[PDF] मासूम लड़कियाँ बनी शिकार: अजमेर घोटाला का सच | eBookmela

मासूम लड़कियाँ बनी शिकार: अजमेर घोटाला का सच

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मासूम लड़कियाँ बनी शिकार: अजमेर घोटाला का सच

साल था 1992। राजस्थान के अजमेर शहर में पिछले कुछ महीनों से कई अजीब घटनाएं हो रही थी। एक के बाद एक, कई जवान लड़कियों ने घरों में खुद को कैद कर रखा था, तो कई लड़कियां बिल्कुल पागल सी हो गई थी। अजीब इत्तेफाक था कि यह सब करने वाली लड़कियां सोफिया सेकेंडरी स्कूल की स्टूडेंट थीं। जब इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश की गई कि आखिर सोफिया सेकेंडरी स्कूल की लड़कियां क्यों कर रही हैं, और यह लड़कियां परेशान क्यों हैं, तो एक ऐसे राज से पर्दा उठा, जिसे सुनकर हर किसी के पैरों तले जमीन खिसक गई। अजमेर में भूचाल आ गया। लाखों लोगों की आस्था का केंद्र, अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़े लोगों ने एक ऐसे घिनौना काम को अंजाम दिया था, जिसे सुनकर आप गुस्से से तड़प उठेंगे।

अजमेर घोटाला: धार्मिक रसूख का दुरुपयोग

जब इस जुर्म को अंजाम दिया जा रहा था, तब भी सभी ने आंखें बंद करके नाइंसाफी होने दी थी। और आज भी इस घटना को लोगों से छुपाने की कोशिश की जाती है। शायद आप भी इस घटना के बारे में नहीं जानते होंगे। यह कोई आम घटना नहीं थी, बल्कि आजाद भारत के इतिहास में अंजाम दी गई सबसे बड़ी घोटाला थी। चंद लोगों ने मिलकर दो, चार, या 10 नहीं, बल्कि 250 से ज्यादा लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया था। शिकार बनने वाली लड़कियों में मामूली ड्राइवर की बेटी से लेकर बड़े अफ़सर तक की बेटियां शामिल थी। तो आखिर यह सिलसिला कैसे शुरू हुआ? कैसे लड़कियां शिकार बनती चली गई? और इस अपराध को अंजाम देने वाले लोग कौन थे? और उनके साथ क्या हुआ? चलिए जानते हैं सब कुछ सिलसिलेवार तरीके से इस वीडियो में।

अजमेर घोटाला: कहानी की शुरुआत

इस वीडियो को अंत तक जरूर देखिएगा। आज आपको वह सच जानना चाहिए जिस पर हमेशा पर्दा डालने की कोशिश की गई है। वेल, कहानी शुरू करने से पहले, अगर आपने इस चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है, तो जल्दी से चैनल को सब्सक्राइब कर, और बैल आइकॉन दबा लें। चलिए अब कहानी शुरू करते हैं। दरिंदगी और हैवानियत के इस खेल की शुरुआत 1990 की शुरुआत में हुई थी। इस खेल को शुरू किया था राजस्थान के अजमेर शहर के सबसे अमीर और सबसे बड़े गानों में जाने वाले चिश्ती परिवार के कुछ लड़कों ने। यह चिश्ती परिवार वही है जो लाखों लोगों की आस्था का केंद्र, अजमेर शरीफ दरगाह की देखभाल करते हैं, यानी दरगाह के खादिमों में से हैं।

फारूख चिश्ती और नफीस चिश्ती: धार्मिक रसूख का दुरुपयोग

इस चिश्ती परिवार के फारूख चिश्ती और नफीस चिश्ती का रुतबा उन दिनों अजमेर शहर में किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं था। यह लोग उस जमाने में संजय दत्त के स्टाइल को कॉपी करके दिन भर शहर में मटरगस्ती किया करते थे। पैसे की कोई कमी नहीं थी, तो अय्याशी भी खूब होती थी इनके साथ। इनके दोस्तों का पूरा गैंग दिन भर शहर में यूं ही फिरता रहता था। वैसे तो यह धार्मिक परिवार से आता था, मगर फारूख चिश्ती ने राजनीति में कैरियर बनाने का फैसला किया था। इसी सिलसिले में फारूख पहले कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करता है, और फिर बहुत जल्द अजमेर कांग्रेस मोर्चा का जिला अध्यक्ष बन जाता है। जबकि नफीस चिश्ती यूथ विंग का ही उपजिल्हा अध्यक्ष बनता है। जबकि इस कांड के एक और आरोपी, सैयद अनवर चिश्ती, कांग्रेस यूथ विंग का जॉइंट सेक्रेटरी बन जाता है।

चिश्ती परिवार: राजनीतिक पकड़ और प्रभाव

भले ही इन लोगों का राजनीतिक पद बहुत बड़ा नहीं था, मगर यह जिस परिवार से आते थे, उसकी राजनीतिक पकड़ बहुत ज्यादा थी। बड़े-बड़े अफ़सर इन लोगों के सामने अपना सर झुकाते थे। मंत्री से लेकर विधायक, संसद तक, इन लोगों की खिदमत में लगे रहते थे। चिश्ती परिवार का रुतबा और पहुंच इतना था कि जिनको भी किसी काम में दिक्कत आती थी, वह मदद के लिए फारूख के ही पास आया करता था।

फारूख चिश्ती: लड़कियों के बीच लोकप्रियता

अपने मॉडर्न लाइफ स्टाइल की वजह से फारूख चिश्ती और इसके दुर्गे, आसपास के स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के बीच भी चर्चा का विषय बना रहता था। समय यूं ही बीत रहा था कि सोफिया सेकेंडरी स्कूल के 12th क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की एक दिन अपने दोस्त से कहती है कि मुझे गैस कनेक्शन लेना है, इसके अलावा मुझे कांग्रेस पार्टी भी करनी है, ताकि मैं राजनीति में आगे बढ़ सकूं।

सोफिया सेकेंडरी स्कूल: लड़कियों का शिकार

सोफिया सेकेंडरी स्कूल, उस दौर में अजमेर के सबसे बेहतरीन गर्ल्स स्कूल में गिना जाता था। यहां शहर के अधिकतर अमीर घरों की ही लड़कियां पढ़ती थीं। यह वह समय था जब मामूली गैस कनेक्शन के लिए भी बड़े अफ़सर से लेकर मंत्री, तथा सांसदों तक की सिफारिश करवानी पड़ती थी। इसलिए लड़की ने जिस दोस्त से गैस कनेक्शन वाली बात कही थी, वह कहता है कि अगर हम मिलकर फारूख चिश्ती से बात करें, तो वह तुम्हें गैस कनेक्शन भी दिलवा देगा, साथ ही कांग्रेस पार्टी में भी एक पद तुम्हें दे दी जाएगी। क्योंकि उसे लड़की ने भी फारूख चिश्ती के बारे में पहले काफी कुछ सुन रखा था। ऊपर से फारूख चिश्ती और उस लड़की के दोस्त की जान-पहचान भी थी, इसलिए वह फारूख चिश्ती से मिलने के लिए तैयार हो जाती है।

फारूख चिश्ती का धोखा और सैयद अनवर चिश्ती की भूमिका

मिलने के बाद फारूख चिश्ती से गैस कनेक्शन और कांग्रेस ज्वाइन करने के बारे में बात करती है। सभी बातें सुनने के बाद फारूख चिश्ती कहता है कि कोई बात नहीं, बहुत जल्द तुम्हें गैस कनेक्शन मिल जाएगा, साथ ही तुम्हें कांग्रेस पार्टी में भी जगह दे दी जाएगी।

इसी के कुछ दिनों बाद, फारूख चिश्ती लड़की को सैयद अनवर चिश्ती से मिलाता है। सैयद अनवर चिश्ती एक दिन उस लड़की से गैस कनेक्शन का फॉर्म भरवाता है, तथा यह कहते हुए उसकी कुछ तस्वीरें भी लेता है कि यह तस्वीरें गैस कनेक्शन लेने में लगेगी। यहां तक सब कुछ बिल्कुल नॉर्मल था।

फारूख चिश्ती का जाल और पहला शिकार

एक दिन, रोज की तरह वह लड़की सोफिया स्कूल से पढ़कर वापस आ रही थी, तभी रास्ते में उसके पास आकर एक मारुति वैन रुकी। वैन के रुकते ही लड़की ने पहचान लिया कि गाड़ी में फारूख चिश्ती के ही दोस्त मौजूद हैं। वह लोग इस लड़की से कहते हैं कि मैं भी उधर ही जा रहा हूं, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें आगे ड्रॉप कर दूंगा। क्योंकि लड़की उनसे पहले कई बार मिल चुकी थी, इसलिए लड़की उनके साथ चलने की हामी भरते हुए गाड़ी में बैठ जाती है और गाड़ी चल पड़ती है। गाड़ी अभी आगे बढ़ाई ही थी कि यह रोड छोड़कर दूसरी तरफ मुड़ जाती है। लड़की को जब शक होता है, तो वह पूछती है कि मुझे तो घर जाना था, यह तुम कहां ले जा रहे हो? इस पर वह लोग कहते हैं कि दरअसल, भाई ने तुम्हें अभी कुछ जरूरी काम से मिलने के लिए फॉर्म हाउस पर बुलाया है। इसके बाद वह लोग उसे लड़की को लेकर फारूख चिश्ती के फॉर्म हाउस पर चले जाते हैं।

फारूख चिश्ती की दरिंदगी और धमकियाँ

अब यहां जो लड़की के साथ होता है, उसे जानकर आपका कलेजा दहल जाएगा। लड़की के फॉर्म हाउस आते ही फारूख चिश्ती ने उसकी करने के दौरान, उसे लड़की की तस्वीरें भी खींची गईं। लड़की को इन लोगों ने कहा कि अगर इस बारे में तुमने किसी को भी बताया, तो तुम्हें परिवार समेत खत्म कर दूंगा। इसके अलावा हमने जो तुम्हारी तस्वीरें खींची हैं, वह पूरे शहर में पोस्टर बनवाकर छपवा देंगे। फिर तुम कहीं पर भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी। इन सब से लड़की बहुत ज्यादा डर गई, और वह चुपचाप घर चली गई। उसने अपनी आपबीती किसी को भी नहीं बताई।

ब्लैकमेलिंग का खेल और दूसरी लड़की का शिकार

अभी कुछ दिन ही बीते थे कि एक बार फिर से स्कूल जाने के क्रम में ही, फारूख चिश्ती के गरबे उस लड़की को फिर से रोकते हैं और फिर से उसे फॉर्म हाउस पर लेकर आते हैं। इस बार कई और लोग उसका करते हैं, और अंत में उसे वही तस्वीरें दिखाते हैं, जो कुछ दिनों पहले ही खींची गई थीं।

तस्वीरें दिखाने के बाद यह लोग उसे लड़की से कहते हैं कि अगर तुम चाहती हो कि यह तस्वीर हम तुम्हें वापस कर दें, या फिर इसे नष्ट करते हैं, तो बदले में तुम्हें हमारे पास अपनी एक सहेली को लेकर आना होगा। इतना सुनते ही लड़की इनके पैरों में गिरकर रहम की भीख मांगने लगी, और तस्वीरें वापस करने को कहने लगी। मगर इन दरिंदों पर कोई असर नहीं हुआ। उन लोगों ने लड़की को यहां तक कह दिया कि अगर तुम किसी दूसरी लड़की को यहां तक लेकर नहीं आई, तो मैं अगले ही दिन तुम्हारी यह तस्वीर तुम्हारे पड़ोसियों में बांट दूंगा।

लड़कियों का शोषण और ब्लैकमेलिंग का जाल

अब लड़की के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। वह रोज की तरह स्कूल जाना शुरू कर देती है, और फिर अपनी एक सहेली को किसी बहाने से फारूख चिश्ती के पास लेकर आ ही जाती है। फारूख चिश्ती और उसके दुर्गे इस लड़की का भी करते हैं, और उसकी भी तस्वीरें खींच लेते हैं। और कुछ दिनों बाद इस लड़की को भी उसी तरीके से धमकाया जाता है।

इस दूसरी लड़की को भी एक नई लड़की लाने को कहा जाता है, और बस यहीं से यह सिलसिला चल पड़ता है। लड़कियां आती गई, उनकी तस्वीरें ली जाती रही, और उन तस्वीरें से ब्लैकमेल करके और भी नई लड़कियों को ये दरिंदे अपने पास मंगवाते गए। देखते ही देखते पीड़ित लड़कियों की संख्या दर्जनों से सैकड़ों में पहुंच गई।

अजमेर घोटाला: खबरों का प्रसार और पुलिस की भूमिका

हालांकि, जब सब कुछ बर्दाश्त के बाहर होने लगा, तो इनमें से दो लड़कियों ने हिम्मत करके इस घटना के बारे में एक पुलिस कांस्टेबल को जानकारी दी। सब कुछ जानने के बाद, पुलिस कांस्टेबल ने पुलिस ठाणे में जाकर अपने बड़े अधिकारियों को इस बारे में बताया। शुरुआती जांच में ही इस बात के संकेत मिल गए कि बड़े पैमाने पर लड़कियों के साथ अत्याचार किया जा रहा है। शायद तभी पुलिस कुछ एक्शन ले लेती तो यह सिलसिला रुक सकता था।

पुलिस की लापरवाही और चिश्ती परिवार का प्रभाव

मगर जब जांच में सामने आता है कि इस कांड में तो शहर के सबसे रसूखदार परिवार के लड़के शामिल हैं, तो पुलिस वाले इस मामले को वहीं दबाकर रफा-दफा कर देते हैं। इसके बाद तो दरिंदों की दरिंदगी और भी बढ़ जाती है, और यह लोग अपने गैंग में नए-नए लोगों को शामिल करते चले जाते हैं, और उन लोगों तक भी ब्लैकमेल के जरिए लड़कियां मंगवाकर पहुंचाना शुरू कर देते हैं। पहले लड़कियां सिर्फ फारूख चिश्ती के फॉर्म हाउस पर आती थीं, मगर अब लड़कियों को नई-नई जगह पर भेजा जाने लगता है। अब एक ही लड़की के साथ एक ही दिन में कई-कई लोग करते हैं।

तस्वीरें का व्यापार: ब्लैकमेलिंग का नया आयाम

यह समय था जब स्मार्टफोन और डिजिटल कैमरे आम नहीं थे। फोटो पुराने जमाने के रील वाले कैमरे से लिए जाते थे। फिर उन रील से तस्वीरें निकलने के लिए उसे फोटो को लैब में भेजा जाता था। फारूख चिश्ती की दोस्ती महेश लूथरा नाम के एक शख्स से थी। महेश लूथरा, अजमेर शहर में ही एक बड़ा सा कलर लैब चलाया करता था। लड़कियों को करने के बाद, जो तस्वीरें खींची जाती थीं, वह रील साफ करने के लिए इसी महेश लूथरा के कलर लैब में भेजी जाती थीं।

फोटो लैब: ब्लैकमेलिंग का केंद्र

शुरू में तो गुपचुप तरीके से रील से फोटो निकलने के बाद उसे फारूख चिश्ती के पास पहुंचा दिया जाता था। मगर जैसे-जैसे लड़कियों की तादाद बढ़ती गई, फोटो लैब वालों का भी कम पद गया। इसके अलावा, अब लैब में काम करने वाले लोगों ने भी मौके का फायदा उठाना शुरू कर दिया। दरअसल, जो रील साफ करने के लिए आती थी, उसे एक तस्वीर बनाकर फारूख चिश्ती को भेज दिया जाता था। फिर चुपके से उसे फोटो की कई जेरोक्स कॉपीज बनाई जाती थीं।

फोटो लैब में काम करने वालों की दरिंदगी

अब लैब में काम करने वाले लड़कों ने एक दूसरा गंदा खेल शुरू कर दिया था। दरअसल, अब ये लोग खुद ही पुरानी तस्वीरें निकालकर पीड़ित लड़कियों तक जाने लगे और उन लड़कियों को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। वह लड़कियों से या तो पैसे लेते थे या फिर फोटो वापस करने के बदले में वह भी उन लड़कियों को करते थे।

फोटो का कारोबार और ब्लैकमेलिंग का फैलाव

इसके बाद तो फोटो लैब वालों की दरिंदगी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि इन्होंने लड़कियों की तस्वीरें बेचना शुरू कर दिया। अब जो व्यक्ति लड़कियों की तस्वीरें खरीदना चाहता था, वह खुद ही उन लड़कियों से कॉन्टेक्ट करता था। फिर वही ब्लैकमेलिंग का खौफनाक सिलसिला शुरू हो जाता था। इस स्थिति तो यह बन गई कि एक ही लड़की की दर्जनों जेरोक्स कॉपी बना दी गई, जिसे अलग-अलग लोगों से बेचा गया। और फिर अलग-अलग लोगों ने उन लड़कियों से संपर्क करके उन्हें ब्लैकमेल किया, या फिर क्यों ने उनका किया। कुल मिलाकर लड़की फोटो और ब्लैकमेलिंग का एक ऐसा जाल बढ़ गया कि उसमें अजमेर शहर की लड़कियां उलझती जा रही थीं। उनको बचाने वाला कोई नहीं था।

फारूख चिश्ती के गिरोह का फैलाव

अब तो जिसे भी लड़की की तस्वीर हाथ लगती थी, वह लड़की को ब्लैकमेल कर उसके साथ करता था। यहां तक कि फारूख चिश्ती के ड्राइवर और नौकरों ने भी लड़कियों के साथ करना शुरू कर दिया था। अब बड़े पैमाने पर पार्टियों में भी लड़कियों को बुलाया जाता था, जहां एक साथ कई-कई लोग एक लड़की के साथ करते थे। इस पार्टी में बड़े-बड़े परिवार के लड़कों के अलावा लोकल पॉलिटिशियन भी शामिल होते थे।

अजमेर घोटाला: प्रशासन की मिलीभगत

यह सब कुछ पूरे धड़ल्ले से बस इसलिए ही चल रहा था कि लोगों को भी मालूम चल गया था कि इस पूरे कांड की जानकारी प्रशासन को भी है। लेकिन चिश्ती परिवार के लड़कों के इस कांड में शामिल होने की वजह से कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा था।

अजमेर घोटाला: पत्रकारिता की भूमिका

अब तक 200 से 300 लड़कियों को फारूख चिश्ती और उसके दुर्गे अपना शिकार चुके थे। वहीं, पहले जहां अधिकतर लड़कियां सिर्फ सोफिया सेकेंडरी स्कूल की थीं, अब सावित्री स्कूल की लड़कियों को भी लोगों ने अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया था।

1990 से शुरू हुआ यह खेल, 1992 में भी जारी था। इस गंदे खेल की जानकारी अब स्थानीय स्टार पर काम करने वाले पत्रकारों, पुलिस वालों, तथा राजनेताओं को भी हो गई थी, मगर उनमें से कोई भी लड़कियों की मदद करने, तथा इन दरिंदों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए सामने नहीं आ रहा था। बल्कि उलटे, कई पत्रकारों ने भी उन तस्वीरें को हासिल कर लड़कियों को ब्लैकमेल किया, और उनसे पैसे तो क्यों ने। तो लड़कियों के साथ उलटे ही किया।

महेश लूथरा और देवेंद्र जैन: फोटो लैब का भ्रष्टाचार

जिस लैब में लड़कियों की तस्वीरें निकल जाती थीं, वहां पुरुषोत्तम नाम का लड़का भी काम किया करता था। एक दिन पुरुषोत्तम देखता है कि उसका देवेंद्र जैन नाम का पड़ोसी एडल्ट मैगज़ीन देख रहा है। देवेंद्र को ऐसा करते देख पुरुषोत्तम कहता है कि तुम क्या देख रहे हो? यह तो कुछ भी नहीं है, मैं तुम्हें असल चीज दिखा सकता हूं। देवेंद्र
बन जाता है और कहता है कि असल चीज क्या है? इसी के बाद देवेंद्र पुरुषोत्तम से डील करता है, और उसे डील के तहत पुरुषोत्तम लैब से लड़कियों की तस्वीरें निकालकर देवेंद्र को देता है।

दैनिक नवज्योति और अजमेर घोटाले का खुलासा

उन तस्वीरें को देखकर देवेंद्र हैरान रह जाता है। ज्यादातर तस्वीरें इसी शहर में आसपास रहने वाली लड़कियों की थीं। देवेंद्र समझ जाता है कि यह खेल बहुत बड़ा है, और इसी के बाद वह उन तस्वीरें की और कॉपी बनवाता है, जिनमें से कुछ तस्वीरें उन दिनों अजमेर में छापने वाले हिंदी अखबार “दैनिक नवज्योति” को भेजता है। अब इस मामले में दैनिक नवज्योति अपने स्टार से जांच शुरू कर देता है।

अजमेर घोटाला: सबूतों का संग्रह और पुलिस की उदासीनता

कई महीने की मेहनत के बाद नवज्योति अखबार के संपादक दीनबंधु चौधरी ने अपने स्टार से दर्जनों सबूत इकट्ठे कर लिए। इसके बाद उन्होंने शहर के कई महिला पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें इस ब्लैकमेलिंग घोटाले के बारे में बताया। मगर कोई भी फारूख चिश्ती और उसके गैंग के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। ज्यादातर अधिकारियों ने यह कहते हुए इस मामले को दबाने की कोशिश की कि शिकार बनी ज्यादातर लड़कियां हिंदू धर्म की हैं, जबकि इस दरिंदगी को अंजाम देने वाले अपराधियों में ज्यादातर मुसलमान हैं। तो अगर इस केस का खुलासा हुआ, तो शहर में दंगा भड़क सकता है। क्योंकि 1992 का दौर बहुत ही नाजुक दौर था। देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़े पैमाने पर दंगे भी हो रहे थे, और धार्मिक तनाव काफी बड़ा हुआ था।

अजमेर घोटाला: पत्रकारों की हिम्मत और सच का प्रकाशन

कई अधिकारियों ने तो चिश्ती परिवार के रसूख और पकड़ को देखते हुए ही किसी तरह की कार्यवाही से इनकार कर दिया। कई महीने तक दीनबंधु चौधरी एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी, और एक नेता से दूसरे नेता की चौखट पर भागते रहे, मगर किसी ने भी उनकी नहीं सुनी। अंत में इस पूरी खबर को अपने अखबार में छापने का फैसला किया। इसी के बाद 22 अप्रैल 1992 को नवज्योति में उन्होंने अजमेर घोटाला पर एक डिटेल खबर छापी। उम्मीद की जा रही थी कि इस खबर के छपने के बाद पुलिस मजबूरी में जरूर आरोपियों पर कार्यवाही करेगी।

अजमेर घोटाला: पुलिस की लापरवाही और दबाव

मगर हुआ इसका बिल्कुल उल्टा। पुलिस ने इस खबर को बिल्कुल नजरअंदाज करना शुरू कर दिया, साथ ही कहा कि इन आरोपियों में कोई दम नहीं है, क्योंकि एक भी सबूत पेश नहीं किया गया है। इस खबर के छपने के बाद नवज्योति के लिए काम करने वाले पत्रकारों, तथा संपादक को धमकियां मिलनी शुरू हो गई। हर तरीके से उन्हें रोकने की कोशिश की जाती थी। मगर नवज्योति इन लड़ाई को किसी भी कीमत पर इंसाफ दिलवाना चाहती थी। इसलिए जब कहीं से किसी ने एक्शन नहीं लिया, तो 15 मई 1992 को नवज्योति ने एक बार फिर से इस खबर को कवर किया, और इस बार तस्वीरों के साथ खबर छापी गई।

अजमेर घोटाला: जनता का विरोध और पुलिस की बेरुखी

उन तस्वीरों में कई आरोपियों को साफ देखा जा सकता था, जबकि लड़कियों के चेहरे धुंधले कर दिए गए थे। 15 मई के अलावा, अगले दिन यानी 16 मई 1992 को भी प्रमुखता से इस खबर को अखबार में छापा गया, और दर्जनों लड़कियों की तस्वीरें धुंधली करके छापी गई। क्योंकि इस बार खबर सबूत के साथ छपी थी, इसलिए अजमेर की आम जनता सड़क पर उतर आई। पूरे अजमेर में गुस्से की लहर चल पड़ी। हर कोई जल्द से जल्द फारूख चिश्ती और उसके गुर्गे पर कार्यवाही की मांग करने लगा। शहर में दंगे जैसे हालत बन गए। पहली बार अजमेर शहर को पूरी

अजमेर घोटाला: प्रशासन का दबाव और आरोपियों की गिरफ्तारी

संगठनों, तथा राजनीतिक दलों द्वारा तीन दिन के अजमेर बंद का ऐलान कर दिया गया। हालत इतने बिगड़ गए कि अजमेर शहर के इतिहास में पहली बार प्रशासन द्वारा कर्फ्यू लागू कर दिया गया। पुलिस के सामने आरोपियों पर कार्यवाही करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था, मगर पुलिस इतनी बेशर्मी से काम कर रही थी कि लोगों का गुस्सा एक बार फिर से उबाल मरने लगा था। पुलिस की ओर से कहा गया कि केवल अखबार में छपी खबर के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, बल्कि जब तक कोई शिकायत दर्ज नहीं करवाए, हम कुछ भी एक्शन नहीं ले सकते। नवज्योति के अलावा इस खबर को स्थानीय स्टार पर ही छापने वाले न्यूजपेपर “लहरों की बरखा” में भी प्रमुखता से छापा जाने लगा। इस अखबार को पत्रकार मदन सिंह चलाते थे। उन्होंने दिन-रात इसी केस पर काम करना शुरू कर दिया और रोज-रोज नए खुलासे करने लगे।

अजमेर घोटाला: पत्रकार मदन सिंह की हत्या

इसका नतीजा यह हुआ कि मदन सिंह को धमकियां मिलनी शुरू हो गई, और अंत में एक दिन उन पर जानलेवा हमला भी हो गया। हालांकि वह हमले में बच गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया। जिस अस्पताल में मदन सिंह का इलाज हो रहा था, उसके बाहर सुरक्षा में कुछ पुलिस वाले भी तैनात कर दिए गए थे। इसके बाद छूटे हुए कुछ लोग अस्पताल में घुस गए और उन्होंने अस्पताल में ही मदन सिंह को गोलियों से भूनकर मार डाला। वेल, मदन सिंह की मौत से जुड़ी एक अपडेट जनवरी 2023 में ही आई है। उसके बारे में हम आपको वीडियो में आगे बताएंगे।

अजमेर घोटाला: पीड़ितों की हिम्मत और शिकायत दर्ज करवाना

फिलहाल केस पर वापस चलते हैं। सभी खुलासों के बाद पुलिस, आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए फिर से इंतजार कर रही थी। मगर लड़कियों को इस तरह से डराया-धमकाया गया था कि कोई भी लड़की शिकायत दर्ज करवाने के लिए आगे नहीं आ रही थी। बाद में कई NGO ने सामने आकर फोटो के आधार पर लड़कियों का पता लगाकर उन्हें आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए समझाना शुरू कर दिया। उनकी मेहनत रंग लाई और कुल 30 लड़कियां सामने आईं जिन्होंने जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाई।

अजमेर घोटाला: पीड़ितों को धमकाना और दबाव

जैसे ही 30 लड़कियां बाहर निकलकर शिकायत दर्ज करवाने आईं, उनके साथ फिर से हैवानियत का खेल शुरू हो गया। दरअसल, उन्हें हर तरह से डराया-धमकाया जाने लगा। आरोपियों ने लड़कियों को पुलिस ठाणे तक जाने से रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां पहली बार 30 लड़कियां सामने आईं, उनमें से ज्यादातर लड़कियां दोबारा कभी ठाणे की तरफ नहीं गईं। इतना ही नहीं, कुछ लड़कियां दोबारा तो गई भी, फिर वह भी पीछे हट गईं, और अंत में सिर्फ दो लड़कियां ही इस केस की शिकायतकर्ता के तौर पर बचीं।

अजमेर घोटाला: जांच और मुकदमा

इस केस में जितनी भी लड़कियों का नाम पीड़ित के तौर पर शामिल था, उनमें से ज्यादातर के परिवार वालों ने शहर को तत्काल ही छोड़ दिया और वह कहीं अनजान जगह रहने चले गए। खैर, पुलिस में कुछ शिकायतें दर्ज हो गई थीं। उसी के आधार पर जांच आगे बढ़ाई गई, और गिरफ्तारी का सिलसिला भी शुरू हुआ। 30 मई 1992 को इस मामले में पहली FIR दर्ज की गई। कमाल की बात तो यह थी कि इस पहली FIR में नफीस चिश्ती, और फारूख चिश्ती का नाम शामिल नहीं किया गया था।

अजमेर घोटाला: मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी और मुकदमा

हालांकि आगे की जांच के बाद, फारूख चिश्ती, नफीस चिश्ती, और सैयद अनवर चिश्ती को ही इस पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड बताया गया। FIR दर्ज करने के बाद कुल 18 लोगों की पहचान आरोपियों के तौर पर की गई। आरोपी बनाए गए लोगों में फारूख चिश्ती, नफीस चिश्ती, अनवर चिश्ती के अलावा कैलाश सोनी, महेश लूथरा, हरीश तोलानी, शंभू, इत्यादि भी शामिल थे। जांच में यह भी पता चला कि पीड़ित लड़कियां केवल एक ही धर्म की नहीं थीं, बल्कि कई लड़कियां तो नफीस और फारूख चिश्ती की रिश्तेदार भी थीं। जांच के बाद पुलिस ने लगभग 250 पन्नों की चार्जशीट कोर्ट में पेश की।

अजमेर घोटाला: मुकदमे का फैसला और सजा

दोबारा आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई थी। चार्जशीट में कैलाश सोनी, हरीश तोलानी, फारूख चिश्ती, इशरत अली, मोइजुल्ला उर्फ पूजन, इलाहाबाद, परवेज अंसारी, पुरुषोत्तम उर्फ बबली, महेश लूथरा, अनवर चिश्ती, शंभू, जरूर चिश्ती, तथा नफीस उर्फ टार्जन का नाम शामिल था। इस मामले की सुनवाई की शुरुआत अजमेर सेशन कोर्ट में हुई। लगभग छह साल की सुनवाई के बाद, 18 मई 1998 को अजमेर सेशन कोर्ट द्वारा 18 में से 8 आरोपियों को लड़कियों के साथ करने, और उनका अपहरण करने के आरोप में उम्र कैद की सजा सुनाई गई। सजा पाने वाले लोगों में मौजूद पूत्तन, परवेज अंसारी, लोगों के अलावा बाकी लोगों के खिलाफ जांच जारी थी, जबकि इनमें से कुछ लोग फरार थे। फरार लोगों में मुख्य आरोपियों में से एक नफीस चिश्ती भी शामिल था, जिसे 2003 में गिरफ्तार किया गया।

अजमेर घोटाला: सजा में कमी और अपराधियों की रिहाई

जबकि दूसरे फरार अपराधी इकबाल भट्ट को 2005 में गिरफ्तार किया गया। लोगों ने सजा के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में, और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। पहले हाईकोर्ट ने कई सबूत के आधार पर कई आरोपियों को बरी कर दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट ने चार आरोपियों को दी गई उम्र कैद की सजा को बहुत ज्यादा सख्त सजा बताते हुए कम करने का फैसला किया, और उन्हें सिर्फ 10 साल की सजा दी गई। इस केस के मुख्य आरोपियों में से एक फारूख चिश्ती इतना शातिर था कि उसने खुद को फर्जी मेडिकल कागज के आधार पर पागल घोषित करवा लिया। कोर्ट ने भी उसे सही मानते हुए शुरुआती ट्रायल में कोई सजा नहीं दी, और उसे बरी कर दिया।

अजमेर घोटाला: फारूख चिश्ती की रिहाई और मामला अभी भी लटका हुआ है

मगर 2007 में फास्ट ट्रैक कोर्ट में फारूख चिश्ती को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। केस यहीं खत्म नहीं हुआ, बल्कि कुछ मामले अब भी राजस्थान हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं। 2013 में राजस्थान हाई कोर्ट ने फारूख चिश्ती को दी गई उम्र कैद की सजा को कम करते हुए यह कहते हुए जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया कि फारूख चिश्ती काफी समय जेल में काट चुका है। इसी के बाद फारूख चिश्ती को जेल से रिहा कर दिया गया। इस केस में सुहेल खान नाम का एक आरोपी लंबे समय से फरार चल रहा था। उसने 26 साल बाद, यानी 2018 में कोर्ट में जाकर सरेंडर किया। फिलहाल, इसे कोई सजा नहीं दी गई है, और यह बेल पर है। इसके अलावा इस केस का एक आरोपी आज भी फरार है। बताया जा रहा है कि वह अमेरिका में है। उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया जा चुका है।

अजमेर घोटाला: पीड़ितों की अन्याय और अपराधियों का सफर

इसके अलावा, कई आरोपियों के खिलाफ फिलहाल POSCO कोर्ट में अब भी मामला चल रहा है, लेकिन एक भी आरोपी जेल में नहीं है, बल्कि सभी बेल पर आराम से मजे से अपनी जिंदगी काट रहे हैं। अगर आपको याद हो, तो वीडियो में कुछ देर पहले ही हमने पत्रकार मदन सिंह का जिक्र किया था, जो लगातार इसी केस को कवर करते हुए खबरें कर रहे थे। इस कारण उनकी हत्या कर दी गई थी। अब अपडेट यह है कि 7 जनवरी 2023 को मदन सिंह के दो बेटों ने मिलकर सवाई सिंह नाम के एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी। कहा जाता है कि सवाई सिंह ने ही मदन सिंह की हत्या की थी।

मदन सिंह की हत्या का बदला और कोर्ट रिकॉर्ड का सच

सवाई सिंह की हत्या करने के बाद, मदन सिंह के बेटों ने चिल्लाकर कहा कि हमने अपने पिता की मौत का बदला लिया है। फिलहाल, मदन सिंह के दोनों बेटों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है। चलिए, केस पर वापस आते हैं। कोर्ट रिकॉर्ड की बात करें, तो कोर्ट रिकॉर्ड में सिर्फ 16 लड़कियों को ही पीड़ित बताया गया है, जबकि अलग-अलग सोर्स से पता चला है कि इन दरिंदों ने कम से कम 100 लड़कियों को अपना शिकार बनाया था।

अजमेर घोटाला: पीड़ितों का दर्द और अन्याय

दवा तो यहां तक किया जाता है कि शिकार हुई लड़कियों की संख्या 300, या फिर 500 तक भी हो सकती है। इतनी अधिक संख्या में शिकार होने के बावजूद कुछ ही लड़कियां सामने आ सकीं, इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि लड़कियों को बहुत ज्यादा परेशान किया जाने लगा। इसी कारण कम से कम छह लड़कियों ने कर ली थी। एक के बाद एक जब छह लड़कियों ने कर ली थी, तभी सोफिया स्कूल चर्चा में आया, और फिर इस केस की परत खुलनी शुरू हुई। उस दौर में सोफिया स्कूल तथा सावित्री स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर लड़कियों ने इस केस के खुलासे के बाद स्कूल छोड़ दिया, तो क्यों ने शहर ही छोड़ दिया।

अजमेर घोटाला: न्याय की जटिल यात्रा

हालत तो ऐसे हो गए थे कि अजमेर शहर की लड़कियों की शादियां भी काफी मुश्किल से हो रही थीं। जो शादी करने के लिए राजी भी होता था, वह पहले पुलिस ठाणे और अलग-अलग लैब्स में जाकर फोटो के जरिए यह पता करता था कि यह लड़की भी इन अपराधियों की पीड़िता में शामिल थी या नहीं। जैसा कि अभी हमने बताया, इस केस से जुड़े सभी आरोपी फिलहाल बेल लेकर जेल के बाहर हैं। जबकि इसकी सुनवाई आज भी समय-समय पर होती रहती है, और इस सिलसिले में गवाही देने के लिए अक्सर पीड़ित महिला को कोर्ट तक आना पड़ता है।

अजमेर घोटाला: पीड़ित महिला का दर्द और अन्याय

इसी से जुड़ी एक केस की सुनवाई के सिलसिले में एक बार फिर से दिसंबर 2022 में एक महिला को गवाही देने के लिए बुलाया गया। सुनवाई के दौरान उन्होंने कोर्ट में जज और वकील से रोते हुए कहा कि आप मुझे अब भी बार-बार कोर्ट में क्यों बुला रहे हैं? अब तो 30 साल हो गए हैं, मैं अब दादी बन चुकी हूं, मुझे अकेला छोड़ दें। मेरा भी एक परिवार है, मैं उन्हें क्या बताती रहूं?

अजमेर घोटाला: न्याय की मांग और समापन

महिला के इतना कहने के बाद पूरे कोर्ट परिसर में कई मिनट तक सन्नाटा पसार गया। किसी के पास महिला की इस बात का जवाब नहीं था। शायद इस केस की सैकड़ों पीड़ित महिलाओं को पहले ही अंदाजा हो गया था कि यहां इंसाफ की लड़ाई सजा से कम नहीं है। इसीलिए वह तब पीछे हट गई थीं। जो महिलाएं हिम्मत जताकर आगे आई थीं,

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