जॉर्डन पीटरसन की “12 रूल्स फॉर लाइफ”: सफलता का मार्ग
नमस्कार दोस्तों! आज हम जॉर्डन पीटरसन की “12 रूल्स फॉर लाइफ” बुक के बारे में बात करने जा रहे हैं। ये एक बेहद दिलचस्प किताब है जिसमें दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान और आत्म-सुधार के लिए जरूरी टॉपिक्स को शामिल किया गया है।
लेखक, जॉर्डन पीटरसन, हमें अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी सुझाव देते हैं। इस किताब में हमें अपनी ज़िंदगी के अर्थ और उद्देश्य को समझने में मदद मिलेगी, जिससे हम खुद को सही दिशा में ले जाकर अपनी ज़िंदगी में सफल बन सकते हैं।
चलिए इन 12 रूल्स को एक-एक करके समझते हैं:
रूल नंबर 1: अपने सीधे कंधों के साथ खड़े हो
अपने सीधे कंधों के साथ खड़े होने का मतलब है दुनिया के लिए खुद को खोलना। मतलब, अपना सिर ऊपर, कंधे पीछे रखें और एक फौजी की तरह बहादुर महसूस करें। मनोविज्ञान में लंबे समय से माना जाता है कि अच्छा पोस्चर मन की अच्छी स्थिति बनाने में मदद करता है।
अपने कंधों के साथ सीधे खड़े होना, अपने जीवन की ज़िम्मेदारी को स्वीकार करना है। अच्छा पोस्चर हमें उस हिम्मत के साथ जीने में मदद करता है जिसके साथ हम जीना चाहते हैं।
लेखक कहते हैं कि अच्छे चरित्र वाले लोगों का पोस्चर अक्सर अच्छा होता है। चूँकि चरित्र हमारे जीवन में बहुत ज़रूरी भूमिका निभाता है, इसलिए अभी से अच्छा पोस्चर बनाना शुरू करें। बिना वजह ना झुकें, वही कहें और करने की कोशिश करें जो आप सच में चाहते हैं।
रूल नंबर 2: अपने आप के साथ ऐसा व्यवहार करें जैसे कि आप किसी की मदद करने के लिए ज़िम्मेदार हैं
लेखक इसमें हमें बाइबल के “पड़ोसी से अपने समान प्यार करो” नियम के बारे में बताते हैं। वह बताते हैं कि यह नियम हमारे पड़ोसियों की देखभाल करने के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना कि यह खुद की देखभाल करने के लिए है।
इसीलिए, हम में से कई लोग दूसरों की मदद करने में खुद की मदद करने से कहीं ज़्यादा बेहतर होते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर आपको किसी बीमार जानवर की देखभाल करने के लिए कहा जाता है, तो हम में से ज़्यादातर लोग, हमारे लिए बनाए गए प्रोटोकॉल के मुताबिक, अपनी समझदारी से उसका ध्यान से ख्याल रखेंगे। जानवर को जानवरों के डॉक्टर के पास ही ले जाएँगे, वहाँ मौजूद रहेंगे और जानवरों की ज़रूरत की देखभाल के लिए हर संभव कोशिश करेंगे।
लेकिन जब अपनी ज़रूरतों की बात आती है, तो कई लोग काफी लापरवाह हो जाते हैं। स्टडीज़ से पता चलता है कि 20% या 30% इलाज के नुस्खे कभी नहीं अपनाए जाते हैं, और पुरानी बीमारी वाले लोगों को दी जाने वाली 50% दवा डॉक्टर के बताने के मुताबिक नहीं ली जाती है।
लेखक इस बारे में कहते हैं कि हम सभी सम्मानित जीवन शैली के हकदार हैं। आप बाकी लोगों के लिए जितने ज़रूरी हैं, उतना ही खुद के लिए भी हैं। इसलिए दूसरों के साथ-साथ अपना भी ख्याल रखें, क्योंकि यह आपकी नैतिक ज़िम्मेदारी है।
रूल नंबर 3: ऐसे लोगों से दोस्ती करें जो आपके लिए अच्छा चाहते हैं
लेखक इसमें हमारी ज़िंदगी में अच्छाई या बुराई के लिए ज़िम्मेदार दोस्ती की अविश्वसनीय शक्ति के बारे में बताते हैं। अच्छे दोस्त होने का मतलब सिर्फ उन लोगों से कहीं ज़्यादा है जिनके साथ हमें मज़ेदार चीजें करने का मौका मिलता है। अच्छे दोस्त ज़रूरत पड़ने पर साथ देते हैं, प्रोत्साहित करते हैं, और यहां तक कि कई बार हमारा मज़ाक भी बनाते हैं, लेकिन अपने व्यवहार से वे हमारा अच्छा करने की ही कोशिश करते हैं।
इस तरह अच्छे दोस्त वे लोग होते हैं जो हमारी क्षमता को और ज़्यादा बेहतर बनाने में मदद करते हैं, और हमें खुद का एक बेहतर संस्करण बनाने में भी मदद करते हैं।
कई लोग जाने-अनजाने में लगातार गलत दोस्त बनाते रहते हैं। कभी-कभी, जब लोग अपनी खुद की वैल्यू को कम आंकते हैं, तो वे ऐसे लोगों को दोस्त बना लेते हैं जो दोस्ती नहीं, सिर्फ़ मतलब निकालते हैं। जबकि इसके विपरीत, दोस्ती का असली मतलब मस्ती और सहारा है। इसलिए सुनिश्चित करें कि ऐसे लोगों के साथ ही दोस्ती रखें।
ये एक अच्छी बात है, और इसमें से कोई भी स्वार्थी बात नहीं है कि आप ऐसे लोगों को ही दोस्त बनाएँ जो आपके लिए अच्छे हैं। उनसे आपको कुछ सीखने को ही मिलता है। क्योंकि ऐसे दोस्त आपको कमज़ोरी पड़ने पर बिखरने नहीं देंगे, और आपको हमेशा आगे बढ़ते रहने में मदद करेंगे।
रूल नंबर 4: खुद का कंपैरिजन अपने बीते हुए कल से करें, ना कि उससे जो कि आप आज हैं
हमारी सोसाइटी और शिक्षा प्रणाली की वजह से हम में से कई लोग शुरू से ही कंपैरिजन करने की आदत बना लेते हैं। जब हम बहुत छोटे होते हैं, तो सफलता और असफलता के लिए अपने खुद के स्टैंडर्ड्स को जानने के लिए, अपने साथियों या प्रतिस्पर्धा शुरू कर देते हैं।
इससे समस्या ये होने लगती है कि दूसरे से कंपैरिजन हमें उनकी अच्छाई देखने के लिए प्रेरित करता है, इसलिए कई बार हम अपने आप को कम आंकने लगते हैं। इस तरह कंपैरिजन हमें कमज़ोर बनाने लगता है।
कंपैरिजन तब बड़ी समस्या बनने लगती है जब आप ये सोचने लगते हैं कि लोग आपसे बेहतर ही होंगे।
वही, अपने कल का कंपैरिजन करने से, आप अपने आप को आज बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे असली फायदा भी आपको ही होता है।
इसलिए, किसी और से कंपैरिजन करने की बजाय, आप अपने आप से कंपैरिजन करें।
इसके लिए लेखक कुछ ज़रूरी तरीके बताते हैं, इन्हें अपनी ज़िंदगी में लागू ज़रूर करें:
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अपनी ताकतों और कमज़ोरियों को पहचानें।
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आज अपनी कल की किसी एक कमज़ोरी को दूर करने और किसी एक अच्छाई को बढ़ाने पर ध्यान दें।
इससे आप अपने आप से कंपैरिजन करना शुरू कर देंगे, और फ़ाइनली बेहतर बनते हुए आसानी से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना शुरू कर देंगे।
रूल नंबर 5: अपने बच्चों को कुछ भी ऐसा ना करने दें जिससे आप उन्हें नापसंद करें
ये रूल पेरेंटिंग के बारे में है। ये चैप्टर इस किताब का सबसे चौंकाने वाला चैप्टर है, क्योंकि इसमें लेखक बहुत सी ऐसी बातें बताते हैं जो आज उत्तरी अमेरिका में प्रतिबंधित हो गई हैं।
उदाहरण के लिए, किसी भी माता-पिता को अपने बच्चों को शारीरिक रूप से हानि पहुँचाने से मना किया जाता है। वे उन माताओं को ऐसा करने से मना करते हैं जो अपने किशोर बच्चों का अपमान करती हैं।
वे अच्छी पेरेंटिंग के साथ-साथ बुरी पेरेंटिंग के बारे में भी बताते हैं।
अच्छी पेरेंटिंग का मतलब है कि दोनों पार्टनर बच्चे को पालें, और बुरी पेरेंटिंग में कोई एक पार्टनर दूसरे पार्टनर पर बच्चे को पालने की पूरी ज़िम्मेदारी डाल देता है। वे सुझाव देते हैं कि ऐसे लोग अच्छी पेरेंटिंग करें, ताकि समाज में सकारात्मक योगदान देने वाले इंसानों की पेरेंटिंग अच्छी तरह से हो सके।
लेखक माता-पिता को अनुशासित बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, ताकि वह बच्चों को भी अच्छी तरह अनुशासित व्यवहार करना सिखाएँ।
इसके अलावा, वह कहते हैं कि माता-पिता को दयालु और देखभाल करने वाला तो होना ही चाहिए।
इसलिए, सभी माता-पिता को इस बात को समझना चाहिए कि अगर आप अपने बच्चों को दूसरों के सामने अपमानित करेंगे, तो बाकी लोग भी उनके जैसा व्यवहार करने की कोशिश करेंगे, जो शायद आपको अच्छा ना लगे। इसलिए अपने बच्चों के लिए माता-पिता बनने के साथ-साथ अच्छे दोस्त और एक शिक्षक बनने की कोशिश करें।
रूल नंबर 6: दुनिया की बुराई करने से पहले अपने घर को सही करें
लेखक इस चैप्टर के ज़रिए ये बताते हैं कि कुछ लोगों के लिए जीवन सच में बहुत मुश्किल है। दुनिया में बहुत कुछ गड़बड़ है, लेकिन इसके साथ-साथ सारी चीजें ठीक भी हैं।
लेखक बताते हैं कि सभी महान लोगों ने अपने आप को बेहतर बनाना और दुनिया को कुछ अच्छा योगदान देने की कोशिश की है। उन्होंने चुनौतीपूर्ण कार्यों पर ध्यान दिया।
इसलिए, हमें भी उस तरह बनने के लिए ऐसा ही करना चाहिए।
इसलिए इन ज़रूरी टिप्स को अपनाएँ:
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अपने काम की ज़िम्मेदारी लें।
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अपनी विनाशकारी आदतों को सहायक आदतों में बदलें।
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वो काम जो आपको गलत लगता है, उसे अभी से बंद कर दें, और अच्छे काम करें, चाहे वो छोटा सा अच्छा काम हो या बड़ा।
रूल नंबर 7: जो मीनिंगफुल है उसे फॉलो करें
इस चैप्टर में लेखक कहते हैं कि दुःख का सामना करने के लिए, हम अक्सर खुशी का रास्ता ढूंढने के लिए सबसे आसान रास्ते की तलाश करते हैं।
कई बार यह रास्ता सही होता है, लेकिन कई बार यह रास्ता गलत भी होता है।
इसलिए, ऐसी स्थिति में वो करें जो सही हो, और जिसे करने में आपको अंदरूनी खुशी और संतुष्टि मिले।
वो काम करें जिससे आपका भविष्य बेहतर बनता है। इसलिए दूसरों की खुशी और अपने लक्ष्य के लिए ज़रूरी त्याग करने से कभी भी ना घबराएँ।
क्योंकि, भले ही सही चीजें शुरू में मुश्किल लगें, लेकिन वे जीवन में काफी खुशहाल और आसान बना देती हैं।
रूल नंबर 8: सच बोलें, या कम से कम झूठ तो ना बोलें
ये चैप्टर लेखक के अपने स्कूल में क्लीनिकल साइकोलॉजी की पढ़ाई करते समय शुरू होता है, जब एक युवा मरीज़ ने उनसे एक सवाल पूछा जिसका जवाब वे नहीं देना चाहते थे, क्योंकि उससे उस मरीज़ की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती थी। लेखक झूठ भी नहीं बोलना चाह रहे थे, और सच बताने से मरीज़ दुखी हो सकता था।
इसलिए, उन्होंने एक तरीका सोचा और जितना सच ज़रूरी था उतना बताया। फिर उनकी अच्छाइयों के बारे में बात करने लगे। इससे मरीज़ को जवाब भी मिल गया, और लेखक ने सच्चाई के साथ-साथ अपनी बात भी कह दी।
ज़्यादातर लोग कई बार अपने आप से छोटे-छोटे झूठ बोलते हैं, और एक्चुअल में ज़्यादातर समय हम शायद यह महसूस भी नहीं करते, या स्वीकार ही नहीं करते हैं कि हम ऐसा कर रहे हैं।
लेकिन सबसे खराब झूठ वही होता है जो हम अपने आप से कहें, लेकिन स्वीकार ना करें। क्योंकि बेईमानी हमारे और दूसरों के लिए बहुत नुकसानदायक होती है।
जब हम झूठ बोलते हैं, तो अनजाने में हम अपने चरित्र को कमज़ोर बना रहे होते हैं। इसलिए अपने चरित्र को मजबूत बनाने के लिए, सबसे पहले सच को पहचानें, स्वीकार करें, और बोलना शुरू करें।
इसकी शुरुआत अपने आप से करें, क्योंकि हम किसी और की सुनने से ज़्यादा अपने आप की बातें सुनते हैं, अपने आप से बात करते हैं।
इसलिए, झूठ कम से कम ही बोलें, और कोशिश करें कि हमेशा सच बोलें।
रूल नंबर 9: मान ले कि जिस इंसान को आप सुन रहे हैं वह कुछ ऐसा जानता है जो आप नहीं जानते
इसमें लेखक एक्चुअल बातचीत के बीच ज़रूरी अंतर के बारे में बताते हैं।
अच्छी बातचीत वो होती है जब आप दूसरे से बात करते समय, टू-वे कन्वर्सेशन करें, एक्सप्रेशन का इस्तेमाल करें, और इसके साथ-साथ दूसरे इंसान को सुनने और समझने की कोशिश भी करें।
किसी भी अच्छे रिश्ते को चलाने के लिए, दिल और व्यवहार से ईमानदार रहना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए अपनी बात को दूसरों के बीच मूल्यवान
इसके अलावा, जैसा कि हम जानते हैं कि हर किसी की एक अपनी सोच और नज़रिया, उद्देश्य होते हैं। ऐसे में हमें उन्हें समझकर, एक साथ आगे बढ़ने के तरीके के बारे में विचार करना चाहिए। ऐसा करके आप हर किसी से कुछ नया जान सकेंगे, सीख सकेंगे, और दूसरों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने में भी काफी मदद मिलेगी।
ऐसे डिस्कशन जहाँ दोनों लोग बोलने और सुनने के लिए तैयार होते हैं, वहाँ वे अपने विचारों को अच्छे से एक-दूसरे को बता सकते हैं।
इसका मतलब अच्छी कम्युनिकेशन, अपनी बेहतर ज़िंदगी और दूसरों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की अच्छी टेक्नीक है। शुरुआत बातों से ही होती है, इसलिए अगर आप किसी से खुलकर बात कर सकते हैं, तो आप अपने विचारों को उन्हें अच्छे से समझा सकते हैं।
रूल नंबर 10: अपनी बातों में साफ रहें
इस चैप्टर में लेखक फ़ोकस के साथ अच्छे से कम्युनिकेशन करने के बारे में बताते हैं।
वे हमें अपनी धारणाओं और परिस्थितियों के बारे में जागरूक होने के लिए प्रेरित करते हैं।
हम किसी भी स्थिति में हर समय पूरी स्थिति को शायद ही समझ पाएँ। वास्तव में, हम सिर्फ़ वही समझते हैं जो अपनी इंद्रियों से अनुभव करते हैं। हम हमेशा अपने आसपास की चीजों और लोगों की वैल्यू डिसाइड करने की कोशिश करते हैं।
जब अच्छी स्थिति में नहीं होते हैं, तो हमारी सबसे पसंद की चीज भी हमारे लिए कुछ मायने नहीं रखती है।
लेकिन इसके बावजूद हमें उम्मीद रखकर, हर स्थिति में कुछ संभव ढूंढना चाहिए।
क्योंकि, नकारात्मक स्थिति भी कई बार हमारी ज़िंदगी में कुछ नया और अच्छा रास्ता बनाने के लिए एक अच्छा मौका साबित हो सकती है।
इसलिए, निराशा की स्थिति का सामना करने पर, हमें नकारात्मक चीजों को अवॉइड करते हुए, सकारात्मक और काम की चीजों पर फ़ोकस करना चाहिए।
इसलिए कॉन्फिडेंट रहें और हर चीज का सामना करें।
रूल नंबर 11: स्केटबोर्डिंग करते समय बच्चों को तंग ना करें
पीटरसन इसे एक ऐसे शहर की कहानी के साथ शुरू करते हैं जहाँ प्रशासन ने स्केटबोर्डिंग करने की जगह से स्केटबोर्डिंग को हटा दिया था।
पीटरसन मानते हैं कि किसी भी आधार पर किया गया भेदभाव हमारी दुनिया में कहीं ना कहीं समस्या पैदा करता है।
हर संस्कृति में बनाए गए नियम लोगों के फायदे के लिए ही बनाए गए थे। इसलिए, किसी भी लिंग या जाति जैसे मुद्दे पर आधारित नियम को ख़त्म करके, समानता वाले नियम बनाने चाहिए, जो क्षमता को प्राथमिकता दें।
क्योंकि लिंग या जाति से बनाए गए नियम अन्याय करते हैं, चाहे वे किसी के भी साथ क्यों ना हों।
इस बारे में वे आगे बताते हैं कि बिना देखे किसी की ताकत का अंदाजा अचानक ही नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि बिना मुकाबला किए आप फैसला नहीं कर सकते कि कोई कितना ताकतवर है, और वो हमारे लिए कैसा फायदेमंद साबित हो सकता है।
रूल नंबर 12: जब आप सड़क पर किसी बिल्ली से मिलते हैं, तो उसे पाल लें। हर दिन कम से कम तीन अच्छी चीजें करने की कोशिश करें
हर दिन कम से कम तीन अच्छी चीजें करने की कोशिश करें। चाहे वो सड़क पर दिखी बिल्ली को खाना खिलाना हो, उसे पालना हो, ऑफिस में अपने स्टाफ में किसी को सपोर्ट करना हो, या फैमिली मेंबर को अच्छा महसूस कराना हो।
इससे आपको आंतरिक संतुष्टि
आप खुश रहने और आगे बढ़ने में अपनी मदद खुद कर सकते हैं। आपको किसी पर भी निर्भर होने की ज़रूरत नहीं है। आप कॉन्फिडेंस के साथ अपनी बात सबके सामने रख सकते हैं, अपने अच्छे और बुरे का फैसला खुद ले सकते हैं।
अब अच्छी ज़िंदगी की शुरुआत के लिए अपनी ज़िंदगी में इन 12 रूल्स को शामिल कर लें।
दोस्तों, अगर ये वीडियो आपको पसंद आई हो, तो प्लीज वीडियो को लाइक ज़रूर करिएगा। यदि आप लोगों का इससे संबंधित कोई सुझाव हो, तो प्लीज वो भी बताइएगा। मिलेंगे जल्द ही नई वीडियो के साथ।
तब तक के लिए, सभी लोगों को धन्यवाद।