5 आजमाए हुए तरीके: “थिंकिंग इन बेट्स” by एनी ड्यूक
नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका एक नई रोमांचक सफ़र पर। क्या आप कभी सोचते हैं कि जिंदगी एक जुआ है? नहीं, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी किताब के बारे में जो आपके सोचने का तरीका बदल देगी।
“थिंकिंग इन बेट्स”: फैसलों को समझना
इस किताब का नाम है “थिंकिंग इन बेट्स,” और इसे लिखा है एनी ड्यूक ने, जो खुद एक प्रोफ़ेशनल पोकर प्लेयर और बिजनेस कंसल्टेंट हैं। क्या आपने कभी ऐसी हालत का सामना किया है जब आपको लगा हो कि आप सही हैं, लेकिन नतीजे आपके खिलाफ आ गए? सोचिए, अगर आपके पास ऐसा तरीका हो जिससे आप अपने फैसलों में सुधार कर सकें, और रिस्क को बेहतर तरीके से संभाल सकें। एनी ड्यूक की यह किताब आपको यही सिखाने वाली है।
“थिंकिंग इन बेट्स”: जीवन के लिए एक मार्गदर्शक
“थिंकिंग इन बेट्स” हमें सिखाती है कि कैसे हम फैसले लेते वक्त मुमकिन और अनिश्चितताओं को ध्यान में रखें। यह सिर्फ पोकर खेलने की बात नहीं है, बल्कि जिंदगी के हर पहलू में काम आती है। एनी बताती हैं कि जिंदगी में हम सभी फैसले लेते हैं, लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि हमारे फैसले कितने सही हैं? अक्सर हम अपने फैसलों को सही मान लेते हैं, लेकिन एनी का कहना है कि हमें अपने फैसलों को एक बेट की तरह देखना चाहिए।
“थिंकिंग इन बेट्स”: मुमकिन को समझना
मान लीजिए कि आप एक पार्टी में जा रहे हैं, और आपको तय करना है कि क्या आपको ड्राइविंग करनी चाहिए या नहीं। अब यह फैसला लेते वक्त आपको उन सभी मुमकिन को अंदाजा लगाना चाहिए जो आपके सामने हैं। क्या होगा अगर आप थके हुए हैं? क्या सड़कें महफ़ूज हैं? क्या मौसम ठीक है? यह सब चीजें आपके फैसले को मुतासिर करती हैं, और यही एनी हमें सिखाती हैं। मुमकिन को ध्यान में रखते हुए फैसला लेना।
“थिंकिंग इन बेट्स”: आपकी यात्रा शुरू करें
तो दोस्तों, अगर आप भी अपने फैसलों को बेहतर बनाना चाहते हैं, और जिंदगी में ज्यादा कामयाब होना चाहते हैं, तो “थिंकिंग इन बेट्स” आपके लिए एक बेहतरीन गाइड है। आइए इस सफर को शुरू करें, और जानें कि कैसे हम अपनी जिंदगी को और भी बेहतर बना सकते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: सुनवाई शुरू करें
दोस्तों, हम आपको बताना चाहेंगे, यह स्पीकर वॉइस 2.0 का सेकंड चैनल है। हमारे इस चैनल के साथ भी जुड़ें, और तेजी से अपनी लाइफ को ट्रांसफॉर्म होता हुआ देखें। आइए फिर शुरू करते हैं आज की बुक समरी।
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विश्वास और सच्चाई
हम में से हर किसी का कुछ मानना होता है। हर कोई कहता है, “मेरे हिसाब से यह सच है,” या “मैं मानता हूं कि ऐसा होता है।” लेकिन क्या यह सिर्फ आपकी राय है, या फिर आपके ऐसा मानने के पीछे कुछ खास वजह है? बहुत से लोग अक्सर शॉर्टकट इस्तेमाल करते हैं ताकि वे जल्दी से फैसले ले सकें। इसलिए यह जरूरी नहीं है कि आप जो सोच रहे हैं, वह सच ही हो। सच जानने के लिए आपको रिसर्च करनी होगी। लेकिन उससे पहले, यह जानते हैं कि क्यों हम अपने भरोसे को सच मानते हैं। इसके पीछे हमारे पूर्वजों की मानसिकता का हाथ है। जब उन्हें जंगल की झाड़ियों में से कुछ बाहर निकलने की आवाज सुनाई देती थी, तो वे यह मान लेते थे कि वह एक शेर होगा, और वे भाग जाते थे। इस बात पर भरोसा ना करना, मतलब मौत को गले लगाने का निमंत्रण देना था।
विश्वास और सच्चाई: शॉर्टकट का असर
अगर आप यहां पर रुककर सच जानने की कोशिश करते, तो आप सच तो जान लेते, लेकिन उसके बाद कुछ भी जानने के लायक नहीं बचते। इसलिए हमें अपनी सोच पर भरोसा करने की आदत है। जब हम बोलने लगे, तो हम इस तरह की बातों के बारे में लोगों को बताने लगे। हम उनसे कहने लगे कि “मेरे हिसाब से यह सच है,” और लोग मानने भी लगे, क्योंकि ना मानने की कीमत बहुत ज्यादा थी। हम बातों पर बहुत आसानी से भरोसा कर लेते हैं। एक बार जब हम किसी चीज पर भरोसा करने लगते हैं, तो उस भरोसे को तोड़ना बहुत मुश्किल होता है। साथ ही, हम जो भी मानते हैं, हम कोशिश करते हैं कि दूसरे भी उस बात को मानें। हम सोचते हैं कि हम जो मान रहे हैं, वह सच है, और इसलिए हम उस सच के बारे में दूसरों को भी बताने लगते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: विश्वासों की चुनौती
लेकिन फिर से, आप कैसे कह सकते हैं कि आप जो मान रहे हैं, वह सच है? अच्छी बात यह है कि हम अपने भरोसे को बदल सकते हैं। इसके लिए आप एक तरीका अपना सकते हैं जिसका नाम है “शर्त लगाना।” जब भी आप अपनी बात को किसी को मनवा रहे हों, तो खुद से पूछिए कि आप अपनी बात पर ₹1000 की शर्त लगा सकते हैं। अगर आप अपनी बात को साबित नहीं कर पाए, या सामने वाले ने आपको गलत साबित कर दिया, तो आपको ₹1000 खोने होंगे। इस तरह से आपको एक वजह मिलती है अपनी ही कही गई बात पर शक करने की। इस तरह से आप ना सिर्फ सच जान पाएंगे, बल्कि कुछ नई जानकारी भी हासिल कर पाएंगे।
“थिंकिंग इन बेट्स”: विश्वासों को चुनौती देना
हमें यह समझना होगा कि हर भरोसा सच्चाई नहीं होता। सच जानने के लिए हमें रिसर्च और अपने विश्वासों पर सवाल उठाने का साहस होना चाहिए। “शर्त लगाना” एक ऐसा तरीका है जिससे हम अपने विश्वासों को चुनौती दे सकते हैं, और सच्चाई के करीब पहुंच सकते हैं। इससे ना केवल आपकी सोच में स्पष्टता आएगी, बल्कि आप दूसरों के साथ अपने विचारों को भी अधिक प्रभावी तरीके से साझा कर पाएंगे।
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आदतें: जीवन का आधार
फिल आयवी को दुनिया के सबसे बेहतरीन पोकर खिलाड़ियों में गिना जाता है। उनकी कामयाबी का राज उनकी अच्छी आदतें हैं। आदतें किसी भी व्यक्ति की कामयाबी में अहम किरदार निभाती हैं।
आदतें: संकेत, दिनचर्या और इनाम
आदतों के तीन हिस्से होते हैं: संकेत, दिनचर्या, और इनाम। अच्छी आदतें बनाने के लिए आपको सिर्फ अपनी दिनचर्या को बदलना होगा, संकेत और इनाम को नहीं। आदतें हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। वे हमारे किरदार को आकार देती हैं, और हमारे जीवन के परिणामों को प्रभावित करती हैं। अच्छी आदतें अपनाने से हम ना सिर्फ अपने मकसद को प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में भी कामयाब हो सकते हैं।
आदत बदलने की कला: दिनचर्या को बदलना
मान लीजिए कि आप सुबह जल्दी उठना चाहते हैं, ताकि आप अपने दिन की बेहतर शुरुआत कर सकें। यहां पर आपका संकेत है अलार्म की घंटी। आपकी दिनचर्या है, अलार्म बंद करके फिर से सो जाना। इसका इनाम है, कुछ और समय सोने का सुखद तजुर्बा। अगर आप इस आदत को बदलना चाहते हैं, तो आपको अपनी दिनचर्या को बदलना होगा। जब अलार्म बजे, तो आप तुरंत बिस्तर छोड़ दें और अपने दिन की शुरुआत करें। इस नई दिनचर्या का इनाम होगा, एक ताजगी भरी सुबह और उत्पादक दिन।
“थिंकिंग इन बेट्स”: फैसलों का विश्लेषण
फिल आयवी की तरह आपको भी हर छोटे-बड़े निर्णय को ध्यान से लेना होगा। मान लीजिए कि आप किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, और उसमें कामयाब होते हैं। इसका श्रेय आप अपनी मेहनत और काबिलियत को देते हैं, जो कि एक अच्छी दिनचर्या है। लेकिन अगर आप इसमें सुधार चाहते हैं, तो अपने निर्णय को और भी गहराई से विश्लेषण करें। सोचें कि क्या आपकी कामयाबी सिर्फ आपकी मेहनत का नतीजा है, या उसमें कुछ बाहरी हालात का भी योगदान है।
“थिंकिंग इन बेट्स”: फैसलों की सटीकता
जब भी आप किसी निर्णय पर पहुंचें, तो खुद से यह पूछें कि क्या आप उस पर ₹1000 की शर्त लगा सकते हैं। यह तरीका आपको अपने निर्णयों की सटीकता को परखने में मदद करेगा, और आपको सही दिशा में सोचने को प्रेरित करेगा।
“थिंकिंग इन बेट्स”: बदलाव और समयबद्ध लक्ष्य
एक साथ बहुत सारे बदलाव करने की कोशिश ना करें। छोटे-छोटे बदलाव से शुरुआत करें, और धीरे-धीरे अपनी आदतों को सुधारें। अपनी आदतों को बदलने के लिए समयबद्ध लक्ष्य तय करें, और उन्हें पूरा करने का प्रयास करें।
“थिंकिंग इन बेट्स”: प्रेरणा और सकारात्मक सोच
जब भी आप अपनी नई आदत को कामयाबी के साथ अपनाएं, खुद को पुरस्कृत करें। इससे आपको और भी प्रेरणा मिलेगी। अपनी आदतों को सुधारते समय सकारात्मक सोच रखें। इससे आपको मनोबल मिलेगा, और आप अपने मकसद को प्राप्त कर पाएंगे। अच्छी आदतें आपकी जिंदगी को बदल सकती हैं, और आपको कामयाबी की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: सही फैसलों का महत्व
फिल की तरह आपको भी अपनी आदतों को सही तरीके से मैनेज करना होगा। आज से ही अपनी आदतों पर ध्यान दें, उन्हें बेहतर बनाने की कोशिश करें, और देखें कैसे आपकी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: रिस्क और संभावनाओं को समझना
इस तरह से अगर अच्छे नतीजे मिलने की संभावना 80% है, और खराब नतीजे मिलने की संभावना 20% है, तो उस फैसले को ले लीजिए। लेकिन अगर आपको अच्छे नतीजे नहीं मिलते हैं, तो यह मत सोचिए कि आपका फैसला गलत था। अगर गलत नतीजे मिलते हैं, तो वह 20% की संभावना सच हो गई है। इसमें वह फैसला गलत नहीं था, क्योंकि उसमें नुकसान की संभावना भी थी, लेकिन क्योंकि उसमें फायदे की संभावना ज्यादा थी, आपने उस फैसले को लेकर एक तरह से सही फैसला लिया।
“थिंकिंग इन बेट्स”: ग्रुप का महत्व
लेखिका बहुत खुश किस्मत थी कि उन्हें अपने कैरियर की शुरुआत में एक ऐसा ग्रुप मिल गया जहां उन्हें पोकर खेलते वक्त अपनी गलतियों को पहचानना सिखाया गया। इस ग्रुप में महान पोकर खिलाड़ी एरिक साइडल थे। लेखिका की आदत थी कि वह हर बार हार जाने पर अपनी किस्मत का रोना रोने लगती थी। लेकिन एरिक उन्हें चुप करा देते थे, और अच्छे से सोचने के लिए कहते थे। वे उन्हें यह सोचने के लिए कहते थे कि कैसे वे उस हालात से बच सकती थीं। क्या वह सच में पूरी तरह से किस्मत का दोष था?
“थिंकिंग इन बेट्स”: गलतियों से सीखना
इस तरह से एक ग्रुप में होना हमें हमारी गलतियों का एहसास दिलाता है। दूसरे हमारी गलतियों को हमसे बेहतर तरीके से देख पाते हैं। इसलिए अपनी कमियों को पहचानने के लिए आपको ऐसे ग्रुप में शामिल होना होगा जहां के लोग एक दूसरे को उनकी गलतियां बताते हों, और उन्हें सुधारने के तरीके भी बताते हों। लेखिका को जब ऐसा ग्रुप मिला, तो उन्हें अच्छे से सोचना आ गया, और वे हार या जीत के पीछे की सही वजह को पहचान पाने के काबिल बन गईं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: सहारा और विकास
एक ग्रुप में होने का फायदा यह होता है कि हम दूसरों का सहारा पाने की कोशिश करते हैं। जब हम खुद को बेहतर बनाने लगते हैं, तो दूसरे लोग हमें सहारा देने लगते हैं, जिससे हमें और बेहतर बनने की प्रेरणा मिलती है। इस तरह से हम खुद को पहले से और बेहतर बनाते रहते हैं। लेकिन आपको किसी ऐसे ग्रुप का हिस्सा नहीं बनना है, जहां के लोग बिना वजह एक दूसरे को सहारा देते रहें। आपको ऐसा ग्रुप खोजना है जहां के लोग एक दूसरे की गलतियों को बता सकें और उन्हें पहले से बेहतर बना सकें।
“थिंकिंग इन बेट्स”: रेड टीम और सोच का विस्तार
उदाहरण के लिए, CIA में एक “रेड टीम” होती है जिसका काम होता है CIA के लोगों के लॉजिक में गलतियां निकालना ताकि वे बेहतर फैसले ले सकें। आपके ग्रुप में भी कुछ इस तरह के लोग होने चाहिए जो अलग तरह से सोचते हों, जो एक हालात को अलग तरह से देखकर लोगों की गलतियां बता सकें। इस तरह के ग्रुप में रहकर आप बेहतर बन सकते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: भविष्य में सोचना
हम अक्सर कुछ ऐसे काम करते हैं जिनसे हमें अभी तो मजा मिल रहा होता है, लेकिन लंबे समय में वे हमारे लिए नुकसानदायक होते हैं। इसलिए आपको कुछ समय भविष्य में बिताकर यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आपके काम का क्या अंजाम हो सकता है। इसके लिए हम “सजरी वेलज” का “10/10/10 रूल” अपना सकते हैं।
10/10/10 रूल: भविष्य की कल्पना करना
इसका मतलब है यह सोचना कि आप इस समय जो कर रहे हैं, उसे करने के 10 मिनट बाद आपको कैसा लगेगा? 10 महीने के बाद कैसा लगेगा? और 10 साल के बाद कैसा लगेगा? इस तरह से, अगर आपको लगता है कि आप इस समय जो काम कर रहे हैं, उससे आपको लंबे समय में पछतावा होगा, तो आप उस काम को मत कीजिए।
“थिंकिंग इन बेट्स”: भविष्य की योजना बनाना
भविष्य में कुछ समय बिताने का एक फायदा भी होता है कि आप उसके लिए प्लानिंग करने लगते हैं। आप यह कल्पना करने लगते हैं कि आपको जिस तरह के नतीजे चाहिए, उसके लिए आपको किस तरह के काम करने होंगे। ऐसा करने के लिए आप यह सोचें कि आप भविष्य में कामयाब हो गए हैं। अब खुद से यह पूछिए कि आप वहां तक कैसे पहुंचे। इसके बाद, एक-एक कदम पीछे आते जाइए और खुद से यह पूछिए कि किस तरह के फैसलों ने आपको इतना कामयाब बनाया होगा। साथ ही इससे आप अपनी परेशानियों से निपटने की प्लानिंग भी कर सकते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: गलतियों से सीखना
यह सोचिए कि भविष्य में आप कामयाब नहीं हुए। आपने ऐसा क्या किया होगा कि आपके साथ ऐसा हुआ? कौन से ऐसे काम थे जो आप करते या ना करते, तो आप कामयाब हो जाते? या किन मुश्किलों ने आपको वहां तक पहुंचने से रोका था? इस तरह के सवाल यह सोचने में मदद करते हैं कि रास्ते में किस तरह की परेशानियां आ सकती हैं, और आप कैसे उनसे निपट सकते हैं। जब आप अपने भविष्य की कल्पना करते हैं, और यह सोचते हैं कि आपको किस तरह के नतीजे चाहिए, तब आप प्लानिंग करने लगते हैं। यह एक बहुत अच्छी आदत है जो आपको अपने लक्ष्यों के करीब ले जाती है।
“थिंकिंग इन बेट्स”: सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास
जब आप यह सोच सकते हैं कि भविष्य में आपको कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, तो आप पहले से ही उनके समाधान के लिए तैयार रहते हैं। यह प्रक्रिया आपको सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास देती है कि आप अपने भविष्य को बेहतर बना सकते हैं। यह तरीका आपको सोच-समझकर और समझदारी से फैसले लेने में मदद करता है, जिससे आप अपने जीवन में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: 10/10/10 रूल
10/10/10 रूल एक बहुत ही प्रभावी तरीका है जो आपको अपने वर्तमान और भविष्य के फैसलों के परिणामों को समझने में मदद करता है। इस तरीके से आप अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, और अपनी गलतियों से सीख सकते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: गलतियों को समझना
लोग कहते हैं कि हम अपनी गलतियों से सीखते हैं। अगर हमने कुछ काम किया, और उसका नतीजा हमें गलत मिलता है, तो वह काम गलत था, और वह हमें फिर से कभी नहीं करना है। लेकिन हमने अभी-अभी देखा कि कोई भी फैसला गलत नहीं होता। कभी एक सही लगने वाला फैसला भी गलत नतीजे दे देता है।
“थिंकिंग इन बेट्स”: रिस्क और हालात
कभी-कभी हालात हमारे काबू में नहीं होते हैं, और इसलिए हर फैसले का हमें खराब नतीजा ही मिलता है। ऐसे हालात में आपको यह जानना होगा कि अगर आपको खराब नतीजे मिले, तो वह हालात का दोष था या फिर आप उससे बचने के लिए कुछ कर सकते थे? आप उससे बचने के लिए कुछ कर सकते थे, तो यह पता लगाइए कि वह क्या था, ताकि आपसे वह गलती फिर से ना हो।
“थिंकिंग इन बेट्स”: गलतियों का विश्लेषण
यहां पर आपको पता लगाना होगा कि आपकी गलती कितनी थी, और हालात का कितना दोष था? लेकिन यह पता लगाने में सबसे बड़ी परेशानी होती है हमारी मानसिकता। हम अच्छे नतीजों का क्रेडिट अपनी काबिलियत को देते हैं, और खराब नतीजों का क्रेडिट अपने हालात को। एक रिसर्च में यह बात सामने आई कि 91% ड्राइवर्स एक एक्सीडेंट के वक्त अपनी गलती नहीं मानते हैं। यहां तक कि जब वे किसी चीज से भिड़ जाते हैं, तो इस हालात में भी 37% लोग किसी दूसरी चीज पर इल्ज़ाम लगाते हैं। इस तरह से, खराब नतीजे मिलते ही हम सारा इल्ज़ाम हालात पर लगाने लगते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: निष्पक्षता का महत्व
लेकिन अगर हम यह बात दूसरों पर लागू करें, तो बात कुछ उल्टी हो जाती है। अगर किसी दूसरे व्यक्ति को अच्छे नतीजे मिलते हैं, तो हम सोचते हैं कि उसके हालात अच्छे थे, और अगर खराब नतीजे मिलते हैं, तो हम सोचते हैं उसने गलत फैसला लिया था। इस तरह से यह मानसिकता अच्छे से सोचने में, और सच्चाई तक पहुंचने में, एक मुश्किल बन जाती है। अगर आपको सच तक पहुंचना है, तो आपको इसे बगल में रखना होगा।
“थिंकिंग इन बेट्स”: सीयूडीओएस
मर्टन आर स्कोलनिक, एक महान समाजशास्त्री थे जिन्होंने यह बताया कि हम कैसे समूह में रहकर अच्छा काम कर सकते हैं। उन्होंने “सीयूडीओएस” नामक एक तरीका दिया जो हमें सच्चाई तक पहुंचने में मदद करता है। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं:
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सी (Communism): किसी भी निर्णय से पहले हमें सारी जानकारी एकत्र करनी चाहिए। सभी को मिलकर खुलकर बात करनी चाहिए। कोई भी जानकारी छुपानी नहीं चाहिए, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों ना हो। अगर किसी को कोई बात बताने में झिझक हो रही है, तो भी उसे वह बात सबके सामने रखनी चाहिए। इससे सबको सही जानकारी मिलती है, और हम सही निर्णय ले सकते हैं।
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यू (Universality): इसका मतलब है कि सभी के लिए एक ही नियम होने चाहिए। अक्सर हम काबिल लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, और जो लोग कम काबिल होते हैं, उनके साथ नहीं। यह गलत है। हमें सभी को एक नजर से देखना चाहिए, और सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। इससे हम सभी की गलतियों को समझ सकते हैं, और समूह को बेहतर बना सकते हैं।
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डी (Disinterestedness): इसका मतलब है कि हमें निर्णय करते समय निष्पक्ष रहना चाहिए। अमेरिकी रिचर्ड फेनमैन ने कहा था कि जब हमें परिणाम पता होते हैं, तो हम परिस्थिति को अलग नजर से देखने लगते हैं। जैसे एक सही लगने वाले निर्णय के गलत परिणाम हो सकते हैं, और एक गलत लगने वाले निर्णय के सही परिणाम भी हो सकते हैं। इसलिए हमें परिणाम के बारे में सोचे बिना, सिर्फ यह देखना चाहिए कि हमारा निर्णय सही था या गलत।
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ओएस (Organized Skepticism): इसका मतलब है कि अगर सभी लोग किसी निर्णय को सही मान रहे हैं, तो किसी को यह भी सोचना चाहिए कि वह निर्णय कैसे गलत हो सकता है। हमें हमेशा यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि हमें क्या नहीं पता। इससे हम खुद को और अपने समूह को बेहतर बना सकते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: सीयूडीओएस और समूह में सही निर्णय लेना
हमेशा सभी से खुलकर बात करें। कोई भी जानकारी छिपाएं नहीं। इससे सभी को सही जानकारी मिलती है, और हम सही निर्णय ले सकते हैं। सभी के साथ समान व्यवहार करें।
“थिंकिंग इन बेट्स”: सीयूडीओएस और समूह में सही निर्णय लेना
किसी को भी कम मत समझें। इससे सभी का आत्मविश्वास बढ़ेगा, और समूह अच्छा काम कर सकेगा। निर्णय लेते समय निष्पक्ष रहें। परिणाम के बारे में सोचे बिना, सिर्फ यह देखें कि निर्णय सही था या गलत। अगर सभी लोग किसी निर्णय को सही मान रहे हैं, तो किसी को यह भी सोचना चाहिए कि वह निर्णय कैसे गलत हो सकता है। इससे हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं। इस तरह से सीयूडीओएस का तरीका अपनाकर, आप अपने आप को और अपने समूह को बेहतर बना सकते हैं। यह तरीका हमें सिखाता है कि कैसे हम समूह में रहकर सही निर्णय ले सकते हैं, और सच्चाई तक पहुंच सकते हैं।
“थिंकिंग इन बेट्स”: समाप्ति और अगली वीडियो की घोषणा
हमें उम्मीद है यह बुक समरी आपको अच्छी लगी होगी। दोस्तों, हमारे चैनल के साथ जुड़े, और हर दिन बेहतर बनें। धन्यवाद
Image credit: mdjmiah archive