चैप्टर नंबर एक है कोई समस्या इतनी बड़ी नहीं है कि उसे सुलझाया ना जा सके। मेरे पुराने मित्र जेसी पेनी, 90 वर्ष के ओजपूर्ण इंसान थे, और हम दोनों न्यूयॉर्क के होटल में वक्ताओं की टेबल पर एक साथ बैठे थे। हम समस्याओं पर बातचीत करने लगे। मुद्दा यह था कि इंसान को जिंदगी के बारे में क्या करना चाहिए? मैंने कहा, “जेसी, अपने लंबे जीवन काल में आपके सामने बहुत सी मुश्किलें आई हैं। समस्याओं के बारे में आपका राय क्या है?” उनका जवाब इस महान और नेक दिल शख्सियत के काबिल था। उन्होंने जवाब दिया, “देखो नॉरमन, दरअसल मेरी जिंदगी में जितनी भी समस्याएं आई हैं, मैं उन सभी के लिए कृतज्ञ हूं। जब मैंने उनमें से प्रत्येक पर विजय पाई, तो हर जीत के साथ मैं ज्यादा शक्तिशाली बना, और आने वाली समस्याओं से मुकाबला करने में ज्यादा सक्षम बना। मैंने जो भी प्रगति की है, अपनी मुश्किलों की बदौलत की है। अगर आप भी अपनी समस्याओं से उभरना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले तो जेसी पेनी की तरह जिंदगी के प्रति एक सकारात्मक मानसिक नजरिया रखना होगा।”
सकारात्मक मानसिक नजरिया रखने के तीन कदम हैं:
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प्रतिक्रिया ना करें, बल्कि सोचें। जब कोई मुश्किल आन पड़े, तो इंसान में दहशत में आने या विचलित होने की प्रवृत्ति होती है। ऐसी प्रतिक्रियाएं भावनात्मक सांचे में ढली होती हैं, और अगर कोई इंसान ऐसी मानसिक अवस्था में भावी कार्यों की योजना बनाता है, तो इस बात की काफी आशंका रहती है कि वे पूरी तरह तर्कपूर्ण या विवेकशील नहीं होंगे। अपने दिमाग को ठंडा करने के लिए इंसान को खुद को अनुशासित करना चाहिए। दिमाग को ठंडा होने देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि दिमाग जब गर्म होता है, तो यह सोच नहीं सकता। दिमाग जब ठंडा होता है, तभी यह ऐसे तर्कपूर्ण और तथ्यात्मक विचार सोच सकता है जो समाधान की ओर ले जाते हैं। इसलिए खुद को भावनाओं के आवेश में आने की इजाजत ना दें। वास्तव में, आपका दिमाग आपकी सबसे बड़ी संपत्ति है। इसे हमें हमेशा अनुशासनात्मक नियंत्रण में रखें। उस कथन को याद रखें जिसका श्रेय थॉमस एडिसन को दिया जाता है: “शरीर का मुख्य उद्देश्य मस्तिष्क को यहां वहां ले जाना है।” यह महान आविष्कारक जानते थे कि दिमाग जब ठंडे अंदाज में काम करता है, तभी हमें विचार मिलते हैं, वरना हमें आवेग या गुस्सा मिलता है। इन दमदार विचारों से हम समस्याओं को सुलझा लेते हैं।
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कैसे सोचने वाले बने। अगर मगर सोचने वाला आदमी किसी मुश्किल या किसी विपत्ति के बारे में चिंता करता है, और दुखद अंदाज में खुद से कहता है, “अगर मैंने यह किया होता तो आज मेरी हालात अलग होती। यदि दूसरों ने मेरे साथ अन्याय नहीं किया होता, तो मैं आज एक खुशहाल जीवन जी रहा होता।” इस तरह से यह आदमी एक के बाद दूसरी व्याख्या तक, गोल-गोल घूमता रहता है, लेकिन कहीं पहुंच नहीं पाता है। संसार में अगर-मगर विचारक रखने वाले लोग पराजित पड़े हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ, कैसे सोचने वाले इंसान के सामने जब कोई मुश्किल या आपदा आती है, तो वह उसकी
चीरफुल है, क्योंकि वह जानता है कि हर समस्या का समाधान हमेशा होता है। वह खुद से पूछता है, “मैं सृजनात्मक तरीके से इस विपत्ति से कैसे लाभ ले सकता हूं? मैं इसमें से कोई अच्छी चीज बाहर निकालने का काम कैसे कर सकता हूं?” कैसे का तरीका सोचने वाला इंसान समस्याओं को प्रभावी ढंग से लेता है, क्योंकि वह जानता है कि हर मुश्किल में कोई ना कोई महत्त्वपूर्ण चीज छिपी होती है। वह निरर्थक अगर-मगर में समय बर्बाद नहीं करता है, बल्कि सीधे-सीधे कैसे पर काम करने लगता है।
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विश्वास करें कि आप कर सकते हैं, और आप कर लेंगे। यह प्रगतिशील सिद्धांत, विश्वास करने वालों के इतने ज्यादा लोगों के जीवन में सही साबित हुआ है कि इसकी प्रामाणिकता के बारे में कोई शंका नहीं है। यह भरोसा बेहद अहम है कि ईश्वरीय मदद से आप सारी समस्याओं से मुकाबला कर उनसे जीत पाएंगे। यदि आपको विश्वास है कि आप कर सकते हैं, तो आप वह काम कर लेंगे। एक व्यक्ति एक के बाद दूसरी असफलता का अनुभव कर रहा था। फिर उसने पुस्तक में एक वाक्य देखा जिसने उसे हिला दिया। वाक्य था, “सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा रखें, और इसे पा लें।” यह उसके दिल के अंदर चला गया और उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह पराजय के विचार सोच रहा था। हर दिन वह सबसे बुरे की उम्मीद कर रहा था, और आमतौर पर यही उसे मिल भी रहा था। इसलिए वह बाइबल में ऐसे व्यावहारिक विचारों की तलाश करने लगा जो उसकी असफलता की छवि को मिटा दें। उसे कई विचार मिले जिनमें यह दो विचार शामिल थे: “मांगे, और यह आपको दे दिया जाएगा। खोजें, और आप इसे पा लेंगे। खटखटाओ, और यह आपके लिए खोल दिया जाएगा। ईश्वर ने हमें डर का भाव नहीं दिया है, बल्कि शक्ति का, और प्रेम का, और तीव्र मस्तिष्क का वरदान दिया है।” बाइबल की इन पंक्तियों ने उसके दिमाग को पूरी तरह से धो दिया। इन्होंने उसके दिमाग से सारी शंकाएं और हीनताएं साफ कर दी। उसने कहा, “मैंने अपनी नौकरी के प्रति एक अलग नजरिया रखने का निर्णय लिया। मैं हर सुबह, दिन शुरू करते समय यह कहने लगा, ‘मुझे अपनी नौकरी पसंद है। यह मेरे जीवन का महानतम दिन होने वाला है।’ मैं यह समझ गया कि अगर मैं खुद पर विश्वास नहीं करूंगा, तो मैं किसी और से भी ऐसा करने की उम्मीद नहीं कर सकता हूं।”
ऑथर कहते हैं, “यदि आपका विश्वास कमजोर है, तो इसे बाइबल या किसी प्रेरणादायक पुस्तकों के शक्तिशाली विचारों से मजबूत बना लें। जो आपके मानसिक नजरिए को नया बना सकते हैं। इस तरह आप आत्मविश्वासी बन जाएंगे और समस्याओं से घिरी राह में भी अपने विश्वास को कायम रख पाएंगे।”
चैप्टर नंबर दो है डरने की कोई बात नहीं है। किसी भी भावना को दूर किया जा सकता है।
क्रोध को दूर किया जा सकता है। डिप्रेशन को दूर किया जा सकता है। नफरत को दूर किया जा सकता है। सबसे बड़ी बात, डर को दूर किया जा सकता है। किसी भी डर को दूर करने का पहला कदम बस यह एहसास करना है कि इसे सचमुच दूर किया जा सकता है। कभी भी मन में यह धारणा ना रखें कि आपको जिंदगी भर डर डर कर, या डर के साथ जीना पड़ेगा। आपको ऐसा करने की जरूरत नहीं है। यह ना सोचें कि आपके माता-पिता या दादा-नाना के मन में आशंकाएं या डर थे, इसलिए आप में भी होने चाहिए। यदि आप जिंदगी भर डर से परेशान रहना चाहते हैं, तो आप रह सकते हैं, वह भी बड़ी आसानी से। लेकिन यह जान ले कि आप में यह क्षमता है कि आप इसे बदल सकते हैं।
डर को खत्म करने के तीन कदम हैं:
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विश्वास से भरपूर व्यक्ति बनने का संकल्प लें। डर को खत्म करने के लिए सबसे बड़ा काम संकल्प के साथ कहना है कि “मैं अब चिंता और डर के वश में नहीं रहना चाहता। मैं अपने मन से चिंता और डर को बाहर निकालना चाहता हूं। अब मैं उनके शिकंजे में नहीं रहना चाहता। मैं इसी समय निर्णय लेता हूं। मैं इसी समय संकल्प लेता हूं, मैं इसी समय प्रबल इच्छा करता हूं कि मेरी चिंता और डर काबू में आ जाए और खत्म हो जाए। मैं आस्थावान इंसान बन जाऊं।” जाहिर है, आप इन बातों को चाहे जितनी प्रबलता से कह लें, वे अपने आप साकार नहीं हो जाएंगी। वे तो तब साकार होंगी जब आप उन्हें दृढ़ता से कहेंगे और अपनी इच्छा व निर्णय को साकार करने के लिए सचमुच संकल्पवान होंगे।
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एक बार में एक डर पर काम करें। एक कागज पर उन सभी चीजों की सूची बनाएं जिनसे आप डरते हैं। जहां तक संभव हो, ईमानदारी से पूरी सूची बनाएं। फिर सावधानी से अपनी सूची का अध्ययन करें, और अपने सबसे बड़े डर का पता लगाएं। यह वह डर होगा जो हर दिन मौजूद रहता है, और आपको सबसे ज्यादा परेशान करता है। हाल फिलहाल, सिर्फ इसी खास डर से जूझने का निर्णय लें। मैं यह तरीका इसलिए सुझा रहा हूं, क्योंकि आप में सिर्फ इतनी शक्ति होती है कि आप एक समय में केवल एक ही डर से मुकाबला कर सकते हैं। अगर आप अपने सारे डरों के समूह से एक साथ भिड़ने की कोशिश करेंगे, तो यह इतना विकट काम होगा कि आप इसमें सफल नहीं हो पाएंगे। पहले आप किसी एक खास डर पर विजय हासिल करते हैं, और फिर दूसरे पर, और फिर तीसरे पर। इस तरह जल्दी ही आप अपने डरों के पूरे समूह पर विजय पाने की शक्ति हासिल कर लेंगे। अमेरिकन इंडियनों को विश्वास था कि किसी योद्धा की खोपड़ी की शक्ति, उसे मारने वाले बहादुर इंसान में चली जाती थी। बहादुर अमेरिकन इंडियन उसकी कमर में बंधी खोपड़ियों की संख्या के अनुपात में शक्तिशाली होता था। एक बार में एक-एक डर की खोपड़ी काटे। इस तरह आप जल्दी ही ज्यादा बड़े, और ज्यादा शक्तिशाली डरों का सामना कर सकते हैं, और एक-एक करके उन्हें हरा सकते हैं।
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असफलता के डर को खत्म करें। असफलता का डर बहुत से लोगों को बहुत सताता है। हालांकि यह ऊपर से हमें दिखाई नहीं देता, यह आपके खिलाफ काम करने वाला एक खतरनाक डर है, क्योंकि यह व्यक्तित्व को पंगु बना सकता है, और इस तरह से वही असफलता दिला सकता है जिससे आप डरते हैं। समय-समय पर हर व्यक्ति का असफल होना तय है, और महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है: “आप असफलता पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं?” सच कहें तो असफलता एक उत्कृष्ट शिक्षक बन सकती है। हम अपनी गलतियों से यह सीख सकते हैं कि कोई चीज कैसे ना की जाए। फिर हम अपनी खुद की सफलताओं से यह भी सीख सकते हैं कि कोई चीज सही कैसे की जाए। नया और व्यावहारिक ज्ञान पाने के लिए असफलता और सफलता दोनों के भीतर खोजबीन करना महत्वपूर्ण है। पहले जो असफलता बहुत बुरी दिख रही थी, उसमें आपको महान उपलब्धियां मिल सकती हैं। लेकिन अगर आप असफलता को असफलता की तरह जारी रहने की अनुमति देते हैं, तो आप हमेशा असफल रहने वाले हैं। इसलिए जब आप असफलता का अनुभव करें, तो इस पर ज्ञान भरी निगाह डालकर खुद से पूछें कि आप असफल क्यों हुए हैं? फिर ज्यादा समझदार, ज्यादा सक्षम बनकर दोबारा इसकी ओर लौटें, और कभी भी किसी भी तरह से यह ना सोचें कि आप आगे भी असफल होते रहेंगे। इस अभ्यास की बदौलत आपको असफलता की सोच को बाहर रखने, और सफलता की सोच को अंदर रखने की प्रक्रिया में शक्ति मिलती है।
चैप्टर नंबर तीन है जीवन रोमांचक है!
इमर्सन ने लिखा था, “उत्साह के बिना कोई महान चीज कभी हासिल नहीं हुई है।” उत्साह एक असाधारण और प्रगतिशील गुण है। उत्साही नजरिया इतना शक्तिशाली और अजय होता है कि यह अपने सामने की सारी बाधाओं को साफ कर देता है। यह व्यक्तित्व को सजीव बनाता है और सोई हुई शक्तियों को जगा देता है। उत्साह और आस्था में थोड़ा सा ही फर्क होता है। शायद हम उत्साह को ऐसी आस्था कह सकते हैं जो प्रज्वलित हो गई है। उत्साह ईश्वर के सबसे बड़े उपहारों में से एक है। किसी छोटे बच्चे में सबसे असाधारण गुण क्या होता है? यह उत्साह है। वह संसार को शानदार मानता है, वह इससे प्रेम करता है। संसार की हर चीज उसे सम्मोहित करती है। हक्सले ने कहा था कि “बुद्धिमानी का रहस्य बालपन के भाव को बुढ़ापे तक कायम रखना है।” जिसका मतलब है कि हमें कभी भी अपना उत्साह नहीं खोना चाहिए। लेकिन बहुत कम लोग ही इस रोमांच को कायम रख पाते हैं।
उत्साह: जीवन का सार
और इसका एक कारण यह है कि वे अपने उत्साह को धीरे-धीरे करके बह जाने देते हैं। अगर आपको जीवन से उतना ज्यादा नहीं मिल रहा है जितना आप चाहते हैं, तो अपने उत्साह की जांच करें।
उत्साह विकसित करने के चार कदम हैं:
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दिन की सही शुरुआत करें। जागने के पाँच मिनट के भीतर ही आप किसी दिन की दिशा तय कर सकते हैं। हेनरी थोरो, सुबह उठते ही बिस्तर पर लेटे रहते थे और खुद को वे सारी अच्छी खबरें बताते थे जिनके बारे में वे सोच सकते थे। इसके बाद वे अच्छी घटनाओं, अच्छे लोगों, और अच्छे अवसरों से भरे संसार में बाहर निकलने के लिए तैयार हो जाते थे। प्रख्यात व्यवसाई डन फोर्थ ने कहा था, “हर सुबह खुद को अपनी पूरी ऊंचाई तक खींचकर खड़े हो, फिर ऊंचे विचार सोचें, महान विचार सोचें, उन्नत विचार सोचें, इसके बाद बाहर निकलें और ऊंचे काम करें।” ऐसा करेंगे तो खुशी आपकी ओर प्रवाहित होने लगेगी। दिन भर उत्साह फैलाते रहें, और रात को आपके पास उत्साह का इतना भंडार जमा हो जाएगा, जितना आपके पास पहले कभी नहीं रहा होगा।
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प्रेरणादायक पुस्तकें पढ़ें। यह उत्साह उत्पन्न करने वाले अंशों से भरी हुई हैं। मिसाल के तौर पर, इससे ज्यादा प्रेरक वाक्य और क्या हो सकते हैं? “जो इंसान विश्वास करता है, उसके लिए सारी चीजें संभव हैं।” और, “आप पूरे यकीन से प्रार्थना में जो भी मांगेंगे, वह आपको मिल जाएगा।” पुस्तकें पढ़ने से आपके सोचने की क्षमता बढ़ती है। किताबें ऐसा मित्र बन सकती हैं जो आपको कभी नहीं धोखा देगी, आपसे बेवफा भी करेगी, तो आपकी करियर बना देगी। इसलिए अपना दिल किताबों से लगाएं। यह आपका जीवन बदल सकती है।
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जीवन और लोगों से प्रेम करें। आसमान से प्रेम करें, सुंदरता से प्रेम करें, ईश्वर से प्रेम करें। जो व्यक्ति प्रेम करता है, वह हमेशा उत्साही रहता है। आज ही जीवन के प्रेम को विकसित करना शुरू कर दें। बिना प्रेम के इस दुनिया में रहना नरक जैसा है। इसलिए प्रेम से रहें, और प्रेम को इस दुनिया में फैलाते रहें। प्रकृति से प्रेम करें, पेड़-पौधों से प्रेम करें, उन हवाओं से प्रेम करें जो जीवन देता है, उस सूरज, उस चंद्रमा से प्रेम करें जो आपको अपनी तरह चमकने के लिए प्रेरित करता है। प्रेम से आपका उत्साह बढ़ता है। दोस्तों, सबसे बुरा दिवालिया वह इंसान है जिसने अपना उत्साह खो दिया है। इंसान अगर अपने उत्साह के सिवा संसार की बाकी हर चीज खो दे, तब भी वह दोबारा सफल हो जाएगा, लेकिन उत्साह के बिना नहीं।
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अपने ऊर्जा के स्तर की रक्षा करें। उत्साह से भरे रहने के लिए, जैसा ईश्वर आपको बनाना चाहता है वैसा बनें। उससे ज्यादा ग्रहण करें। यदि आप लगातार तनाव में रहते हैं, तो आपकी ऊर्जा घट जाती है, और आपका उत्साह भी। इसलिए सब कुछ छोड़ो, और ईश्वर को पकड़ो। ईश्वर की महान तकनीक पर चलें। ईश्वर से बुद्धिमत्ता मांगें, मार्गदर्शन मांगें, और फिर जीवन को सर्वश्रेष्ठ दें। अपनी सबसे अच्छी कोशिश के बाद, परिणाम ईश्वर पर छोड़ दें, और उसकी समझदारी पर भरोसा रखें। आप पाएंगे कि आपका नवीनीकरण हो गया है, आप नई ऊर्जा और नया उत्साह पाएंगे।
चैप्टर नंबर चार है चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है!
आपके दिमाग में जो भी चीज चलती है, आपका शरीर उसके प्रति संवेदनशील होता है। अगर आपके दिमाग में चिंता रहती है, तो इसका आपके शरीर के सभी अंगों पर विनाशकारी प्रभाव हो सकता है। चिंता का एक विचार चेतना में एक हल्की सी लकीर या नाली बना देता है। बार-बार दोहराए जाने पर यह विचार गहरा होकर डर या चिंता की नहर बन जाता है। इसके बाद, आपके मन में जो भी विचार आता है, लगभग हर विचार चिंता के रंग में डूबा होता है।
चिंता: एक मानसिक परिवेश
फलस्वरूप आप भयभीत इंसान बन जाते हैं, और हमेशा चिंता करते रहते हैं। इस प्रक्रिया के जरिए आप एक ऐसा मानसिक परिवेश बना देते हैं जिसमें चिंता फलती-फूलती है, और विकास करती है, और अंततः आपके पूरे जीवन अनुभव पर कब्जा कर लेती है। इस दुखद प्रक्रिया को रोकने का पहला कदम तो यह है कि आप चिंता के सांचे में ढले मानसिक परिवेश को नया बना लें, और इसकी जगह पर धीरे-धीरे एक आध्यात्मिक परिवेश रखें। यह चेतना में एक बिल्कुल नई विचार प्रणाली को भरकर किया जा सकता है।
चिंता को दूर करना: आध्यात्मिक परिवेश
हमारा सुझाव है कि आप अपने दिमाग में ईश्वर के महान शब्द ग्रहण करें। इन शब्दों को अपनी चेतना नियंत्रण केंद्र में गहराई तक घुल जाने दें, जहां आपके जीवन का सांचा बनता है। यदि इसे दृढ़ अंदाज में कायम रखा जाए, तो यह आपके विचारों से उन संक्रमणों को बाहर भगा देता है, जो इतने लंबे समय से चिंता के रोग को पोषण दे रहे थे।
चिंता की आदत छोड़ने के पांच तरीके हैं:
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अपनी कही बातें सावधानी से सुनें। अपनी हर टिप्पणी, पूरे ध्यान से दर्ज करें और इसका अध्ययन करें, ताकि आप पूरी तरह चेतन हो जाएं कि आप कितनी ज्यादा खिन्न और नकारात्मक टिप्पणियां करते हैं।
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पूरी तरह ईमानदार बनें। जब आप आप कोई नकारात्मक टिप्पणी करें, तो खुद से कहें, “देखो, मैं जो कह रहा हूं, क्या मैं सचमुच उस पर विश्वास करता हूं, या फिर मैं ऐसी नकारात्मक बातें कह रहा हूं जिन पर मुझे दरअसल जरा भी विश्वास नहीं है?”
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आप आमतौर पर जो नकारात्मक बात कहते हैं, उनका ठीक विपरीत कहने की आदत डालें। फिर आप देख सकते हैं कि नए सकारात्मक कथन कितने बेहतर लगते हैं। जब आप इस नई कार्य प्रणाली को जारी रखेंगे, तो पुरानी पराजयवादी बातों के बजाय अपने मुंह से जीवन, आशा, तथा अपेक्षा से भरे शब्दों, तथा विचारों को सुनना और भी ज्यादा रोमांचक हो जाएगा।
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इस नई कार्य प्रणाली पर काम करते समय होने वाली हर चीज की निगरानी रखें। छोटे से छोटे परिणामों को भी सावधानी से दर्ज करें और लिखें। मिसाल के तौर पर, अगर आप उदास अंदाज में यह कहने के आदी रहे हैं कि “आज मेरे साथ चीजें अच्छी नहीं होने वाली हैं,” तो गौर करें कि चीजें कितनी अच्छी तरह हो रही हैं।
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हर दिन, हर व्यक्ति और कार्य का सर्वश्रेष्ठ आशय निकालें। यह व्यक्तिगत विकास की बेहद रोमांचक आदत है। मुझे यह मेरे आटा मिल के दोस्त ने बताया था। हरी, सचमुच उत्साही इंसान थे, वे इतने ज्यादा उत्साही रहते थे कि एक दिन मैंने उनसे उनके सुखद स्वभाव का कारण पूछ लिया। उन्होंने कहा, “मैंने बहुत पहले यह निर्णय लिया था कि मैं हर स्थिति और हर व्यक्ति के शब्दों, तथा कार्यों का सबसे अच्छा मतलब निकाल लूंगा। जाहिर है, मैं वास्तविकता के प्रति अंधा नहीं था, लेकिन मैंने हमेशा सबसे पहले सबसे अच्छा मतलब निकालने पर जोर दिया। मुझे यकीन है कि यह आदत दरअसल अच्छे परिणाम देती है।” सबसे अच्छा मतलब निकालने की आदत की बदौलत मुझ में लोगों, कारोबार, चर्च, और बाकी रुचियों के प्रति उत्साह जागृत हुआ। इसकी बदौलत मुझे चिंता मुक्त जीवन जीने में बहुत मदद मिली।
चैप्टर नंबर पांच है अकेलेपन से कैसे निपटें?
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अपने भीतर संसाधनों की तलाश करें। ऐसे संसाधनों की तलाश करें जिन्हें आप अब तक नहीं खोज पाए हैं। ऐसे कई संसाधन हैं जिनका आप अब तक पता नहीं लगा पाए हैं, और जिनसे आप खुद के लिए ज्यादा रोचक बन जाएंगे।
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साथी। क्या आपने कभी खुद को अच्छा साथी माना है? एक ऐसा व्यक्ति जिसके साथ रहने में आपको मजा आए? कई लोग पाते हैं कि वे अपने साथ अच्छा समय गुजार सकते हैं।
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दिलचस्प। अपने मन को दिलचस्प विचारों से भरें। रोचक चीजें करें, रोचक पुस्तकें पढ़ें, संसार में हो रही घटनाओं में रुचि लें।
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खुद को भूलें। अकेला व्यक्ति, अपने बारे में सोच-सोच कर अकेलेपन को गहरा बनाता है। खुद को भूलना जीवन की एक बहुत महान काबिलियत है।
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आनंद। मजेदार किस्म के इंसान बने। ज्यादातर समय हंसें। हर चीज के मजेदार पहलू को देखने और उसकी कद्र करने की तीक्ष्ण योग्यता विकसित करें। आप जितने ज्यादा मजेदार होते हैं, आप उतने ही कम अकेले रहेंगे क्योंकि लोगों को मजेदार व्यक्ति पसंद आते हैं।
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प्रचुरता। अकेला जीवन बंजर और दुखद हो सकता है। इसका विरोधी शब्द है, “प्रचुर”। बहुत सारी गतिविधियां रखें, बहुत सारी रुचियां रखें। बहुत सारे नए अनुभव लें। अपने दिमाग को बहुत सारी चीजों से भरें, और आपके जीवन में वन में बहुत कुछ
अकेलेपन का समाधान
भर जाएगा।
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योजना। हर दिन की एक योजना बनाएं। कोई रोचक चीज करें, कोई अलग चीज करें। बहुत सारी जगहों पर जाएं, बहुत सारी चीजें देखें, बहुत से लोगों के साथ परिचय करें।
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देखें। आपके चारों तरफ हर जगह अकेले लोग रहते हैं। उनकी तलाश करें, और वे आपको मिल जाएंगे। चूंकि आप भी अकेले हैं, इसलिए आप उन्हें आसानी से पहचान लेंगे।
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करें। दूसरों के अकेलेपन को कम करने की कोशिश करें। जो दूसरों के लिए चीजें करता है, वह ज्यादा समय तक अकेला नहीं रहेगा। आप दूसरों के दुःख और अकेलेपन को कम करने के लिए जितना ज्यादा करते हैं, आपके जीवन का दुःख और अकेलापन भी उतना कम हो जाएगा।
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साहचर्य। दरअसल किसी को भी कभी अकेला रहने की जरूरत नहीं है। समुद्र के बीच में एक वीरान टापू पर भी आप अकेले नहीं हैं। कोई आपके साथ है। महान मित्र के साहचर्य को विकसित करें।
चैप्टर नंबर छह है तनाव को मुक्त कैसे करें?
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तनावग्रस्त खुद को सख्त बनने की अनुमति ना दें। कल्पना करें कि आप किसी कसक खींचे रबर बैंड की तरह हैं। अब खुद को ढीला छोड़ दें, और सामान्य स्वरूप में लौट आएं। अपनी सोच में शांति को तनाव का विरोधी मानें।
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दिन भर में एक-एक मिनट की शांति की अवधि निकालें। पल भर के लिए स्थिर हो जाएं। ईश्वर के बारे में एक मिनट सोचें। पहाड़ों या बादलों को एक मिनट देखें। देखें कि आप एक दिन में ऐसे कितने मिनट जमा कर सकते हैं।
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सांस लें। जब तनाव आता महसूस हो, तो एक गहरी सांस लें, फिर छोड़ें। इसे दोबारा करें। इसे तीसरी बार करें। गहरी सांस अंदर-बाहर, अंदर-बाहर करने से तनाव कम होता है।
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पत्ती। पल भर के लिए एक आराम कुर्सी में बैठें। अपना सिर पीछे टिका लें, अपने पैर फैला लें, अपने हाथ उठा लें, और उन्हें अपने घुटनों पर डीले गिरने दें, जैसे कोई गीली पत्ती किसी लट्टिस पर, किसी
तनाव का समाधान
लट्टू पर, ही हिल सकता है।
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मानसिक चित्र देखें। आप जीवन में जिस सबसे शांत और सुंदर जगह पर रहे हैं, एक पल तक उसका मानसिक चित्र देखें। स्मृति के जादू से इसे याद करें, और उसके पुराने उपचारात्मक प्रभाव का एक बार फिर आनंद लें। स्मृति में किसी सुंदर घाटी, समुद्र तट, या फूलों से भरे बाग की यात्रा करें।
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शांति। ईश्वर की शांति की कल्पना करें, जो समझ से परे है। कल्पना करें कि यह इस वक्त आपके मन और शरीर के हर हिस्से को छू रही है। इसे अपनी आत्मा की गहराई में व्याप्त होता महसूस करें। दृढ़ता से और जोर से कहें, “ईश्वर की शांति मेरे तनाव को शांति में बदल रही है।”
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बाहर निकालें। चेतन रूप से और जानबूझकर अपने दिमाग से हर उत्तेजित, हतोत्साहित, तनावग्रस्त विचार को बहा दें। इन विचारों को अपने मानसिक यंत्र से बाहर-बाहर-बाहर प्रवाहित होते देखें। इन्हें इसी समय छोड़ दें।
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शब्द। शब्दों के उपचार का अभ्यास करें। कठोर और कर्कश शब्द नहीं, बल्कि सुंदर, मधुर
तनाव का समाधान
ध्वनि वाले शब्द। शांतिदास से गहरे भाव से कहें। ऐसे शब्द बोलें जैसे, “शांति,” “विश्राम,” “आराम।”
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एकान्त। हर दिन 10 मिनट एकान्त में रहना तनाव का शक्तिशाली तोड़ हो सकता है। एकान्त के समय में कविता पढ़ें, सेल्फ हेल्प किताबें पढ़ें, प्रार्थना करें, और मनन करें। यदि यह प्रक्रिया हर दिन दोहराई जाती है, तो यह तनाव को कम कर देगी।
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दोहराएं। आगे, तनाव रहित करने वाले जो कथन दिए गए हैं, उन्हें हर दिन और रात को तीन बार दोहराएं। यदि संभव हो, तो जोर से। “जिसका मन आप में रमा है, उसे आप पूर्ण शांति में रखेंगे। तुम सभी जो श्रम करते हो, और तुम भारी बोझ से लदे हो, मेरे पास आओ और मैं तुम्हें आराम दूंगा। और मैं तुम्हें शांति देता हूं, उस तरह नहीं जिस तरह संसार देता है, बल्कि उस तरह जिस तरह मैं तुम्हें देता हूं। अपने हृदय को परेशान मत होने दो। ना ही इसे भयभीत होने दो।”
चैप्टर नंबर सात है दूसरों के साथ मिलजुलकर कैसे चलें?
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पसंद करें। यदि आप लोगों को सचमुच पसंद करते हैं, उनके साथ रहना चाहते हैं, उनके साथ बातचीत करना चाहते हैं, उनकी मदद करना चाहते हैं, तो आप पाएंगे कि लोग आमतौर पर आपको पसंद करेंगे। जब सांझी पसंद मौजूद होती है, तो लोग एक दूसरे के साथ मिलजुलकर रहते हैं।
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दिलचस्प। हमेशा सामने वाले की गतिविधियों और विचारों में रुचि लें। अपने बारे में बात करने के बजाय, बातचीत को सामने वाले की रुचियों पर केंद्रित रखें। यदि आप सामने वाले की रुचियों में तल्लीन रहते हैं, तो वह आपकी ओर ध्यान देगा, और आपका सुखद समय गुजरेगा।
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पसंद आने लायक। पसंद आने, और दूसरों के साथ मिलजुलकर रहने के लिए यह आवश्यक है कि आप पसंद आने लायक हो। पुरानी कहावत पर अमल करें: “मित्र पाने के लिए मित्र बनें।”
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नाम। नाम याद रखने की कला का अभ्यास करें। सामने वाले व्यक्ति पर ध्यान दें ताकि उसका नाम आपके दिमाग में दर्ज हो जाए। यह एहसास करें कि किसी व्यक्ति का नाम उसके लिए महत्त्वपूर्ण है, इसलिए नाम याद रखने से आपको मिलजुलकर रहने में मदद मिलेगी।
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आसान। सामने वाले के लिए साथ रहने को आसान बना दें। सहज किस्म के व्यक्ति बनें, ताकि आपके साथ रहने में कोई तनाव ना हो। पुरानी जूते जैसे व्यक्ति बनें।
दूसरों के साथ मिलजुलकर रहने के तरीके
संवेदनशील। चिड़चिड़ा बनने से बचें, कि आप आसानी से आहत हो जाएं। लोग अति संवेदनशील लोगों से दूर छिटकते हैं, क्योंकि उन्हें अप्रिय प्रतिक्रिया जगाने का डर होता है। आहत भावनाओं से प्रतिक्रिया करने के प्रलोभन से कतराए। आप लोगों के साथ अच्छी तरह रह लेंगे।
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उपचार करें। दूसरों के साथ होने वाली हर गलतफहमी का उपचार करने की सच्ची कोशिश करें। मानसिक और आध्यात्मिक रूप से अपनी शिकायतें बह जाने दें, और हर एक के प्रति सद्भाव का नजरिया रखें।
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करें। लोगों से प्रेम करें, और उनकी खातिर चीजें करें। मित्रता के निस्वार्थ और बहिर्मुखी कार्य करें। यह अवश्य भावी रूप से सुखद व्यक्तिगत संबंधों की ओर ले जाता है। इसका सार बाइबल के जाने-पहचाने उपदेश में है: “दूसरों के लिए वही करें जो आप चाहते हैं कि वे आपके लिए करें।”
पुस्तक सारांश का समापन
तो दोस्तों, आज की ऑडियो बुक समरी यहीं पर समाप्त करते हैं। यदि आपको यह ऑडियो बुक समरी थोड़ी भी पसंद आई हो, तो चैनल को लाइक और सब्सक्राइब जरूर करें।
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तो दोस्तों, अब हम आपसे विदा लेते हैं और आपसे मिलते हैं किसी नई और बेहतरीन ऑडियो बुक के साथ। तब तक रखिए अपना बेहतर ख्याल! जय हिंद! जय भारत!