सनसनीखेज खुलासा: यूरोप जंग की तैयारी में
भिड़ा क्या रूस करने वाला है दुनिया का सबसे बड़ा हमला यूरोप पर? लिटिल बॉय, वह परमाणु बम जो अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर गिराया था, एक यूरेनियम 235 बम था, 15 किलो टन ऑफ टीएनटी की ईल्ड थी। इसने 13 स्क्वायर किलोमीटर के इलाके को सपाट कर दिया था और 140000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। सालों-सालों तक जो जेनेटिक डैमेज हुआ और बच्चे अपंग पैदा हुए, सु अलग। दूसरा बॉम, नागासाकी, जिसका नाम फैट मैन था, प्लूटोनियम 239 बम था, 21 किलोन ऑफ टीएनटी की ईल्ड थी। 74000 लोगों की जिंदगी इसने ली थी और 6.7 स्क्वायर किलोमीटर के इलाके को इसने सपाट किया था। पर यह सन 1940 का दशक था। आज हम 2020-2024 के दशक में जी रहे हैं, और आज दुनिया की दो सबसे बड़ी सुपर पावर, रशिया और अमेरिका, आमने-सामने हो रही हैं।
यूरोप की तैयारी और खुफिया एजेंसियां
क्योंकि जिस तरीके से यूरोप तैयारी कर रहा है, ऐसा लग रहा है कि उसे भनक पड़ चुकी है। दुनिया भर की खुफिया एजेंसी, CIA, FBI, KGB, RAW, फाइव आइज नेटवर्क, सब के सब ओवरटाइम कर रहे हैं। क्या यूरोप को भनक लग चुकी है कि रूस बड़ा हमला कर सकता है नेटो कंट्रीज पर? यूरोप में कई सारी नेटो कंट्रीज हैं। और आज की तारीख में रूस और अमेरिका के न्यूक्लियर बम की अगर ताकत की बात करें, तो B83, सबसे ताकतवर अमेरिकी न्यूक्लियर बम जो मौजूद है, उसकी ताकत है 1.2 मेगा टन (1200 किलोटन)।
न्यूक्लियर बमों की ताकत और संभावित तबाही
कितना नुकसान पहुंचाएगा? पिछला नागासाकी और हिरोशिमा में जो हुआ था, उससे 10 गुना ज्यादा नुकसान! 80 से 100 स्क्वायर किलोमीटर के इलाके को सपाट कर देगा, और लाखों लोगों की जान जाएगी, मिलियंस, करोड़ों लोगों की जान जा सकती है। यह अमेरिका का बम था, B83, सबसे खतरनाक न्यूक्लियर बम अमेरिका के पास जो है। बात करें दुनिया के सबसे खतरनाक न्यूक्लियर बम की, वह रूस के पास है: Tsar Bomba। Tsar Bomba अकेले बेहद भयानक है, 50 मेगा टन! कहां B83, 1.2 मेगा टन अमेरिका का, और कहां Tsar Bomba, 50 मेगा टन (500 किलोटन), जो कि 3200 स्क्वायर किलोमीटर के इलाके को पूरी तरीके से सपाट कर सकता है। यूरोप में अगर तबाही मचाना रही, तो रूस इसी बम का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कर देगा। अगर वर्ल्ड वॉर न्यूक्लियर हुआ, तो…
मीडिया और सच्चाई
दोस्तों, अगर आपको ऐसा लग रहा है कि यह विश्व युद्ध 3 या बहुत कॉम्प्लिकेटेड सा है, चांसेस बहुत कम है इसके होने के, ऐसा नहीं होगा, इतने बेवकूफ थोड़ी होंगे दुनिया चलाने वाले बड़े-बड़े देश? यह धरती को इस तरीके से खतरे में नहीं डालेंगे, यह बम का इस्तेमाल नहीं करेंगे। अगर आपको ऐसा लग रहा है, तो बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं आप। क्योंकि हमें वही दिखता है जो मीडिया दिखाता है, और मीडिया हर चीज नहीं दिखा सकता। आधे से ज्यादा, आधे से ज्यादा क्या कहें, 80% से 90% मीडिया, दुनिया जो चलाती है, वह किसी न किसी तरीके से स्टेट के कंट्रोल से चलता है। यानी कि दुनिया भर की सरकारों के कंट्रोल से चलता है या तो फिर उनके टेरर में खबर नहीं दिखा सकता। हमारे ऊपर भी लिमिटेशन है, सभी के ऊपर लिमिटेशंस होती हैं।
यूरोप का पुराना हथियार भंडार और आधुनिकीकरण
YouTube, पांच दशकों से नहीं, लंबे समय से उसने जंग की कोई तैयारी नहीं की है। आपको यकीन नहीं होगा, यूरोप के पास जो सबसे ज्यादा एम्युनिशन मौजूद है, गोला-बारूद मौजूद है, वह कोल्ड वॉर एरा का था, जब सोवियत यूनियन और अमेरिका के बीच में द्वंद चलता करता था। आमने-सामने लड़ाई नहीं करते थे, लेकिन अंदर ही अंदर रेस करते थे, चाहे वह वेपन्स की रेस हो, चाहे स्पेस की रेस हो। उस कालखंड में जो हथियारों की तैयारी करवाई गई थी, यूरोप के पास में वही स्टॉक पाइल यूरोप के पास पड़ा हुआ है। और उसको री-आर्म करना चाहता है, मॉडर्नाइज करना चाहता है अपने वेपन्स को, यूरोप।
घटनाक्रमों की श्रृंखला और रक्षा क्षेत्र में निवेश
और आज हम वह सारा चेन ऑफ इवेंट आपको बताएंगे जो तैयारियां कर रहा है यूरोप, उसके ऊपर से पर्दा हटाएंगे। और आपको यकीन हो जाएगा कि भाई ऐसे कालखंड में, जब पूरी दुनिया एक बड़ी महामारी से उबरी है, दुनिया भर के मार्केट बंद थे, सारे देशों में लॉकडाउन लगा हुआ था, अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी थी, ले-देकर अपने दोनों पैरों पर खड़े होने की कोशिश हो रही थी, और उसी बीच दो जंग छड़ती हैं। और दो जंग छड़ने के बाद में होता क्या है? अचानक से इन्वेस्टमेंट शुरू हो जाता है, गोला-बारूद, हथियारों पर, वेपन सिस्टम्स पर, मिसाइल सिस्टम्स पर, फाइटर जेट्स पर, एंटी-सैटेलाइट वेपन्स पर। ऐसा कैसे हो सकता है? जब तक किसी चीज की जरूरत नहीं होगी, ये सारी कंट्रीज, इन्क्लूडिंग भारत, दुनिया भर के सारे देश, आखिर क्यों डिफेंस सेक्टर पर इतना बड़ा इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं?
रूस की अर्थव्यवस्था और सैन्य खर्च
भारत अकेला दुनिया का सबसे बड़ा वेपन बायर है। और रशिया को देखिए, रशिया की पूरी इकोनॉमी जो चल रही है, अभी आपने देखा, कहा जा रहा था, इतने सारे सैंक्शन लगे हैं रशिया के ऊपर में, तमाम तरीके के सैंक्शंस रशिया के ऊपर लगाए गए हैं। लेकिन इतने सारे सैंक्शंस के बाद भी उसकी इकोनॉमी बूम पर है। वहां पर यह खबर आ रही है कि जो पर कैपिटा इनकम है, वह बढ़ चुकी है रशिया के अंदर। कैसे हुआ? वहां वह वॉर इकोनॉमी चला रहे हैं। यानी कि क्योंकि सरकार इन्वेस्टमेंट कर रही है हथियार बनाने वाली फैक्ट्रीज पर और नए सोल्जर्स के रिक्रूटमेंट पर। तो लोगों के पास में जो बेरोजगार बैठे थे, उनके पास में जॉब आ गया है, उन्हें रिक्रूटमेंट, भर्ती मिल रही है फौज में। तो इससे वहां पर आमदनी बढ़ गई आम लोगों की।
यूरोपीय एयर डिफेंस शील्ड
यह अमूमन हर जगह देखा जा रहा है। जर्मनी, जो इतने बड़े रिसेशन पर है, वह कहता है, जर्मनी जैसा देश, पूरा यूरोप रिसेशन में जाने वाला है, मंदी में जाने वाला है। वह देश कह रहे हैं कि हमको यूरोपियन एयर डिफेंस शील्ड बनानी चाहिए। यानी कि ऐसा सुरक्षात्मक बुलबुला, एक ऐसा अदृश्य एयर सुरक्षा कवच, जो कि रूस के हमलों से यूरोप को सेफगार्ड कर सके। 22 कंट्रीज ने इसमें साइन कर दिया, और जर्मनी के ओलाफ शोल्ज, वहां के चांसलर ने इस चीज को प्रपोज किया, यूरोपियन कंट्रीज के सामने में, ईयू के सामने में, यूरोपियन यूनियन के सामने में। और इतने बड़े लेवल पर वहां पर जो पैसा इन्वेस्ट किया जा रहा है, पैसा है ही नहीं वहां पर। तो जरूर इन्हें कहीं ना कहीं से इंफॉर्मेशन मिली है कि एक बड़ी जंग होने वाली है, और इसीलिए यूरोप इतने बड़े पैमाने पर तैयारी कर रहा है।
यूके और जर्मनी की सैन्य क्षमता
क्या तैयारी कर रहा है? ध्यान से सुनिए, लेकिन उससे पहले जरा इस रिपोर्ट को देखिए: UK General Admits Military Could Not Fight Russia for More Than a Couple of Months। यानी कि यूके का मिलिट्री जनरल खुद इस बात को एक्सेप्ट कर रहा है कि अगर जंग होती है, रूस हमला कर देता है ब्रिटेन के ऊपर में, और चांसेस है कि यूके, यूनाइटेड किंगडम को जो है अटैक कर सकता है रशिया। जिस प्रकार की स्थिति देखी जा रही है, यूके जिस तरीके से वेपन्स दे रहा है यूक्रेन को, तो रशिया ने कई बार यह बात कही भी। तो अगर यूके और रशिया के बीच में जंग होती है, आज की तारीख में, तो दो महीने की जंग के बाद यूके का पूरा वेपन भंडार खाली हो जाएगा, और रूस जो है पूरी तरीके से यूके पर कब्जा कर सकता है। यह खुद आप देख लीजिए। लेकिन बात सिर्फ यहां तक सीमित नहीं है। जर्मनी की मिलिट्री ने भी यह माना है कि दो दिन अगर लड़ाई कर ली जर्मनी ने रशिया के साथ में, तो उसको घुटने टेकने पड़ जाएंगे।
यूरोपीय देशों की सैन्य तैयारी और चुनौतियां
जर्मनी अलग प्रकार की स्पेसिफिकेशन रखता है। देखिए, यूरोपियन कंट्रीज ने हमेशा से एकजुटता के साथ काम किया है। यूरोप साथ में आ गया, नेटो भी आ गया। नेटो ने एकजुटता के साथ काम किया है। तो जो छोटी कंट्रीज थीं, जिनके पास उतनी ताकत नहीं थी, जैसे पोलैंड जैसी कंट्री, उनके पास उतनी ताकत नहीं है। लेकिन नेटो का बैकिंग मिल गया। तो नेटो के पास तो फ्रांस के भी फाइटर जेट मौजूद हैं, यूएसए के फाइटर जेट भी मौजूद हैं। समझ रहे हैं इस बात को? तो उसको कवर मिल जाता है। तो ये अलग-अलग कंट्रीज ने अलग-अलग स्पेसिफिकेशन अपने डेवलप किए। जर्मनी के पास में एयर स्पेस डिफेंस करने की जो टेक्नोलॉजी काफी अच्छी है, लेकिन बाकी सारी चीजें कमजोर हैं। अगर जर्मनी के साथ सीधा लड़ाई हो जाती है रशिया की, दो दिन से ज्यादा नहीं लड़ पाएगा जर्मनी रशिया के साथ में। यह खबर निकल कर सामने आ रही है।
कोल्ड वॉर के बाद यूरोप की सैन्य स्थिति
दोस्तों, कोल्ड वॉर की बात करें, तो कोल्ड वॉर के दौरान में यूरोप और सोवियत यूनियन दोनों के पास में बहुत बड़ी मिलिट्री फोर्सेस हुआ करती थीं। लेकिन जैसे कोल्ड वॉर ख़त्म हुआ, तो उसके बाद कोई भी ऐसा थ्रेट, ऐसा कोई खतरा नहीं था उनके अस्तित्व को, कोई खतरा नहीं था यूरोपियन यूनियन के। तो वहां पर उन्होंने अपनी मिलिट्री को जो है छोटा करना शुरू कर दिया, उसके ऊपर पैसा खर्च करना कम कर दिया। जिसकी वजह से उनके सारे इक्विपमेंट अब पुराने हो चुके हैं, एम्युनिशन उनके पुराने हो चुके हैं, उनकी मिलिट्री छोटी हो चुकी है, उनके बजट जो स्पेंड करते हैं, उसके ऊपर वह कम हो चुका है।
यूरोप का आधुनिकीकरण और सैन्य खर्च
लेकिन अब ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर जो टेंशन देखने को मिल रही है, रशिया जिस तरीके से अग्रसर होता जा रहा है, नेटो कंट्रीज के एकदम करीब, आमना-सामना होना पड़ रहा है यूक्रेन के चलते, और अमेरिका भी एकदम अग्रेसर बना हुआ है। इन सारी चीज को देखते हुए अब यूरोप को डर लगने लगा है, और तभी यूरोप ने बड़े पैमाने पर चीजें करनी शुरू कर दी हैं। मॉडर्नाइजेशन शुरू कर दिया, बड़े पैमाने पर F35 फाइटर जेट खरीदे जा रहे हैं यूरोपियन कंट्रीज के द्वारा।
गैर-नेटो देशों का सैन्य खर्च
दोस्तों, नॉन-नेटो कंट्री जो नेटो में नहीं है, स्विट्जरलैंड, वह तक F35 को खरीद रहा है अपने एयरफोर्स के लिए। आप समझ लीजिए बात को, कितना बड़ा डर है इनके अंदर। सारी यूरोपियन कंट्रीज हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलपमेंट करने में भरभर के पैसा डाल रही हैं, जबकि उनके देश के अंदर रिसेशन चल रहा है। यूके, यूके ने 1.26 बिलियन डॉलर डाले हैं हाइपरसोनिक मिसाइल को डेवलप करने में।
यूरोपीय रक्षा निधि और हाइपरसोनिक मिसाइल
सन 2030 तक के यूरोपियन डिफेंस फंड, इसने बड़े पैमाने पर जो है जॉइंट हाइपरसोनिक, काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी डेवलप करने के लिए पैसा लगाया है। नॉर्वे, जर्मनी मिलकर के इसी प्रकार के एक मिसाइल, 3SM, बना रहे हैं। यह भी हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी पर बेस्ड है। 2035 तक इसका पूरा डेवलपमेंट कंप्लीट हो जाएगा, यह कहा जा रहा है। तो सब किस ओर इशारा कर रहा है?
नेटो का सैन्य बुनियादी ढांचा विकास
नेटो यह बहुत सारे मल्टीनेशनल रूट्स बना रहा है रैपिड ट्रूप डेप्लॉयमेंट के लिए ईस्टर्न यूरोप में। ईस्टर्न यूरोप, रशिया के करीब जो पड़ रहा है, वहां पर नेटो कंट्रीज, जो जितने भी नेटो कंट्रीज एक साथ जुड़े हुए हैं, उसमें जो है सड़कें बनाई जा रही हैं, ताकि जब जरूरत पड़े, तेजी से जो हमारे ट्रूप्स हैं, वह पहुंच जाएं बॉर्डर तक के। यूरोपियन स्काई शील्ड इनिशिएटिव, एयर डिफेंस, हमने आपको बताया था कि सारे यूरोपियन कंट्रीज और नेटो कंट्रीज मिलकर के मल्टी लेयर्ड एयर डिफेंस नेटवर्क बनाने वाले हैं। और जर्मनी जो है, वह यूरोपियन स्काई शील्ड इनिशिएटिव को आगे लेकर आ रहा है। किसी प्रकार की बैलिस्टिक मिसाइल, क्रूज मिसाइल, इनके देश के अंदर एंटर नहीं कर पाएगी, यूरोप के अंदर ना एंटर कर पाए। इसके बड़े पैमाने पर जो है निवेश हो रहा है।
निष्कर्ष और प्रश्न
तो यह सब क्यों हो रहा है? अचानक से ऐसा क्यों हो रहा है? साफ इशारा है कि इन्हें कहीं ना कहीं से खबर लग चुकी है कि अब स्थिति कोल्ड वॉर जैसी नहीं रही। कोल्ड वॉर के बाद ऐसा लग रहा था कि दुनिया भर में शांति रहेगी, वह कालखंड, शांति काल ख़त्म हो चुका है और यह युद्ध का एरा फिर से शुरू हो चुका है। तो क्या रूस यूरोप पर बरसने वाला है? क्या लगता है आपको, दोस्तों? क्या वाकई में वर्ल्ड वॉर 3 हो सकती है? नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर अपनी राय जरूर दें। जितना हो सके, इस वीडियो को शेयर करें।