजेक्ट कर दी, तो आपको तो ऐप से हटा दिया जाएगा, कैंसिल कर दिया जाएगा, तो यह किस तरीके की फ्लेक्सिबिलिटी होगी? यह तो एक तरीके की स्लेवरी हो गई कि आपको इतना काम करना ही पड़ेगा, अगर आप काम नहीं करोगे, तो आपको ऐप से हटा दिया जाएगा, और आपकी नौकरी गई। इसी आर्टिकल के अनुसार, इस Urban Company के वर्कर्स क्लेम करते हैं कि कम से कम वर्कर्स की 4.7 की रेटिंग होनी चाहिए, और रिस्पांस रेट 70% से ऊपर का होना चाहिए, और साथ ही साथ, पांच जॉब्स से ज्यादा कैंसिल नहीं होनी चाहिए एक महीने में।

गिग वर्कर्स: शोषण और रेटिंग सिस्टम

जहां एम्प्लॉयर की डेफिनेशन से बचके यह सारी कंपनियां फायदे उठा रही हैं, वहीं हर कंपनी अपने अलग-अलग स्टाइल से इन वर्कर्स को एक्सप्लोइट भी कर रही है। इसी फ्रंटलाइन के आर्टिकल में यह भी एग्जांपल लिखा है कि कैसे एक समय पर Urban Company ने कस्टमर्स को डिस्काउंट्स देने के लिए, वर्कर्स की पेमेंट के पैसों का इस्तेमाल किया था। पिछले साल, 100 से ज्यादा डार्क स्टोर्स, जिन्हें रन किया जा रहा था, Zomato owned Blinkit के द्वारा दिल्ली एनसीआर में, उन्हें शट डाउन कर दिया गया क्योंकि डिलीवरी एग्जीक्यूटिव स्ट्राइक पर थे। क्या रीजन था इसके पीछे? क्योंकि इन डिलीवरी एग्जीक्यूटिव्स ने जब कांट्रैक्ट साइन थे Blinkit के साथ, तब इनकी फीस रखी गई थी ₹45 पर ऑर्डर।

गिग वर्कर्स की दुर्घटनाओं और कंपनियों की लापरवाही

लेकिन बाद में इसे कम करके कर दिया गया। ₹2,500,000 पर। 23 साल के मोहम्मद रिजवान को कस्टमर के कुत्ते के द्वारा अटैक किया गया जब वह एक Swiggy ऑर्डर डिलीवर कर रहे थे। कुत्ते से अपने आप को बचाने के लिए रिजवान तीसरे माले से नीचे गिर गए, जिसके कारण उनकी मौत हो गई। कस्टमर ने ₹1 लाख की कंपनसेशन दी, इसके लिए आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट करके, लेकिन Swiggy की तरफ से एक भी पैसा नहीं दिया गया। कंपनी ने कहा कि रिजवान अपने भाई का अकाउंट यूज कर रहा था डिलीवरीज करने के लिए, इसलिए इस एक्सीडेंट की उनकी कोई लायबिलिटी नहीं थी। चलो यह तो एक बहुत रेयर केस हो गया, लेकिन ऐसे बहुत इंसीडेंट्स हमें देखने को मिलते हैं जहां पर लोग इनकी वर्कर्स पर चिल्लाते हैं, अगर यह लेट डिलीवरी करें तो।

गिग वर्कर्स की समस्याओं का समाधान: चैटबॉट और सहायता प्रणाली

अब वर्कर्स को अगर कोई इश्यू होता है, तो उनके पास इकलौता जरिया होता है कि वह चैटबॉट्स का इस्तेमाल करें हेल्प के लिए। प्लेटफॉर्म बेस्ड गिग वर्कर्स हैव प्रॉब्लम्स इन देयर एग्जीक्यूशन ऑफ वर्क एंड इनफैक्ट इवन व्हेन कस्टमर्स हैव इश्यूज विद एग्जीक्यूशन ऑफ एन ऑर्डर, योर ओनली रिकर्स इज चैटिंग विथ अ बॉट ऑन द प्लेटफॉर्म। यू आर प्रोमेड विथ क्वेश्चंस, यू हैव टू चूज बिटवीन अ सेट ऑफ आंसर्स दैट द बॉट इज प्रोवाइड। इफ यू आर लकी टू बी एबल टू क्रॉस अ स्टेज ऑफ कन्वर्सेशन विद द बॉट, देयर विल बी अ कॉल दैट विल बी मेड टू यू. यू डोंट हैव अ टोलफ्री नंबर टू व्हिच यू कैन रीच आउट एंड मेक अ कॉल. यू हैव टू वेट फॉर द कॉल टू कम टू यू. बहुत रेयरली ही किसी ऐप में ऐसा होता है कि वह कॉल कर सके किसी इंसान को मदद मांगने के लिए।

गिग वर्कर्स की असुरक्षा और ग्राहक के लिए सुविधा

Fortune’s को बहुत अच्छा बनाया गया है। अगर आप कुछ ऑर्डर करने के लिए इन एप्स का इस्तेमाल कर रहे हो, तो आपके पास बहुत अच्छे जरिए होंगे कंप्लेन करने के, और आपको अक्सर पैसे वापस भी मिल जाते हैं खराब ऑर्डर के लिए। लेकिन इन गिग वर्कर्स के लिए सिस्टम बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। यही कारण है कि हमें इतनी सारी स्ट्राइक्स भी देखने को मिलती हैं। फरवरी 2023 में Ola, Uber, Rapido के वर्कर्स ने गुवाहाटी में एक स्ट्राइक करी क्योंकि इनकी कमाई नीचे गिरती जा रही थी और कंपनियों का कमीशन रेट ऊपर जाते जा रहा था। उसी महीने 2500 Ola, Uber कैब ड्राइवर्स ने भी प्रोटेस्ट किया था हैदराबाद में, कंपनी के हाई कमीशन रेट्स को लेकर। दो महीने बाद, अप्रैल 2023 में Blinkit रेट कट्स की घटना हुई, पर स्ट्राइक्स के बावजूद रेट्स उतने के उतने ही रहे।

गिग वर्कर्स: रेटिंग सिस्टम और शोषण

अब बहुत से लोगों को इन कंपनियों का रेटिंग सिस्टम भी नहीं समझ में आता। लोगों को लगता है कि अगर किसी Ola, Uber के ड्राइवर ने एक अच्छी, सेटिस्फेक्ट्री, एक्सीलेंट, लाजवाब सर्विस दी हो, दूसरी तरफ कुछ लोग छोटे-छोटे इश्यूज पर स्टार्स कम कर देते हैं, जैसे कि किसी ड्राइवर को जगह ढूंढने में प्रॉब्लम हो गई, या ज्यादा देर कर दी आने में, या खुला छुट्टा नहीं था उसके पास। अगर आप भी यही करते हो, तो जरा इन गिग वर्कर्स के पर्सपेक्टिव से सोच कर देखा करो। इन लोगों के लिए 4.5 स्टार से नीचे जाने का मतलब अक्सर होता है कि अपनी नौकरी खो देना, इनका घर चलना बंद हो जाएगा। इसलिए अगली बार जब भी आप रेटिंग दो, फाइव स्टार्स आपके लिए डिफॉल्ट होना चाहिए। कोई छोटी-मोटी प्रॉब्लम्स हो, तो उन्हें जाने दो, अनलेस इन वर्कर्स की सही में कोई बहुत बड़ी गलती ना हो।

गिग वर्कर्स का सम्मान और न्याय

तो इसके अलावा, इन्हें धन्यवाद जरूर किया करो, इनकी मेहनत और इनके काम के लिए। क्योंकि जिन कंडीशंस में यह काम कर रहे हैं, वह सही मायनों में तारीफ के लायक है। और यहां इन प्रॉब्लम्स को अगर हमें सुधारना है, तो इसका सलूशन ठोस कानून में रखा है। बाकी और देशों की तरह, इंडिया में भी जो ट्रेडिशनल लेबर लॉज हैं, वह गिग वर्कर्स को कवर नहीं करते। और जैसा मैंने बताया, कंपनियां बड़ी आसानी से लूप होल ढूंढ लेती हैं। खुद को एम्प्लॉयर नहीं बुलाएंगे, और ना गिग वर्कर्स को एम्प्लॉयज बुलाएंगे।

गिग वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी कोड

यह साल 2020 में ही था कि इंडियन गवर्नमेंट ने एक सोशल सिक्योरिटी कोड पास किया जिसमें एक गिग वर्कर की डेफिनेशन लिखी गई। “A person who performs work or participates in work arrangement and earns from such activities outside of traditional employer-employee relationship.” बड़ी लूज सी डेफिनेशन है। इस एक्ट के अनुसार, एक गिग वर्कर को कई सारे सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट्स मिलेंगे, जैसे कि लाइफ और डिसेबिलिटी कवर, एक्सीडेंट इंश्योरेंस, हेल्थ और मैटरनिटी बेनिफिट्स, और ओल्ड एज प्रोटेक्शन। सुनने में बड़ा अच्छा है, लेकिन सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि यह लॉ सिर्फ पेपर पर ही है। अभी तक ऑपरेशनालाइज नहीं किया गया है इस कानून को।

प्लेटफॉर्म वर्कर्स: अस्पष्ट परिभाषाएं

दूसरा, इस कानून में गिग वर्कर्स की अलग डेफिनेशन है, प्लेटफॉर्म वर्कर्स से, और अनऑफिशियल एम्प्लॉयर-एम्प्लॉई रिलेशनशिप के बाहर हैं। लेकिन they access organizations and individuals through an online platform and provide services for payment. एक Ola का ड्राइवर टेक्निकली गिग वर्कर भी कहा जा सकता है, प्लेटफॉर्म वर्कर भी कहा जा सकता है, क्योंकि इतना ओवरलैप है इन डेफिनेशंस में। तो यह बात अभी भी अनक्लियर है कि यह स्कीम्स एग्जैक्टली कैसे अप्लाई होंगी इन वर्कर्स पर। तो एक तरफ जहां इंतजार किया जा रहा है कि सेंट्रल गवर्नमेंट अपना सोशल सिक्योरिटी कोड इंप्लीमेंट करे, वहीं दूसरी तरफ कुछ स्टेट गवर्नमेंट्स ने खुद ही से ही इनिशिएटिव लेना शुरू कर दिया गिग वर्कर्स के राइट्स को प्रोटेक्ट करने के लिए।

राजस्थान और कर्नाटक में गिग वर्कर्स के लिए कानून

यह सबसे पहले किया था राजस्थान की सरकार ने, 2023 में, उनकी स्टेट इलेक्शन से पहले। “राजस्थान Platform Based Gig Workers Registration and Welfare Act.” इस बिल में पांच मेन चीजें थीं। पहला, गिग वर्कर्स की रजिस्ट्रेशन करी जाए स्टेट गवर्नमेंट के साथ। दूसरा, सोशल सिक्योरिटी स्कीम्स का उन्हें एक्सेस मिले। तीसरा, उन्हें एक ग्रीविंग रिड्रेसल मैकेनिज्म दिया जाए। चौथा, वेलफेयर बोर्ड्स की एस्टेब्लिशमेंट की जाए उनके लिए, फंड्स रखे जाएं जिसमें कि स्टेट गवर्नमेंट ने अपनी तरफ से ₹200-250 करोड़ के फंड दिए। और पांचवा, पेनल्टी हो नॉन कंप्लायंस के लिए, कंपनियों पर। यह सब करने के लिए जो एक्स्ट्रा पैसे की जरूरत पड़ेगी, उस उसके लिए एक सेस लगाया जाएगा, 1 से 2% का, टोटल बिल पर जो भी एक प्लेटफॉर्म बेस्ड ट्रांजैक्शन होती है, उस पर। और क्योंकि सब कुछ डिजिटली किया जाता है, तो यह चीज सबको पता होगी कि एग्जैक्टली एक वर्कर के कितने काम करने से कितना और पैसा आया है।

राजस्थान और कर्नाटक में गिग वर्कर्स के लिए कानून का प्रभाव

उस फंड में जो सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट्स वर्कर्स को दिए जा रहे हैं, उसमें एक्सीडेंट, हेल्थ इंश्योरेंस, मैटरनिटी ग्रेजुएटी, पेंशन, ईपीएफ, ईसीआईएस, और स्कॉलरशिप्स भी इंक्लूडेड हैं। तो सुनने में तो बहुत अच्छा है, लेकिन एग्जैक्टली कितना इंप्लीमेंट किया जा रहा है इस कानून को राजस्थान में? इसके बारे में ज्यादा जानकारी ऑनलाइन अवेलेबल नहीं है, तो यह वही लोग बता सकते हैं जो राजस्थान में काम कर रहे हैं गिग वर्कर्स के तौर पर। अगर आप ऐसे लोगों में से हो, तो नीचे कमेंट्स में लिखकर बता सकते हो।

राजस्थान के बाद क्योंकि कर्नाटक में भी कांग्रेस की ही सरकार है, तो वहां भी एक सिमिलर कानून प्रपोज किया गया है, कुछ हफ्ते पहले, “The Karnataka Platform Based Gig Worker Social Security and Welfare Bill, 2024.” और इंटरेस्टिंग चीज पता है क्या है दोस्तों? इन कंपनियों ने ऑलरेडी इस बिल के खिलाफ प्रोटेस्ट करना चालू कर दिया है। नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर सर्विस कंपनीज ने कहा कि इस बिल के आने से इन एग्रीगेटर्स के बिजनेस को नुकसान पहुंचेगा। इस बिल में लीगली मिनिमम नोटिस पीरियड दिया जा रहा है टर्मिनेशन के लिए, एल्गोरिथमिक डिस्क्लोजर की बात करी जा रही है, अलग-अलग मैकेनिज्म को मॉनिटर और ट्रैक करने की बात करी जा रही है। और कुछ कंपनियों का कहना है कि उससे एक बुरा असर पड़ेगा इनके प्लेटफॉर्म्स पर, और यह उस स्टेट में अपने ऑपरेशंस ढंग से नहीं कर पाएंगे।

गिग वर्कर्स के लिए कानून और कंपनियों की प्रतिक्रिया

मतलब सोचकर देखो, इन कंपनियों को इससे भी प्रॉब्लम है कि एक मिनिमम नोटिस पीरियड दे दिया जाए, गिग वर्कर्स को। यह जो प्रॉब्लम मैंने आपको इस वीडियो में बताई, दोस्तों, यही सारी प्रॉब्लम्स दूसरे देश भी फेस कर रहे हैं, और जिन सॉल्यूशंस की मैंने बात करी, यही सारे सॉल्यूशंस दूसरे देशों में ऑलरेडी इंप्लीमेंट भी किए जा चुके हैं।

गिग वर्कर्स के अधिकारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

थाईलैंड और मलेशिया में काम करने वाले गिग वर्कर्स को हेल्थ और एक्सीडेंट इंश्योरेंस मिलता है, जिसकी फाइनेंसिंग करी जाती है सिमिलर 2% का सेस लगाकर हर राइड पर। अमेरिका में नेशनल लेबर रिलेशंस बोर्ड ने इनकरेज किया है Uber, Lyft ड्राइवर्स और बाकी और गिग वर्कर्स को कि वह ऑर्गेनाइज हो और लेबर यूनियंस को जॉइन करें। यूके और नीदरलैंड के देशों ने इस बात को रिकॉग्नाइज किया है कि गिग वर्कर्स को मिसक्लासिफाई किया गया है, वह कदम उठा रहे हैं कि कैसे उन्हें एम्प्लॉयज की तरह वापस से रिक्लासिफाई किया जाए। और दिसंबर 2023 में यूरोपियन यूनियन ने भी एक प्लेटफॉर्म वर्कर्स डायरेक्टिव पास किया।

यूरोपीय यूनियन का प्लेटफॉर्म वर्कर्स डायरेक्टिव

इसके अनुसार सभी यूरोपियन देशों में गिग वर्कर्स को राइट्स और प्रोटेक्शन दी जाएंगी। जिन्हें भी मिसक्लासिफाई किया गया है कि वह सेल्फ एम्प्लॉयड हैं या फ्रीलांस हैं, उन्हें रेगुलर एम्प्लॉयज की तरह अज्यूम किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने पांच क्राइटेरियास बनाए, पांच अलग-अलग क्राइटेरियास हैं, इनमें से अगर दो क्राइटेरिया भी सेटिस्फाई हो जाते हैं, तो गिग वर्कर को एम्प्लॉई कंसीडर किया जाएगा। और यह बर्डन ऑफ प्रूफ कंपनियों के ऊपर रखा गया है कि जो भी गिग वर्कर्स एक कंपनी के अंदर काम कर रहे हैं, कंपनी की रिस्पांसिबिलिटी है वह साबित करें कि यह पांच क्राइटेरिया वह सेटिस्फाई नहीं हो रहे हैं।

गिग वर्कर्स के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी

अब वीडियो काफी लंबा हो गया है, तो इतनी लीगल और टेक्निकल डिटेल्स में मैं जाऊंगा नहीं। यह काम इन लॉयर्स पर छोड़ देते हैं और एक्सपर्ट्स पर, जो काम कर रहे हैं, गिग वर्कर्स के राइट्स के लिए फाइट करने के लिए। यहां कुणाल कामरा ने एक बहुत बढ़िया डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है इसी प्रॉब्लम को और विस्तार से समझाते हुए।

गिग वर्कर्स: समाधान और जागरूकता

इस डॉक्यूमेंट्री का लिंक मैं नीचे डिस्क्रिप्शन में डाल दूंगा। कई सारी क्लिप्स जो इस वीडियो में इस्तेमाल की गई, वह इसी डॉक्यूमेंट्री से ली गई थी। और आखिर में हम और आप क्या कर सकते हैं? जिस तरीके से आप ऑर्डर लेने के लिए अपने घर का दरवाजा खोलते हैं, उसी तरीके से अपने दिल का भी दरवाजा खोल लीजिए। “Place Order” और “Your order has arrived” तक का जो सफर है, बीच का उसे विजुअलाइज करके देखिए। बाय डिफॉल्ट, अगर काम सेटिस्फेक्ट्री रहा है, तो हमेशा इन्हें फाइव स्टार्स की रेटिंग दीजिए। और अगर आपके ऑर्डर में कुछ प्रॉब्लम हुई है, तो याद रखिए कि आपके एंड से कंप्लेन करना कहीं ज्यादा बेहतर है, एज कंपेयर टू डिलीवरी वाले को बताने से। That Ware का लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगा।

वीडियो की समाप्ति और अगली वीडियो का प्रचार

और यह वीडियो अगर आपको पसंद आया, तो इसी वीडियो के कंट्रास्ट में है यह वाला वीडियो, जहां पर मैंने बात करी है सेलिब्रिटीज की फेक लाइफ के बारे में। यहां क्लिक करके देख सकते हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद!

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