[PDF] गुरु - शिष्य -सत्संग | Guru-Shishya-Satsang | अज्ञात - Unknown | eBookmela

गुरु – शिष्य -सत्संग | Guru-Shishya-Satsang | अज्ञात – Unknown

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गुरु-शिष्य-सत्संग : एक अद्वितीय अनुभव

यह पुस्तक गुरु-शिष्य के पवित्र संबंध को एक नए आयाम में ले जाती है। लेखक की सरल भाषा और आकर्षक कहानी आपको सत्संग के आनंद में डुबो देती है। हर पाठक को गुरु के ज्ञान और शिष्य की उत्सुकता का अनुभव होता है।


गुरु-शिष्य-सत्संग: ज्ञान की यात्रा का मार्गदर्शन

“गुरु-शिष्य-सत्संग (पूर्व कंद)” श्‍रीरामकृष्‍ण शरण द्वारा रचित एक आध्‍यात्‍मिक ग्रंथ है जो गुरु-शिष्य संबंध के महत्‍व, सत्‍संग के लाभों और ज्ञान की यात्रा में उनके योगदान पर प्रकाश डालता है। इस ग्रंथ में ज्ञान का वह सार निहित है जो न केवल हमारे जीवन को प्रबुद्ध करता है, बल्कि हमें एक सच्‍चे मार्गदर्शक का मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।

गुरु का महत्‍व:

गुरु-शिष्य संबंध प्राचीन काल से ही भारतीय संस्‍कृति का अभिन्‍न अंग रहा है। यह संबंध केवल ज्ञानार्जन का साधन मात्र नहीं है, बल्कि आत्‍मनिर्माण का भी एक महत्‍वपूर्ण साधन है। गुरु अपने शिष्य को न केवल ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि जीवन के सच्‍चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते हैं। “गुरु-शिष्य-सत्संग” में शरण जी ने गुरु के महत्‍व को इस तरह उकेरा है कि पाठक अपने जीवन में गुरु के स्‍थान को गहराई से समझ पाए।

सत्‍संग का महत्‍व:

सत्‍संग वह साधना है जहाँ ज्ञानीजनों का संग होता है। यह संग सत्‍तगुणों को बढ़ाता है, मन को शांत करता है और जीवन को दिशा प्रदान करता है। शरण जी ने सत्‍संग के महत्‍व को अपने शिष्य के माध्यम से दिखाया है। शिष्य, गुरु के सत्‍संग में बैठकर, न केवल ज्ञानार्जन करता है बल्कि अपने जीवन में सकारात्‍मक बदलाव लाने की प्रेरणा भी प्राप्त करता है।

ज्ञान की यात्रा का मार्गदर्शन:

“गुरु-शिष्य-सत्संग” केवल ज्ञान की बात नहीं करता है, बल्कि ज्ञान प्राप्ति की यात्रा पर भी प्रकाश डालता है। शिष्य के मन में ज्ञान की पिपासा होती है, और गुरु उस पिपासा को शांत करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ग्रंथ में यह यात्रा विस्तार से वर्णित है, जहाँ शिष्य अपने गुरु के मार्गदर्शन में अज्ञात से ज्ञात की ओर बढ़ता है।

अज्ञात से ज्ञात की ओर:

“गुरु-शिष्य-सत्संग” में “अज्ञात” का एक विशेष महत्‍व है। शिष्य, जब अपने गुरु से मिलता है, तब वह अज्ञानी होता है। वह अपने जीवन के प्रश्‍नों के उत्तर ढूंढ़ रहा होता है। गुरु का ज्ञान शिष्य को अज्ञात से ज्ञात की ओर ले जाता है। यह यात्रा सत्‍संग के माध्यम से, गुरु के उपदेशों के माध्यम से, और अपने आत्‍मनिरीक्षण के माध्यम से होती है।

निष्‍कर्ष:

“गुरु-शिष्य-सत्संग (पूर्व कंद)” एक ऐसी पुस्तक है जो गुरु-शिष्य संबंध के महत्‍व, सत्‍संग के लाभों और ज्ञान की यात्रा में उनके योगदान को समझने में सहायक होती है। शरण जी की सरल भाषा और आकर्षक शैली पाठक को ज्ञान की यात्रा पर ले जाती है, जहाँ वह अपने अज्ञात से ज्ञात की ओर बढ़ता है।

संदर्भ:

Guru-shishy-satsang (purrav Kand) by Shreeramkrishan Sharan

Title: Guru-shishy-satsang (purrav Kand)
Author: Shreeramkrishan Sharan
Subjects: Banasthali
Language: hin
Guru-shishy-satsang  (purrav Kand)
Collection: digitallibraryindia, JaiGyan
BooK PPI: 600
Added Date: 2017-01-16 10:48:05

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