[PDF] अहिंसा परमो धर्म | Ahinsa Paramo Dharma | eBookmela

अहिंसा परमो धर्म | Ahinsa Paramo Dharma

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अहिंसा परमो धर्म – एक विचारोत्तेजक ग्रंथ

“अहिंसा परमो धर्म” जैन धर्म का एक मूलभूत सिद्धांत है, जो इस ग्रंथ में स्पष्ट रूप से वर्णित है। ग्रंथ में प्रस्तुत विचार न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि सभी मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं। अहिंसा के महत्व को समझाते हुए, ग्रंथ हमें एक ऐसे समाज की ओर ले जाता है जो शांति और सद्भाव पर आधारित है।


अहिंसा परमो धर्म: जैन धर्म का आधार

“अहिंसा परमो धर्म” – यह वाक्यांश जैन धर्म के मूल सिद्धांत को दर्शाता है, जिसका अर्थ है कि अहिंसा सर्वोच्च धर्म है। यह धर्म सभी जीवों के प्रति दया, करुणा और सम्मान पर आधारित है। यह विचार न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि सभी मानवता के लिए प्रेरणादायक है।

इस लेख में, हम “अहिंसा परमो धर्म” के सिद्धांत का गहराई से अध्ययन करेंगे, जैन धर्म के इतिहास में इसके महत्व को समझेंगे, और इस सिद्धांत को अपने जीवन में कैसे लागू किया जा सकता है, इसका पता लगाएंगे।

जैन धर्म में अहिंसा का महत्व

जैन धर्म में, अहिंसा का महत्व किसी भी अन्य धर्म की तुलना में अधिक है। जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी ने अहिंसा को जीवन का मूल सिद्धांत माना और जीवन के सभी क्षेत्रों में इसे लागू करने का आह्वान किया। जैन धर्म के अनुसार, सभी जीवों में आत्मा होती है और सभी को सम्मान और करुणा का पात्र माना जाता है।

अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार, जैन धर्म के अनुयायी हिंसा से दूर रहते हैं। वे न केवल किसी भी प्राणी को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने से बचते हैं, बल्कि अपने विचारों और शब्दों से भी। वे सभी जीवों के प्रति दया, करुणा और सम्मान का प्रदर्शन करते हैं।

अहिंसा परमो धर्म: जैन धर्म का इतिहास

“अहिंसा परमो धर्म” का सिद्धांत प्राचीन काल से जैन धर्म का हिस्सा रहा है। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव ने अहिंसा के महत्व को पहचाना और इस सिद्धांत को अपने अनुयायियों को सिखाया। जैन धर्म के इतिहास में, कई संतों और तीर्थंकरों ने अहिंसा के लिए अपना जीवन समर्पित किया, जिससे इस सिद्धांत को और मजबूती मिली।

महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उन्होंने अहिंसा के सिद्धांत को और विकसित किया और इसे अपने जीवन में लागू करने के लिए एक व्यवहारिक मार्गदर्शन दिया। महावीर स्वामी ने “अहिंसा परमो धर्म” को जीवन का मूल सिद्धांत माना और अपने अनुयायियों को इसका पालन करने का आह्वान किया।

अहिंसा परमो धर्म: आधुनिक जीवन में

अहिंसा परमो धर्म का सिद्धांत आधुनिक जीवन में भी प्रासंगिक है। आज के समय में, हिंसा और क्रूरता व्याप्त है। युद्ध, आतंकवाद, पर्यावरणीय क्षति, और सामाजिक असमानता जैसी समस्याएं अहिंसा के सिद्धांत का पालन करने की आवश्यकता पर जोर देती हैं।

“अहिंसा परमो धर्म” का सिद्धांत हमें एक बेहतर दुनिया बनाने में मदद कर सकता है। इस सिद्धांत को अपने जीवन में लागू करने से, हम व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर हिंसा और क्रूरता को कम कर सकते हैं।

अहिंसा परमो धर्म: कैसे लागू करें

अहिंसा परमो धर्म का सिद्धांत केवल एक सिद्धांत नहीं है, बल्कि एक जीवन शैली है। इसे अपने जीवन में लागू करने के लिए, हम निम्न बातों पर ध्यान दे सकते हैं:

  • जीवों के प्रति दया दिखाएं: सभी जीवों के प्रति दया और करुणा का भाव रखें।
  • हिंसा से दूर रहें: शारीरिक, मानसिक, और मौखिक हिंसा से दूर रहें।
  • शांतिपूर्ण तरीके से समस्याओं का समाधान करें: अपनी समस्याओं का समाधान हिंसा के बजाय शांतिपूर्ण तरीके से खोजें।
  • अहिंसा का प्रचार करें: अहिंसा के महत्व को दूसरों को समझाएं और इसके प्रसार में योगदान दें।
  • पर्यावरण की रक्षा करें: पर्यावरण को बचाना भी अहिंसा का एक रूप है।

निष्कर्ष

“अहिंसा परमो धर्म” जैन धर्म का एक मूलभूत सिद्धांत है, जो न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि सभी मानवता के लिए प्रेरणादायक है। इस सिद्धांत को अपने जीवन में लागू करके, हम एक बेहतर दुनिया बना सकते हैं जो शांति, सद्भाव और करुणा पर आधारित हो।

संदर्भ:

कृपया ध्यान दें: इस लेख में उपयोग किए गए कुछ लिंक अंग्रेजी भाषा में हैं, क्योंकि हिंदी भाषा में इन विषयों पर व्यापक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

Ahinsa Paramo Jain Dharmaa by Not Available

Title: Ahinsa Paramo Jain Dharmaa
Author: Not Available
Subjects: Banasthali
Language: hin
Ahinsa Paramo Jain Dharmaa
Collection: digitallibraryindia, JaiGyan
BooK PPI: 300
Added Date: 2017-01-20 01:29:19

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