प्राचीन शिक्षा भाग 1 | Prachin Shiksha Bhag 1 | श्री कृष्ण दास – Shri Krishna Das
प्राचीन शिक्षा भाग 1 | Prachin Shiksha Bhag 1: एक अनमोल खजाना
यह पुस्तक, प्राचीन शिक्षा भाग 1, श्री कृष्ण दास द्वारा लिखी गई, भारतीय शिक्षा प्रणाली की गहराई से पड़ताल करती है। इतिहास के पन्नों से उभरती इस शिक्षा प्रणाली के मूल सिद्धांतों को समझना आज के समय में भी प्रासंगिक है। पुस्तक में वर्णित ज्ञान का भंडार हमारे जीवन को समृद्ध बनाने के लिए एक अनमोल खजाना है।
प्राचीन शिक्षा भाग 1 | Prachin Shiksha Bhag 1: एक विशेष लेख
परिचय
“प्राचीन शिक्षा भाग 1” श्री कृष्ण दास द्वारा लिखी गई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली को गहराई से प्रस्तुत करती है। पुस्तक में प्राचीन भारत के विद्वानों, शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण पद्धतियों और प्राचीन शिक्षा प्रणाली के मूल सिद्धांतों का विस्तृत विवरण दिया गया है। यह पुस्तक न केवल इतिहास के छात्रों के लिए बल्कि सभी उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जो प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिक्षा के बारे में जानना चाहते हैं।
श्री कृष्ण दास का जीवन और कार्य
श्री कृष्ण दास एक प्रसिद्ध विद्वान और लेखक थे, जो प्राचीन भारतीय साहित्य और इतिहास के जानकार थे। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें से “प्राचीन शिक्षा भाग 1” सबसे महत्वपूर्ण है। उनकी पुस्तकें उनके गहन अध्ययन और ज्ञान को दर्शाती हैं।
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली अपने समय के लिए अद्वितीय थी। यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण प्रदान करती थी। प्राचीन शिक्षा में “गुरु-शिष्य परंपरा” का विशेष महत्व था, जिसमें गुरु का शिष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता था। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं था, बल्कि व्यक्तिगत विकास, नैतिकता, और आध्यात्मिक ज्ञान को भी बढ़ावा देना था।
प्राचीन शिक्षा के प्रमुख पहलू
- गुरु-शिष्य परंपरा: शिक्षा का मुख्य आधार गुरु-शिष्य परंपरा थी, जिसमें गुरु शिष्य को न केवल ज्ञान प्रदान करता था बल्कि उसके व्यक्तित्व विकास का भी मार्गदर्शन करता था।
- वेदों का महत्व: वेद प्राचीन भारतीय शिक्षा का आधार थे, और सभी शिक्षा वेदों पर आधारित थी।
- नैतिक शिक्षा: शिक्षा में नैतिक शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान था। समाज में आचरण के उच्चतम मानदंडों का ज्ञान दिया जाता था।
- आध्यात्मिक ज्ञान: आध्यात्मिक ज्ञान को भी शिक्षा का एक अभिन्न अंग माना जाता था। यहाँ मोक्ष की प्राप्ति के लिए ज्ञान प्राप्त करने का लक्ष्य रखा जाता था।
प्राचीन शिक्षा प्रणाली के लाभ
- व्यक्तित्व विकास: यह प्रणाली व्यक्तित्व विकास पर ध्यान केंद्रित करती थी और बच्चों में समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना पैदा करती थी।
- नैतिक शिक्षा: इस प्रणाली में नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जाता था जो व्यक्ति के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
- आध्यात्मिक विकास: यह प्रणाली आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देती थी और व्यक्ति को जीवन के गहन अर्थ से जोड़ती थी।
निष्कर्ष
“प्राचीन शिक्षा भाग 1” प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली के बारे में एक मूल्यवान जानकारी प्रदान करती है। यह पुस्तक हमें हमारे अतीत की शिक्षा प्रणाली की समझ और इसके महत्व के बारे में जागरूक करती है। आज के समय में जब हमारे समाज में नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्यों का अभाव है, तब प्राचीन शिक्षा प्रणाली से सीखने के लिए बहुत कुछ है।
Prachin Sischa by Shri Kirshan Das |
|
Title: | Prachin Sischa |
Author: | Shri Kirshan Das |
Subjects: | IIIT |
Language: | hin |
Collection: | digitallibraryindia, JaiGyan |
BooK PPI: | 600 |
Added Date: | 2017-01-26 23:24:25 |