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सती वृतांत | Sati Vratant

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सती वृतांत – एक अद्भुत कथा

“सती वृतांत” एक ऐसी किताब है जो आपको अपने इतिहास से जोड़ती है और आपको अतीत के बारे में सोचने पर मजबूर करती है. इस पुस्तक की भाषा सरल और सुंदर है, जो आपको आसानी से कहानी में खींच लेती है. लेखक ने सती के वृतांत को बहुत ही मार्मिक तरीके से पेश किया है. यह पुस्तक उन लोगों के लिए एक शानदार विकल्प है जो भारतीय संस्कृति और इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं.


सती वृतांत: एक समाज के दर्पण में झलक

“सती वृतांत” नामक यह पुस्तक, शिवव्रत लाल वर्मन द्वारा लिखी गई है, जो हमें प्राचीन भारतीय समाज की एक विवादास्पद प्रथा, ‘सती’ के इतिहास में ले जाती है। यह पुस्तक न केवल सती प्रथा की ऐतिहासिक व्याख्या प्रदान करती है, बल्कि उस समय के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्य को भी उजागर करती है।

सती प्रथा का इतिहास:

सती प्रथा, जिसका अर्थ है “पति की मृत्यु पर विधवा का स्वयं दाह”, प्राचीन भारत में एक प्रचलित प्रथा थी। यह प्रथा वेदों में भी उल्लेखनीय है, और इसकी उत्पत्ति लगभग 2000 वर्ष पहले हुई थी। [1] हालांकि, यह प्रथा बाद में हिंदू धर्म में एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में स्थापित हो गई।

पुस्तक में, लेखक सती प्रथा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं। वह बताते हैं कि कैसे यह प्रथा विधवाओं की स्वतंत्रता छीनने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल की जाती थी। साथ ही, वह इस प्रथा को समाज में व्याप्त असमानता और नारी के प्रति ग़लत सोच का प्रतीक के रूप में पेश करते हैं।

सती वृतांत: एक विस्तृत अध्ययन:

“सती वृतांत” न केवल सती प्रथा के इतिहास पर ध्यान केन्द्रित करती है, बल्कि इससे जुड़े सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक पहलुओं को भी उजागर करती है।

  • सामाजिक संदर्भ: पुस्तक में, लेखक समाज में विधवाओं की स्थिति और उन पर लगाए जाने वाले सामाजिक दबाव का वर्णन करते हैं। सती प्रथा को समाज में एक नियम के रूप में कैसे स्थापित किया गया और उसे कैसे समर्थन प्राप्त हुआ, इस पर प्रकाश डाला गया है।
  • धार्मिक आधार: पुस्तक में सती प्रथा को धार्मिक ग्रंथों में कैसे जोड़कर पेश किया गया है, इसका वर्णन भी किया गया है। लेखक इस प्रथा के लिए धार्मिक आधार को ख़ारिज करते हुए बताते हैं कि यह प्रथा कैसे नारी के प्रति असमानता और दमन का प्रतीक है।
  • राजनीतिक प्रोत्साहन: पुस्तक में सती प्रथा को राजनीतिक रूप से कैसे समर्थन प्राप्त हुआ, इसका वर्णन भी किया गया है। कुछ शासकों ने इस प्रथा का इस्तेमाल अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया, जिसका उदाहरण पुस्तक में दिया गया है।

सती प्रथा का अंत:

19वीं सदी में ब्रिटिश राज के दौरान सती प्रथा का अंत हुआ। 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने एक कानून पास किया जिसने सती प्रथा को अवैध घोषित किया। [2] पुस्तक में, लेखक इस कानून के महत्व और समाज में इसके प्रभाव का वर्णन करते हैं।

सती वृतांत: आज का महत्व:

“सती वृतांत” एक ऐसी पुस्तक है जो हमें अतीत के बारे में सोचने पर मजबूर करती है और हमें समझाती है कि कैसे समाज में असमानता और दमन का इतिहास बहुत लंबा है। यह पुस्तक हमें आज के समय में भी सामाजिक न्याय और नारी सशक्तिकरण के महत्व को समझने में सहायता करती है।

निष्कर्ष:

“सती वृतांत” एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो हमें सती प्रथा के इतिहास और उससे जुड़े सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक पहलुओं को समझने में सहायता करती है। यह पुस्तक हमें आज के समय में भी सामाजिक न्याय और नारी सशक्तिकरण के महत्व को समझने में मदद करती है।

संदर्भ:

  1. सती प्रथा का इतिहास
  2. सती प्रथा का अंत

Sati Vratant by Varman,shivvrat Lal

Title: Sati Vratant
Author: Varman,shivvrat Lal
Subjects: Banasthali
Language: hin
Sati Vratant
Collection: digitallibraryindia, JaiGyan
BooK PPI: 300
Added Date: 2017-01-16 03:50:16

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