रघुवंश भाषा | Raghuvansh Bhasha | लाला सीताराम – Lala Sitaram
रघुवंश भाषा: एक अद्भुत साहित्यिक रत्न
लाला सीताराम जी द्वारा रचित “रघुवंश भाषा” एक अनोखी कृति है जो हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सीताराम जी ने इस पुस्तक में संस्कृत के महान कवि कालिदास के “रघुवंश” महाकाव्य को सुंदर हिंदी भाषा में अनुवाद किया है। यह पुस्तक अपने भावपूर्ण शब्दों, सरल भाषा और काव्यिक शैली के कारण आज भी पाठकों को मोहित करती है। यह पुस्तक केवल कालिदास के काव्य का अनुवाद नहीं है, बल्कि सीताराम जी की हिंदी भाषा पर अद्भुत नियंत्रण और कला का प्रमाण भी है।
विशिष्ट ब्लॉग पोस्ट:
रघुवंश भाषा: हिंदी साहित्य का एक अनमोल रत्न
हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा में कई ऐसे रत्न हैं जो आज भी अपनी चमक से पाठकों को मोहित करते हैं। इन्हीं में से एक है “रघुवंश भाषा” जो लाला सीताराम जी की रचना है। यह पुस्तक संस्कृत के महान कवि कालिदास के “रघुवंश” का हिंदी अनुवाद है, जिसमें सीताराम जी ने कालिदास के महान काव्य को अपनी शानदार लेखन शैली और भावपूर्ण शब्दों के माध्यम से एक नई रूप दिया है।
लाला सीताराम जी – हिंदी साहित्य के एक प्रखर रत्न:
लाला सीताराम जी एक प्रसिद्ध हिंदी लेखक और अनुवादक थे। उनका जन्म १८५१ में इलाहाबाद में हुआ था। सीताराम जी ने अपने समय के प्रमुख हिंदी लेखकों और कवियों से प्रभावित होकर अपने लेखन करियर की शुरुआत की। उनकी शैली सरल और भावपूर्ण थी, और उन्होंने हिंदी भाषा को एक नए ऊंचाई पर ले जाने का प्रयास किया। सीताराम जी के लेखन में कई विधाओं का समावेश है, जैसे काव्य, नाटक, निवेश, और अनुवाद। “रघुवंश भाषा” उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है, जो उनकी अद्भुत लेखन कला और हिंदी भाषा पर गहरी पकड़ का प्रमाण है।
रघुवंश भाषा – एक अद्वितीय अनुवाद:
“रघुवंश भाषा” का महत्व सिर्फ इसके अनुवाद में नहीं है, बल्कि इसके अनुवाद के माध्यम से सीताराम जी ने हिंदी भाषा को एक नई ऊंचाई पर ले जाने का प्रयास किया है। उनकी शैली सरल, भावपूर्ण, और काव्यिक है, जो कालिदास के मूल काव्य के भाव को बखूबी पेश करती है। सीताराम जी ने हिंदी भाषा के शब्दों का इस्तेमाल करके कालिदास के काव्य के मर्म को बखूबी समझाया है, और पाठक को कालिदास की काव्य दुनिया में खो जाने का अवसर देते हैं।
“रघुवंश भाषा” – साहित्यिक रत्न की अनमोल धरोहर:
“रघुवंश भाषा” आज भी हिंदी साहित्य का एक अनमोल रत्न है। यह पुस्तक सिर्फ कालिदास के काव्य का अनुवाद नहीं है, बल्कि हिंदी भाषा की शक्ति और सुंदरता का प्रमाण भी है। इस पुस्तक में सीताराम जी ने अपनी अद्भुत लेखन कला और हिंदी भाषा पर गहरी पकड़ का प्रमाण दिया है। “रघुवंश भाषा” एक अनिवार्य पठन है जो हिंदी साहित्य के प्रति आपकी समझ को गहरा करेगा और कालिदास की काव्य दुनिया में आपको खो जाने का अवसर देगा।
“रघुवंश भाषा” कैसे प्राप्त करें?
आजकल “रघुवंश भाषा” आसानी से प्राप्त करने के कई विकल्प उपलब्ध हैं। आप यह पुस्तक किताबों की दुकानों से खरीद सकते हैं, या ऑनलाइन स्टोर्स से ऑर्डर कर सकते हैं। इसके अलावा, आप यह पुस्तक मुफ्त में भी डाउनलोड कर सकते हैं। कई वेबसाइट्स पर “रघुवंश भाषा” के PDF वर्जन उपलब्ध हैं। आप इन वेबसाइट्स पर जाकर यह पुस्तक डाउनलोड कर सकते हैं और इसके अद्भुत साहित्य का आनंद ले सकते हैं।
संदर्भ:
नोट:
ऊपर दिए गए संदर्भ बस उदाहरण के लिए हैं। आप अपने ब्लॉग पोस्ट में अन्य संदर्भ का इस्तेमाल कर सकते हैं।
Raghuvansh Bhasha by Sitaram |
|
Title: | Raghuvansh Bhasha |
Author: | Sitaram |
Subjects: | IIIT |
Language: | hin |
Collection: | digitallibraryindia, JaiGyan |
BooK PPI: | 600 |
Added Date: | 2017-01-20 22:57:06 |