माइंडसेट: सफलता का नया मनोविज्ञान (Mindset: The New Psychology of Success – Hindi Book Summary by Carol Dweck)
मोटिवेशन, पर्सनैलिटी, एंड डेवलपमेंट, और हैंडबुक ऑफ़ कंबटेंस एंड मोटिवेशन भी कैरल ड्वेक की पब्लिकेशन्स हैं।
हमारा माइंडसेट इस बात को दर्शाता है कि हम क्या बिलीव करते हैं, क्या हम सीख सकते हैं और चेंज कर सकते हैं, क्या ग्रोथ कर सकते हैं या नहीं कर सकते।
चलिए इन पॉइंट्स को डिटेल में समझते हैं:
What is Mindset?
एक बार बहुत बड़ी कंपनी के हर मैनेजर ने इंटरव्यू पैनल क्रिएट किया। इस पैनल ने कुछ प्रोफ़ेशनल्स को सिलेक्ट किया, जैसे कि डॉक्टर, लॉयर्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आर्किटेक्ट। इन सब लोगों को एक मीटिंग में बुलाया। उन सबसे कॉमन सवाल किया गया। इस इंटरव्यू पैनल ने सबसे एक ही करके सवाल पूछा: “सर, आप BMW कब तक खरीद लेंगे?”
सभी ने अपने इनकम के हिसाब से जवाब दिया। डॉक्टर ने कहा, “मुझे 6 से 8 महीने लग जाएँगे।” लॉयर ने कहा, “मुझे 1 साल लग जाएगा।” आर्किटेक्ट ने कहा, “मुझे 2 साल लग जाएँगे।” सबने अपने-अपने इनकम के हिसाब से टाइम स्पेंड बताया कि वह कब तक BMW खरीद पाएंगे। क्या था उनका माइंडसेट? वही से इंटरव्यू पैनल हमारे महान इंडस्ट्रियलिस्ट श्री रतन टाटा जी के घर पहुँच गया। उनसे भी वही सवाल किया गया: “सर, आप BMW कब तक खरीद लेंगे?” तब रतन टाटा जी ने कहा कि, “कम से कम 5-6 साल लगेंगे।”
यह सुनकर इंटरव्यू पैनल बहुत शौक हुआ। उन्होंने रतन टाटा जी से सवाल किया, “सर, आप इतने अमीर व्यक्ति हैं, इतने सक्सेसफुल पर्सन हैं, आपके पास इतनी वेल्थ है, आपको फिर भी 5-6 साल BMW खरीदने के लिए लग जाएँगे?” रतन टाटा जी ने कहा, “BMW इतनी छोटी कंपनी नहीं है कि मैं उसे चार पांच महीने में खरीद सकूँ।”
तो यह उनका माइंडसेट है! BMW का नाम सुनकर उन सारे प्रोफ़ेशनल ने गाड़ी खरीदने की बात सोची; वही रतन टाटा जी ने कंपनी खरीदने के बाद सोची। इसको ही माइंडसेट कहते हैं।
माइंडसेट का महत्व
इस कल के शॉप से लेकर आपके फ़ुट के शॉप तक, आपके बॉडी की फ़िज़िकल करैक्टेरिस्टिक शुरुआत से ही कम-ज़्यादा प्रेरित, डिटरमिन होती है। बेशक आप प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हैं, लेकिन हम ह्यूमन बीइंग का नॉर्मली हमारे बॉडी के फ़ीचर्स पर बहुत कम कंट्रोल होता है।
लेकिन इंटेलेक्चुअल और फ़िज़िकल एबिलिटी के बारे में क्या? जैसे कि बास्केटबॉल खेलना, ड्राइंग करना, मैथ्स की प्रॉब्लम को सॉल्व करना? क्या ये जेनेटिक्स है, या हम इसे सीखते हैं? आज ज़्यादातर साइंटिस्ट इस बात से एग्री करते हैं कि अगर आप एक कॉन्सर्ट में वायलिन बजाने वाला व्यक्ति बनना चाहते हैं, तो आपको ना सिर्फ म्यूजिकल मेंटालिटी रखने की ज़रूरत है, बल्कि प्रैक्टिस के लिए अपने जीवन में कई साल देने होंगे।
हमारे माइंडसेट का एक इम्पोर्टेंट रोल लिया होता है कि हम खुद को और दूसरे को कैसे देखते हैं। हमारा माइंडसेट किसी चीज को सोचने, समझने और करने में हमारे बिलीव्स को शॉप याद देता है।
यह दो तरह के सेट के कांसेप्ट का बेस बनती है:
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फ़िक्स्ड माइंडसेट: फ़िक्स्ड माइंडसेट वाले लोग मानते हैं कि कुछ चीजों को करने के लिए पैदा हुए हैं, लेकिन बाकी चीजें उनके बस की बात नहीं।
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ग्रोथ माइंडसेट: ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग मानते हैं कि अगर वह हार्ड वर्क करते हैं, तो वह किसी भी चीज को कर सकते हैं। बस ट्राई करने की देरी है, जो लगने की देरी है। इस ग्रुप के लोग अपनी पूरी लाइफ़ बढ़ते रहते हैं, बिना किसी रिजर्वेशन और बिना किसी रिलेशनशिप में ऑयल है, विनय, स्किल हासिल करते रहते हैं। उनके लिए अपने सभी एक्सपेक्ट में लाइफ़ constantly चेंजिंग पोजीशन में होती है।
इसके अपोजिट, फ़िक्स्ड माइंडसेट वाले लोग अक्सर अपनी ब्लैक एंड व्हाइट सोच से अपने ग्रोथ में रुकावट डालते हैं। अगर वहीं किसी चीज में फ़ेल होते हैं, तो वो अपने सर को मिट्टी में छुपा लेते हैं, या फिर दूसरों को दोष देते हैं। वे खुद से अपने रिलेशन को कम करने की बजाय, अपने रिलेशनशिप में फ़ॉरएवर लव की एक्सपेक्टेशन करते हैं।
फ़िक्स्ड माइंडसेट वाले लोगों के लिए, एक व्यक्ति की एबिलिटी फ़िक्स्ड होती है, जो होती है। “टैलेंट ही महान है।” उनके विचार में एक व्यक्ति की एबिलिटी बदलनी नहीं जा सकती। एक व्यक्ति स्वभाव से टैलेंटेड या मूर्ख होता है, वह ऐसा ही रह जाता है; उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता। बड़ी कंपनियाँ, जैसे मैकेनिज्म के हर डिपार्टमेंट, जो बहुत सारे रुपए इन्वेस्ट करते हैं, यूनिवर्सिटी के सो-कॉल्ड नेचुरल तक पहुँचने में, या सब, इसी प्रकार की सोच रखते हैं।
कंपनी अपने एम्प्लॉई की अच्छी एबिलिटी से उनकी परफ़ॉर्मेंस में ग्रोथ की उम्मीद करते हैं; मगर क्योंकि एम्प्लॉई बहुत टैलेंटेड होते हैं, उन्हें कुछ नया नहीं सिखाया जा सकता। रिजल्ट के तौर पर, उनके अधिकारी उनकी लगातार जांच करते हैं। काम में कमी होने पर, वो सोचते हैं या उनके टैलेंट में कमी है। जो यह वह काम पूरा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी फ़िक्स्ड सोच रखने वाले लोग सोचते हैं, “एम्प्लॉई जो पहले दिन अच्छा काम नहीं कर रहे हैं, वो आगे भी नहीं कर पाएंगे; इसलिए उन्हें छोड़ना बेहतर है।”
वे केवल वही चीजें कर सकते हैं, जिसके लिए उन्हें चुना गया है। प्रैक्टिस से नया कुछ नहीं होने वाला। अब क्योंकि वह खुद और दूसरों को जज करने में तेजी दिखाते हैं, इसलिए वह सोचते हैं, दूसरे भी उनके बारे में यही सोचते हैं।
इसलिए, वह खुद को साबित करने में लगे रहते हैं। उनका मानना है कि उनकी एक गलती उन्हें जीवन भर मूर्ख बना सकती है। अपने एगो के लिए वह दूसरों की सहमति चाहते हैं, ताकि वह उन्हें बता सकें कि वह कितने टैलेंटेड हैं।
तरक्की और विकास
ग्रोथ माइंडसेट वाले लोगों में ही संभव है। जब ग्रोथ माइंडसेट वाले बच्चों को स्कूल में मैथ्स की कोई प्रॉब्लम सॉल्व करने को दी जाती है, तो वे इसे चैलेंज के रूप में स्वीकार करते हैं। उसे वैसे ही सॉल्व करते हैं, जैसे कि अपने घर में कर रहे हों। वे समझते हैं कि जितनी प्रॉब्लम को आज सॉल्व करेंगे, उतना ही सीखेंगे।
बच्चों के लिए ज़िंदगी आसमान की ऊँचाइयों पर होती है, उनकी क्षमताओं का अंदाज़ लगाना मुश्किल है। हालाँकि उनके अच्छे ग्रेड उनकी क्षमता बताते हैं; लेकिन इन बच्चों का मानना है कि वो अपने कार्य, लगन, और प्रेक्षण से बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं।
वे इंटरेस्टेड नहीं होते, ना ही वह दूसरे स्टूडेंट्स से बेहतर बनना चाहते हैं; बल्कि खुशी होती है कि “मैं खुद को अपनी पोटेंशियल से ज़्यादा बढ़ावा दे रहा हूँ।”
चाहे या पेंटिंग हो, वे केवल प्रैक्टिस करते हैं। वे जानते हैं कि समय-समय पर हर या प्रैक्टिस ही उनकी योग्यता में इंप्रूवमेंट ला सकती है।
वे बार-बार अपनी तकनीक में सुधार या बदलाव लाते रहते हैं। फिर अपनी गलतियों और कमज़ोरियों पर काम करते हैं।
संबंधों के मामले में, वे लगातार अपने पार्टनर्स को सीखने और लगातार खुद को सुधारने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं।
स्पोर्ट्स में वो अपने टीम की भावना का ख्याल रखते हैं। वे अपने बिज़नेस में अपने एम्प्लॉईज़ को रिस्पेक्ट देते हैं, उनके काम की सराहना करते हैं। कई चीजों पर उनके ईमानदार ओपिनियन की मांग करते हैं, भले ही सच कितना कड़वा हो।
ग्रोथ माइंडसेट के लोग प्रॉब्लम का सामना करते हैं; उसे एक रुकावट ना मानकर एक चैलेंज मानते हैं। वह अपनी इच्छा से खुद को और दुनिया को बेहतर बनाने में लगे रहते हैं।
एक उदाहरण: IBM
एम्प्लॉईज़ को लेकर उनके बेहतर तरीके से कंपनी चलती है।
लेकिन इसके बाद उनका बिहेवियर पूरी तरह से बदल गया। वो अपनी ख्याति पर ध्यान देने लगे; कंपनी की तरक्की से ज़्यादा वो अपनी इमेज पर ध्यान देने लगे।
वे “फ़िक्स्ड माइंडसेट” वाले हो गए। वो किसी भी चीजों को अच्छा या बुरा क्लासिफ़ाई करने से पहले या सोचने लगे, “लोगों ने विनर या लूजर कहेंगे,” क्योंकि वह एक विनर बनना चाहते थे। वो खुद को अधिक बुद्धिमान और टैलेंटेड दिखाने लगे। वह कंपनी का विकास भूल गए।
इसकी तुलना अगर लुइस गेस्ट से करें, जिन्होंने IBM को बंद होने से बचाया था। यह कंपनी, जहां सर्विस और टीम वर्क छोड़कर अपनी ऊर्जा और “फ़िक्स्ड माइंडसेट” वाले लोगों को प्रेरित होकर आंतरिक विवाद में लगी हुई थी। सभी लोग अपने बारे में सोच रहे थे; इसलिए कंपनी कस्टमर की ज़रूरत को पूरा नहीं कर पा रही थी।
लेकिन इसे बदलने के लिए, उन्होंने कंपनी की पुरानी सोच को बदला; टीम वर्क को महत्व दिया। एम्प्लॉईज़, जो अपने को वर्कर से अच्छी तरह पेश आते हैं, उन्हें सम्मानित किया, उनसे बातचीत करने की संभावनाओं को बढ़ा दिया, वहीं खुद को एक एम्प्लॉई की तरह देखना शुरू किया। उन्होंने बहुत कम समय में सभी लोगों के बीच कम्युनिकेशन गैप को खत्म किया।
लुईस के ग्रोथ माइंडसेट ने उन्हें टीम वर्क और विकास का नया एनवायरनमेंट बनाने में मदद की।
फ़ोकस एक व्यक्तित्व के ग्रुप पर आया।
इस “फ़िक्स्ड माइंडसेट” के चलते, IBM ने बहुत तरक्की की।
हमारा माइंडसेट का विकास
हमारी मानसिकता बचपन के रोल मॉडल से प्रभावित होती है। वह कौन से फ़ैक्टर होते हैं, जो ग्रोथ और “फ़िक्स्ड माइंडसेट” वाले लोगों के बीच अंतर बताते हैं?
बहुत से फ़ैक्टोरियाँ बताती हैं कि एक व्यक्ति अपनी ज़िंदगी व्यर्थ करेगा, या अपने पोटेंशियल का एहसास करेगा।
माइंडसेट का विकास जन्म से ही शुरू हो जाता है। नवजात इस दुनिया में ग्रोथ माइंडसेट के साथ आते हैं; वे हर दिन सीखना और बढ़ाना चाहते हैं।
बच्चों की ज़िंदगी में एडल्ट्स का एक बड़ा रोल निभाते हैं, जो कि सामान्यतः उनके माता-पिता होते हैं, जो यह डिसाइड करते हैं कि बच्चा “फ़िक्स्ड माइंडसेट” अपनाएगा या ग्रोथ माइंडसेट।
सरल भाषा में, ग्रोथ माइंडसेट वाले पेरेंट्स अपने बच्चों को नया सीखने के लिए इंस्पायर करेंगे; जबकि “फ़िक्स्ड माइंडसेट” वाले पेरेंट्स हमेशा अपने बच्चों को जज करते रहेंगे, उन्हें बताते रहेंगे कि क्या सही है और क्या गलत, क्या अच्छा है और क्या बुरा।
विकसित मानसिकता वाला बच्चा दूसरे बच्चों की मदद करता है, जो रो रहा है।
टीचर भी “फ़िक्स्ड माइंडसेट” और ग्रोथ माइंडसेट की भूमिका निभाते हैं।
टीचर ऐसा मानते हैं कि बच्चों की परफ़ॉर्मेंस बदली नहीं जा सकती। बुरे स्टूडेंट्स बुरा करेंगे, अच्छे स्टूडेंट्स अच्छा करेंगे। बुरे स्टूडेंट अपना माइंडसेट “फ़िक्स्ड” कर लेते हैं।
लेकिन अच्छे टीचर, जिनका यह मानना है कि स्टूडेंट्स कुछ भी सिख सकते हैं, चाहे जो भी सिचुएशन्स हों, वो हैंडल कर सकते हैं, ग्रोथ माइंडसेट को अपनाकर, कोई भी संभव को असंभव कर सकता है।
अपने माइंडसेट के विकास के लिए किसी व्यक्ति को अपने आसपास के वातावरण को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। दूसरी मानसिक क्षमताओं की तरह, दिमाग को भी ट्रेन किया जा सकता है।
अगर आप अपने माइंडसेट का विकास चाहते हैं, तो हम खुद
माइंडसेट का विकास कैसे करें?
खुद एकदम चलकर इसे सिख सकते हैं। दिमाग के विकास पर काम करते हुए, हम दूसरों से सपोर्ट ले सकते हैं। अपनी गलतियों के बारे में और उन्हें विजिबल करने की दिशा में ठोस कदम उठा सकते हैं, जिससे हम अपने टारगेट को हासिल कर सकें।
यह जानना आवश्यक है कि इसमें कई वर्षों तक संवेदना की मदद से हम “फ़ेलियर” से बच सकते हैं। अपने सेल्फ़ कॉन्फिडेंस को बूस्ट करते हुए, सबके सामने यह एग्जांपल रख सकते हैं।
सच तो यह है कि “फ़िक्स्ड माइंडसेट” को पूरी तरह से तुरंत नहीं बदला जा सकता। किसी विशेष परिस्थिति में, जैसे-जैसे कोई विकास की प्रक्रिया शुरू होती है, तो व्यक्ति की सोच अपने कारणों को खोजते हुए, प्रत्येक दिन विकास की प्रक्रिया की ओर बढ़ जाता है।
माइंडसेट के विकास की प्रक्रिया से किसी भी क्षेत्र में असंभव को संभव किया जा सकता है। इस संबंध में, ग्रोथ माइंडसेट की कुंजी है।
तो अभी आप लोगों ने जाना कि “फ़िक्स्ड माइंडसेट” और ग्रोथ माइंडसेट वाले लोगों के बीच में क्या अंतर होता है। तो आप लोगों को भी ग्रोथ माइंडसेट को अपनाना चाहिए। तभी आप जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।
आपकी सफलता की कुंजी आपके हाथ में है।
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