As a Man Thinketh: हिंदी में सारांश
यह बुक बाइबल की एक कहावत पर आधारित है जिसमें लिखा है कि इंसान जो भी अपने मन में सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है। इसमें ऑथर ने बताया है कि हमारे विचारों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। वह बताते हैं कि किसी भी व्यक्ति का जीवन उसके विचारों से किस प्रकार जुड़ा होता है। यह किताब 1903 में जरूर लिखी गई है, लेकिन आज इसकी सार्थकता साबित होती है।
आप जो भी अपने मन में सोचते हैं, आप वैसे ही बन जाते हैं। व्यक्ति जो भी विचार अपने मन में लंबे समय तक रखता है, उसके बारे में सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है। लोग अपने आप को उन विचारों से बनाते हैं, जो मन में सोचते हैं, उन्हें बढ़ावा देते हैं। विचार ही इंसान की चरित्र को बनाते हैं, फिर बाहरी परिस्थितियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
इस बुक में 7 चैप्टर दिए गए हैं, हमारे जीवन का हर एक पहलू हमारे किसी न किसी विचार से जुड़ा हुआ होता है। हमारे विचार, चाहे सकारात्मक, अच्छे या बुरे हों, या सब, हमारे जीवन को किसी रूप में जरूर प्रभावित करते हैं। समझते हैं कि हमारे मन के विचार हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं:
Chapter 1: Thought and Character (विचार और व्यक्तित्व)
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हम खुद के रचनाकार हैं। जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं; यही सच भी है। हम जैसा सोचते हैं, हम जैसे थॉट रखते हैं, हमारा कैरेक्टर उसी थॉट के परिणाम हैं। जैसे एक पेड़ बिना बीज के एक पेड़ नहीं बन सकता, वैसे ही एक इंसान बिना सोच के एक इंसान नहीं बन सकता। हम जो होते हैं, वह हमारी सोच के बीच हमारे माइंड में बोले हुए शब्दों का परिणाम होता है।
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कर्म सोच का बीज है, आनंद और दुख उसका फल है। हम जैसा बोलते हैं, वैसा ही काटते हैं। अगर अच्छी सोच रखेंगे, तो अच्छा और सक्सेसफुल इंसान बनेंगे; बुरा और नेगेटिव सोच रखोगे, तो ठीक इसका उल्टा होगा।
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जैसे उसकी सोच बनती जाती है, वह ठीक वैसा ही बनता चला जाता है। मतलब साफ है कि इंसान शैतान या भगवान, सही बनता है। जब मन में गुस्सा, जलन, बदला जैसी सोच रखोगे, तो वैसे ही बनते चले जाओगे। जब मन में प्यार, खुशी, शांति, और शेयर करने की मानसिकता वाले थॉट्स रखोगे, तो ठीक वैसे ही बनते चले जाओगे।
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ऐसे लोगों की दुनिया में क्या वैल्यू है? हम सब जानते हैं, ऐसे लोगों की इस दुनिया में पूजा होती है। इसलिए, हम खुद के ही मेकर और मास्टर होते हैं। अपने कैरेक्टर को निखारते हैं, एक अच्छा समाज बनाते हैं, खुद ही अपनी किस्मत बनाते हैं। उसको कंट्रोल करके सही चीजों पर लगाने से हो सकता है।
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खुद को तरसने के लिए सबसे पहले अपनी थॉट्स को ध्यान से देखना होगा। ध्यान से देखना होगा कि हम दिन भर क्या सोचते हैं, क्या किसी के लिए दिल में नफ़रत है, एशिया या किसी को लेकर दिल में कोई गुस्सा है, क्या हम सेल्फिश हैं, मन में कोई लालच है? बहुत ही ध्यान से देखने के बाद, अब अपने थॉट्स को देख पाओगे। अंदर कभी ख़त्म ना होने वाला खज़ाना भरा हुआ है, आप जानते ही नहीं कि आप क्या-क्या कर सकते हैं। ऐसी शक्ति आपको मिल सकती है।
आपने वेदों के, बाइबल के, कुरान के योद्धाओं की कहानी तो ज़रूर सुनी होगी; भगवान और देवताओं की उनकी शक्तियों की कहानी ज़रूर सुनी होगी। आखिर वालों कौन हैं जिन्हें दुनिया महायोद्धा, देवता या भगवान कहती है, पूजा करती है? वह लोग होते हैं, जिन्होंने अपने अंदर छपी कभी ना ख़त्म होने वाले खज़ाने को खोज निकाला। वो सब कर गए, जो एक नॉर्मल इंसान के लिए जादू जैसा है। आप भी वैसा बन सकते हैं; इसके लिए बस आपको ध्यान देना होगा अपने थॉट्स पर, और फिर इसे रचना होगा।
Chapter 2: Effect of Thoughts on Circumstances (परिस्थितियों पर विचार का प्रभाव)
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बगीचे को सुंदर बनाने के लिए उसमें खराब घास को बाहर, से आए जंगली जानवरों को हटाना होता है; पौधे को पानी देना होता है, कुछ को तराशना पड़ता है। सबसे खास बात लगातार बगीचे को निरीक्षण करना पड़ता है, देखभाल करनी पड़ती है। हमको अपने माइंड का देखभाल करना होता है; माइंड में आए नेगेटिव थॉट्स को हटाना होता है, अच्छे थॉट्स को बढ़ाना होता है, उन्हें तराशना होता है।
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एशिया, नफ़रत, लालच जैसी भावनाओं को माइंड से बचाना होता है। लगातार ध्यान रखना पड़ता है, देखभाल करनी पड़ती है; देखना होता है कि माइंड में क्या चल रहा है। हमारे आसपास के एनवायरनमेंट, माहौल की वजह से हमारे विचार बनते हैं। विचार ही हमारा कैरेक्टर बनाते हैं। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि आप गरीब घर में पैदा हुए, इसलिए ज़िंदगी भर गरीब बनकर ही रहेंगे। हमारे परिस्थितियों से हमारी सोच बनती है, लेकिन थॉट प्रोसेस पर ध्यान देकर हम इसे चेंज कर सकते हैं। ऐसा करने से हमारा कैरेक्टर पूर्णतया चेंज हो जाएगा।
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बस सीखना होगा थॉट प्रोसेस को जानना होगा, या समझना होगा कि सभी में एक समान शक्ति मौजूद है, बस उसे हासिल करना होगा। सोच बदलते जाओगे, सरकमस्टेंसस अपने आप बदलते जाएंगे।
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हर थॉट्स की शुरुआत या तो हमने बोई होती है, या फिर हमने खुद ही उसे अपने माइंड में आने दिया है। उसने हमारे माइंड में अपने ज़रिए जमाए हैं; अब कभी ना कभी वह बीज बड़ा भी होगा, उसमें फल भी लगेंगे। अगर थॉट्स अच्छे होंगे, तो आपको अच्छे फल मिलेंगे; बुरे थॉट्स होंगे, तो बुरा फल मिलेगा।
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हम वह भी अट्रैक्ट नहीं करते जो हम चाहते हैं, हम वह भी अट्रैक्ट करते हैं जो हम हैं। मतलब हम खुद को जो मन में लेते हैं, बस वही बन जाते हैं। प्रॉब्लम्स यहीं पर आती हैं; हम परिस्थितियों को तो बदलना चाहते हैं, लेकिन खुद को नहीं।
Chapter 3: Effect of Thoughts on Health and Body (स्वस्थ और शरीर पर विचारों का प्रभाव)
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बॉडी हमारे माइंड का गुलाम होती है, अलादीन के चिराग वाले जिन की तरह। यह माइंड की हर बातों को मानती है, चाहे इसे जो भी हम दें। बीमारी से डरने वाले थॉट्स माइंड में रखोगे, तो देर सवेर बीमार हो जाओगे। ठीक इसी तरह हैप्पीनेस और हेल्दी वाले विचार माइंड में रखोगे, तो एनर्जी से भरपूर, खूबसूरत हो जाओगे।
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बीमारियां और हेल्थ, परिस्थितियों के फ़ौरन की वजह से होते हैं, जो और बीमार बना देते हैं।
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डर के जो थॉट्स होते हैं, वो बॉडी को एक बुलेट से ज़्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। अपने आसपास देख लो, वही लोग बीमार होते हैं, जो बीमारी से डरते रहते हैं। इसी डरने से लाखों की जान ली है।
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इसकी विपरीत, स्ट्रांग, हेल्दी, और पूरे थॉट्स बॉडी को वैसा ही बना देंगे। हमारी बॉडी बेसिक इंस्ट्रूमेंट है; माइंड जैसा चाहेगा, वैसा ही बन जाएगा। हम सोचते हैं कि डायट चेंज कर लेंगे, तो बॉडी चेंज हो जाएगी; लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा। सबसे पहले अपने थॉट्स को चेंज करना होगा; इसे पूरे बनाना होगा। ऐसे ही थॉट्स पूरे होंगे, आपका माइंड खुद ही इम्पोर डेट लेने नहीं देगा।
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अगर अपनी बॉडी की हिफ़ाज़त करना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने माइंड की हिफ़ाज़त करिए। अपनी बॉडी को रिन्यू करना चाहते हैं, तो अपने माइंड को रिन्यू कीजिए। नेचर के साथ कनेक्ट रहिए, सूरज की रोशनी में रहने दीजिए। 1 सेकंड के लिए भी अपनी बॉडी के बारे में नेगेटिव मत सोचिए। जिस तरह की बॉडी बनाना चाहते हैं, वैसे ही महसूस कीजिए या मन लीजिए कि आप ऐसा ही बन चुके हैं।
Chapter 4: Thought and Purpose (विचार और उद्देश्य)
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जब तक थॉट्स के साथ कोई पर्पस या उद्देश्य नहीं होता, तब तक कोई भी सक्सेस नहीं मिल सकती। हमारे आसपास के लोग बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं; लेकिन उनका कोई गोल नहीं है, कोई उद्देश्य नहीं है। सब सर झुकाकर गुलाम की तरह जी रहे हैं।
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जिसके लाइफ में कोई पर्पस नहीं होता, उसकी लाइफ में चिंता, डर, मुश्किल, हीनता घर बना लेती है। धीरे-धीरे इंसान कमज़ोर हो जाता है।
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हर इंसान के दिल में एक ज़ायज़ प्रकट होना चाहिए, उसे प्लेन के साथ हासिल भी करना चाहिए। सारे थॉट्स को सेंट्रलाइज़ करके एक ऐसा पर्पस बनाओ, जो आपको हमेशा मोटिवेट करता रहे।
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आपका पर्पस स्पिरिचुअल हैप्पीनेस होना सकता है, पैसा कमाना हो सकता है, बॉडी बनाना, या सिक्स पैक एबीएस बनाना हो सकता है। ध्यान रखिए, पर्पस ही आपको ज़िंदा रखता है, पर्पस ही हम इंसान बनाता है। वरना हम और जानवरों में क्या फर्क रह जाएगा?
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अगर आप पर्पस को हासिल करने में जो मिनट भी पर्पस से हट जाते हैं, या उसमें फ़ेल हो जाते हैं, तो आप फ़ेल हो जाएँगे। फ़ेल होने से बिल्कुल भी घबराना नहीं है। पर्पस हासिल करने के लिए आपको हद से ज़्यादा स्ट्रांग बनना होगा। वरना फ़ियर और डाउट आपके बड़े-बड़े पर्पस को खत्म कर देंगे। इसलिए, माइंड को स्ट्रांग करने के लिए खुद के डर और संदेह पर विजय पानी होगी।
Chapter 5: The Third Factor in Achievement (उपलब्धि पर विचार का प्रभाव)
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हम जो कुछ भी हासिल करते हैं, जो कुछ भी हासिल नहीं कर पाते, वह सब डायरेक्टली हमारे अपने थॉट्स के रिजल्ट्स होते हैं।
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हर जीत और हर हार हमारी रिस्पॉन्सिबिलिटी है। हमारी ताकत और कमज़ोरी, शुद्धता और अशुद्धता, हमारी अपनी है, ना कि किसी और की। गलतियाँ भी हमारी अपनी हैं, हमने ही सही करना है, किसी और को नहीं। खुशियाँ भी हमारी अपनी हैं, किसी और की नहीं।
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यानी कि हम जैसे सोचते हैं, वैसे बन जाते हैं, जैसा सोचते रहते हैं, वैसा ही बनते रहते हैं।
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एक स्ट्रांग इंसान एक कमज़ोर की हेल्प कब तक नहीं कर सकता? जब तक वह खुद ना चाहे। अगर वह चाहे कि उसे स्ट्रांग बनना है, तो उसे किसी और की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उसे खुद के एफ़र्ट्स डालने होंगे, खुद में वह क्वालिटी और स्ट्रेंथ महसूस करनी होगी, जिसकी जैसा वह बनना चाहते हैं।
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हम तभी उठ सकते हैं, विजय पा सकते हैं, पर्पस हासिल कर सकते हैं, जब तक कि हम थॉट्स को जीत हासिल नहीं कर लेते। जब तक थॉट्स का लेवल नहीं बढ़ा लेते।
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अगर आप एक सेल्फ़िश हैं, शेयर करना नहीं जानते, तो आप कुछ हासिल नहीं कर सकते। अगर आप सैक्रिफ़ाइस करोगे, तो उसके बदले आपको सक्सेस मिलेगी।
Chapter 6: Vision and Ideals (दृष्टिकोण और आदर्श)
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हम जो कुछ भी तरक्की देखते हैं, वह किसी ना किसी के विज़न का परिणाम होता है। इंसानियत कभी अपने ड्रीमर्स को नहीं भूल सकती, वह जो आइडियल होते हैं, कंपोज़र, स्कल्पचर, पेंटर, पोट, या खूबसूरत दुनिया के रचयिता हैं। हमारी दुनिया खूबसूरत है, क्योंकि यहां लोग रह रहे हैं, और रहेंगे।
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वह जिसके दिल में खूबसूरत विज़न है, एक आइडियल सेट कर रखा है, वह एक दिन वैसा ही बन जाएगा। महात्मा गांधी ने एक सपना देखा था, एक स्वतंत्र भारत का, और पीस पाने का विज़न बनाया था, जिसे आज पूरी दुनिया जानती है।
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अगर आपसे कहा जाए कि “जाओ”, तो आप कहाँ जाओगे? वहीं अगर आपसे कहा जाए कि “मुंबई जाओ”, तो आप निश्चित जा सकते हैं। यही विज़न है, हमें कहाँ तक जाना है; अब रास्ते आपको ढूँढने हैं। वहाँ जाने के हज़ार रास्ते होंगे; हर रास्ते में कहीं मुश्किलें भी आएंगी; लेकिन जाना है, मतलब जाना है।
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विज़न के बाद कोई समझौता नहीं। एक बार विज़न तो बना लिया है, लेकिन एक ऐसा आइडियल इंसान भी होना चाहिए, जिसने आपसे पहले वह विज़न का लिया हो। फिर उसको आइडियल मैन लो; जैसे उसने रास्ते में आने वाली हज़ार मुश्किलों को पार कर जीत हासिल की, वैसे ही आप भी करना। सब कुछ आसान हो जाएगा।
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यहां पे ध्यान रखना होगा, आपके आइडियल की हर बात से सहमत नहीं होना है। आपको अपने थॉट्स बनाने होंगे; लेकिन ऐसा होना चाहिए, जिसमें सिर्फ आपका स्वाद ना जुड़ा हो, बल्कि उसमें लोगों की भलाई जोड़ी हो।
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आपका विज़न इतना खूबसूरत होना चाहिए कि हर पल अपने आप आपको मोटिवेट करे। जैसे-जैसे मंज़िल की ओर बढ़ो, सूरज की तरह उगते-बढ़ते, आप खूबसूरत होंगे। तब यह खुशी, सुकून, जीवन साथ रहेगा। सोचो कितनी खूबसूरत लाइफ़, माँ की शांति!
माँ की शांति वह खज़ाना है, जो दुनिया के 2% लोग ही पा सकते हैं।
इसे पा लिया, फिर वह इंसान पूरी दुनिया में अलग नज़र आता है। पढ़ने, सुनने में आसान लगता है; लेकिन लगातार सेल्फ़ कंट्रोल के बाद ही इसे पाया जा सकता है।
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जब अंडरस्टैंडिंग बढ़ जाती है, लव और अटैचमेंट में फर्क समझ में आता है।
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जब मन से सेल्फ़िश फ़ीलिंग खत्म हो जाती है, तब यह जान लेते हो कि “मैं तो अपना बनाया हुआ एक है, इंसानों ने बनाया है; एक्चुअल में मैं ही सब कुछ हूं, मैं ही ईश्वर हूं।” तब इंसान का मन शांत हो जाता है। यही हर इंसान का एक मेन पर्पस होना चाहिए।
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एक साथ इंसान सिख जाता है खुद को कैसे कंट्रोल करना है; खुद को किसी भी परिस्थिति में अडॉप्ट कर लेता है। फिर उसे सब हासिल करना बच्चों के खेल जैसा हो जाता है।
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वास्तव में, फिर सक्सेस और फ़ेलियर का फ़र्क ही ख़त्म हो जाता है। वह बस जीता है, अपना हर एक पल राजा की तरह। उसकी पेट इतनी बढ़ जाती है कि वह कोई भी मुश्किल कम कर देता है।
अब जहां भी हो, कंडीशन हो, सबसे पहले खुद को एक्सेप्ट करो, अपने थॉट्स को पूरे करो।
खुद की बॉडी के बारे में हमेशा अच्छा थॉट्स रखो। लाइफ़ में विज़न बनाओ। फिर “वेल्थ, हैप्पीनेस, वर्क, एंड होमनेस” के साथ छोटी सी ज़िंदगी है। आपको अभी डिसाइड करनी है। ग्रामीणों की तरह, जैसे सभी जीते हैं, वैसे ज़िंदगी ना जीएं; यह शानदार, हल्दी, सक्सेस से भरी लाइफ़ ज़िंदगी है।
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