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Jeena Ki Kala By Shri Paramhans Yoganand Ji

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Description


.★ ★ पूज्य संत श्री आशाराम बापू जी (sant shri Asaram Bapu  ji ) 
के श्री चरणों मे समर्पित हमारी कुछ Website व Blog..

मेरे सदगुरूदेव पूज्यपाद सदगुरूदेव संत श्री आसारामजी महाराज

जीवन - झाँकी

 

अलख पुरुष की आरसीसाधु का ही देह |

लखा जो चाहे अलख को। इन्हीं में तू लख लेह ||

किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते है ये जिस समय आविर्भूत होते हैंउस समय के जन-समुदाय के लिए उनका जीवन ही सच्चा पथ-प्रदर्शक होता है एक प्रसिद्ध संत तो यहाँ तक कहते हैं कि भगवान के दर्शन से भी अधिक लाभ भगवान के चरित्र सुनने से मिलता है और भगवान के चरित्र सुनने से भी ज्यादा लाभ सच्चे संतों के जीवन-चरित्र पढ़ने-सुनने से मिलता है वस्तुतः विश्व के कल्याण के लिए जिस समय जिस धर्म की आवश्यकता होती हैउसका आदर्श उपस्थित करने के लिए भगवान ही तत्कालीन संतों के रूप में नित्य-अवतार लेकर आविर्भूत होते है वर्तमान युग में यह दैवी कार्य जिन संतों द्वारा हो रहा हैउनमें एक लोकलाडीले संत हैं अमदावाद के श्रोत्रियब्रह्मनिष्ठ योगीराज पूज्यपाद संत श्री आसारामजी महाराज |

महाराजश्री इतनी ऊँचायी पर अवस्थित हैं कि शब्द उन्हें बाँध नहीं सकते जैसे विश्वरूपदर्शन मानव-चक्षु से नहीं हो सकताउसके लिए दिव्य-द्रष्टि चाहिये और जैसे विराट को नापने के लिये वामन का नाप बौना पड़ जाता है वैसे ही पूज्यश्री के विषय में कुछ भी लिखना मध्यान्ह्य के देदीप्यमान सूर्य को दीया दिखाने जैसा ही होगा फ़िर भी अंतर में श्रद्धाप्रेम व साहस जुटाकर गुह्य ब्रह्मविद्या के इन मूर्तिमंत स्वरूप की जीवन-झाँकी प्रस्तुत करने का हम एक विनम्र प्रयास कर रहे हैं |

1. जन्म परिचय

संत श्री आसारामजी महाराज का जन्म सिंध प्रान्त के नवाबशाह जिले में सिंधु नदी के तट पर बसे बेराणी गाँव में नगरसेठ श्री थाऊमलजी सिरूमलानी के घर दिनांक 17 अप्रैल 1941 तदनुसार विक्रम संवत 1998 को चैत्रवद षष्ठी के दिन हुआ था आपश्री की पुजनीया माताजी का नाम महँगीबा हैं उस समय नामकरण संस्कार के दौरान आपका नाम आसुमल रखा गया था |

2. भविष्यवेत्ताओं की घोषणाएँ :

बाल्याअवस्था से ही आपश्री के चेहरे पर विलक्षण कांति तथा नेत्रों में एक अदभुत तेज था आपकी विलक्षण क्रियाओं को देखकर अनेक लोगों तथा भविष्यवक्ताओं ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक पूर्व का अवश्य ही कोई सिद्ध योगीपुरुष हैंजो अपना अधूरा कार्य पूरा करने के लिए ही अवतरित हुआ है निश्चित ही यह एक अत्यधिक महान संत बनेगा…’ और आज अक्षरशः वही भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो रही हैं |

3. बाल्यकाल :

संतश्री का बाल्यकाल संघर्षों की एक लंबी कहानी हैं विभाजन की विभिषिका को सहनकर भारत के प्रति अत्यधिक प्रेम होने के कारण आपका परिवार अपनी अथाह चल-अचल सम्पत्ति को छोड़कर यहाँ के अमदावाद शहर में 1947 में आ पहुँचाअपना धन-वैभव सब कुछ छुट जाने के कारण वह परिवार आर्थिक विषमता के चक्रव्यूह में फ़ँस गया लेकिन आजीविका के लिए किसी तरह से पिताश्री थाऊमलजी द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा तत्पश्चात् शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया |

4. शिक्षा :

संतश्री की प्रारम्भिक शिक्षा सिन्धी भाषा से आरम्भ हुई तदनन्तर सात वर्ष की आयु में प्राथमिक शिक्षा के लिए आपको जयहिन्द हाईस्कूलमणिनगर, (अमदावाद) में प्रवेश दिलवाया गया अपनी विलक्षण स्मरणशक्ति के प्रभाव से आप शिक्षकों द्वारा सुनाई जानेवाली कवितागीत या अन्य अध्याय तत्क्षण पूरी-की-पूरी हू-ब-हू सुना देते थे विद्यालय में जब भी मध्यान्ह की विश्रान्ति होतीबालक आसुमल खेलने-कूदने या गप्पेबाजी में समय न गँवाकर एकांत में किसी वृक्ष के नीचे ईश्वर के ध्यान में बैठ जाते थे |

चित्त की एकाग्रताबुद्धि की तीव्रतानम्रतासहनशीलता आदि गुणों के कारण बालक का व्यक्तित्व पूरे विद्यालय में मोहक बन गया था आप अपने पिता के लाड़ले संतान थे अतः पाठशाला जाते समय पिताश्री आपकी जेब में पिश्ताबादामकाजूअखरोट आदि भर देते थे जिसे आसुमल स्वयं भी खाते एवं प्राणिमात्र में आपका मित्रभाव होने से ये परिचित-अपरिचित सभी को भी खिलाते थे पढ़ने में ये बड़े मेधावी थे तथा प्रतिवर्ष प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थेफ़िर भी इस सामान्य विद्या का आकर्षण आपको कभी नहीं रहा  |लौकिक विद्यायोगविद्या और आत्मविद्या ये तीन विद्याएँ हैंलेकिन आपका पूरा झुकाव योगविद्या पर ही रहा आज तक सुने गये जगत के आश्चर्यों को भी मात कर देऐसा यह आश्चर्य है कि तीसरी कक्षा तक पढ़े हुए महराजश्री के आज M.A. व Ph.D. पढ़े हुए तथा लाखों प्रबुद्ध मनीषीगण भी शिष्य बने हुए हैं |

5. पारिवारिक विवरण :

माता-पिता के अतिरिक्त बालक आसुमल के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थी बालक आसुमल को माताजी की ओर से धर्म के संस्कार बचपन से ही दिये गये थे माँ इन्हें ठाकुरजी की मूर्ति के सामने बिठा देती और कहती -बेटाभगवान की पूजा और ध्यान करो इससे प्रसन्न हो कर वे तुम्हें प्रसाद देंगे |”वे ऐसा ही करते और माँ अवसर पाकर उनके सम्मुख चुपचाप मक्खन-मिश्री रख जाती बालक आसुमल जब आँखे खोलकर प्रसाद देखते तो प्रभु-प्रेम में पुलकित हो उठते थे |

घर में रहते हुए भी बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनकी भक्ति भी बढ़ती ही गयी प्रतिदिन ब्रह्ममुहर्त में उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना उनका नियम था |

भारत-पाक विभाजन की भीषण आँधियों में अपना सब कुछ लुटाकर यह परिवार अभी ठीक ढंग से उठ भी नहीं पाया था कि दस वर्ष की कोमल वय में बालक आसुमल को संसार की विकट परिस्थितिओं से जूझने के लिए परिवार सहित छोड़कर पिता श्री थाऊमलजी देहत्याग कर स्वधाम चले गये |

पिता के देहत्यागोपरांत आसुमल को पढ़ाई छोड़कर छोटी-सी उम्र में ही कुटुम्ब को सहारा देने के लिये सिद्धपुर में एक परिजन के यहाँ आप नौकरी करने लगे मोल-तोल में इनकी सच्चाईपरिश्रमी एवं प्रसन्न स्वभाव से विश्वास अर्जित कर लिया कि छोटी-सी उम्र में ही उन स्वजन ने आपको ही दुकान का सर्वेसर्वा बना दियामालिक कभी आताकभी दो-दो दिन नहीं भी आपने दुकान का चार वर्ष तक कार्यभार संभाला |

रात और प्रभात जप और ध्यान में |

और दिन में आसुमल मिलते दुकान में ||

अब तो लोग उनसे आशीर्वादमार्गदर्शन लेने आते आपकी आध्यात्मिक शक्तिओं से सभी परिचित होने लगे जप-ध्यान से आपकी सुषुप्त शक्तियाँ विकसित होने लगी थीअंतःप्रेरणा से आपको सही मार्गदर्शन प्राप्त होता और इससे लोगों के जीवन की गुत्थियाँ सुलझा दिया करते |

6. गृहत्याग :

आसुमल की विवेकसम्पन्न बुद्धि ने संसार की असारता तथा परमात्मा ही एकमात्र परम सार हैयह बात दृढ़तापूर्वक जान ली थी उन्होंने ध्यान-भजन और बढ़ा दिया ग्यारह वर्ष की उम्र में तो अनजाने ही रिद्वियाँ-सिद्वियाँ उनकी सेवा में हाजिर हो चुकी थींलेकिन वे उसमें ही रुकनेवाले नहीं थे वैराग्य की अग्नि उनके हृदय में प्रकट हो चुकी थी |

तरुणाई के प्रवेश के साथ ही घरवालों ने आपकी शादी करने की तैयारी की वैरागी आसुमल सांसारिक बंधनों में नहीं फ़ँसना चाहते थे इसलिये विवाह के आठ दिन पूर्व ही वे चुपके-से घर छोड़कर निकल पड़े काफ़ी खोजबीन के बाद घरवालों ने उन्हें भरूच के एक आश्रम में पा लिया |

7. विवाह :

चूँकि पूर्व में सगाई निश्चित हो चुकी हैअतः संबंध तोड़ना परिवार की प्रतिष्ठा पर आघात पहुँचाना होगा अब हमारी इज्जत तुम्हारे हाथ में है |” सभी परिवारजनों के बार-बार इस आग्रह के वशीभूत होकर तथा तीव्रतम प्रारब्ध के कारण उनका विवाह हो गयाकिन्तु आसुमल उस स्वर्णबन्धन में रुके नहीं अपनी सुशील एवं पवित्र धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी को समझाकर अपने परम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति कर संयमी जीवन जीने का आदेश दिया अपने पूज्य स्वामी के धार्मिक एवं वैराग्यपूर्ण विचारों से सहमत होकर लक्ष्मीदेवी ने भी तपोनिष्ठ एवं साधनामय जीवन व्यतीत करने का निश्चय कर लिया |

8. पुनः गृहत्याग एवं ईश्वर की खोज :

विक्रम संवत् 2020 की फ़ाल्गुन सुद 11 तदनुसार 23 फ़रवरी 1964 के पवित्र दिवस आप किसी भी मोह-ममता एवं अन्य विधन-बाधाओं की परवाह न करते हुए अपने लक्ष्य की सिद्दि के लिए घर छोड़कर निकल पड़े घूमते-घामते आप केदारनाथ पहुँचेजहाँ अभिषेक करवाने पर आपको पंडितों ने आशीर्वाद दिया कि: लक्षाधिपति भव |’ जिस माया कि ठुकराकर आप ईश्वर की खोज में निकलेवहाँ भी मायाप्राप्ति का आशीर्वाद…! आपको यह आशीर्वाद रास न आया अतः आपने पुनः अभिषेक करवाकर ईश्वरप्राप्ति का आशिष पाया एवं प्रार्थना की |’भले माँगने पर भी दो समय का भोजन न मिले लेकिन हे ईश्वर ! तेरे स्वरूप का मुझे ज्ञान मिले तथा इस जीवन का बलिदान देकर भी अपने लक्ष्य की सिद्दि कर के रहूँगा…|’

इस प्रकार क दृढ़ निश्चय करके वहाँ से आप भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र लीलास्थली वृन्दावन पहुँच गये होली के दिन यहाँ के दरिद्रनारायणों में भंडारा कर कुछ दिन वहीं पर रुके और फ़िर उत्त्तराखंड की ओर निकल पड़े गुफ़ाओंकन्दराओंवनाच्छादित घाटियोंहिमाच्छदित पर्वत-शृंखलाओं एवं अनेक तीर्थों में घुमे कंटकाकीर्ण मार्गों पर चलेशिलाओं की शैया पर सोये मौत का मुकाबला करना पड़ेऐसे दुर्गम स्थानों पर साधना करते हुए वे नैनीताल के जंगलों में पहुँचे |

9. सदगुरू की प्राप्ति :

ईश्वर की तड़प से वे नैनीताल के जंगलों में पहुँचे चालीस दिवस के लम्बे इंतजार के बाद वहाँ इनका परमात्मा से मिलानेवाले परम पुरूष से मिलन हुआजिनका नाम था स्वामी श्रीलीलाशाहजी महाराज वह घड़ी अमृतवेला कही जाती हैजब ईश्वर की खोज के लिए निकले परम वीर पुरूष को ईश्वरप्राप्त किसी सदगुरू का सान्निध्य मिलता है उस दिन को नवजीवन प्राप्त होता हैं |

गुरू के द्वार पर भी कठोर कसौटियाँ हुईलेकिन परमात्मा के प्यार में तड़पता हुआ यह परम वीर पुरूष सारी-की-सारी कसौटियाँ पार करके सदगुरूदेव का कृपाप्रसाद पाने का अधिकारी बन गया सदगुरूदेव ने साधना-पथ के रहस्यों को समझाते हुए आसुमल को अपना लिया अद्यात्मिक मार्ग के इस पिपासु-जिज्ञासु साधक की आधी साधना तो उसी दिन पूर्ण हो गईजब सदगुरू ने अपना लिया परम दयालु सदगुरू साई लीलाशाहजी महाराज ने आसुमल को घर में ही ध्यान-भजन करने का आदेश देकर 70 दिन बाद वापस अमदावाद भेज दिया घर आये तो सही लेकिन जिस सच्चे साधक का आखिरी लक्ष्य सिद्द न हुआ होउसे चैन कहाँ…?

10. तीव्र साधना की ओर :

तेरह दिन पर घर रुके रहने के बाद वे नर्मदा किनारे मोटी कोरल पहुँचकर पुनः तपस्या में लीन हो गये आपने यहाँ चालीस दिन का अनुष्ठान किया कई अन्धेरी और चाँदनी रातें आपने यहाँ नर्मदा मैया की विशाल खुली बालुका में प्रभु-प्रेम की अलौकिक मस्ती में बिताई प्रभु-प्रेम में आप इतने खो जाते थे कि न तो शरीर की सुध-बुध रहती तथा न ही खाने-पीने का ख्यालघंटों समाधि में ही बीत जाते |

11. साधनाकाल की प्रमुख घटनाएँ

एक दिन वे नर्मदा नदी के किनारे ध्यानस्थ बैठे थे मध्यरात्रि के समय जोरों की आँधी-तूफ़ान चली आप उठकर चाणोद करनाली में किसी मकान के बरामदे में जाकर बैठ गये रात्रि में कोई मछुआरा बाहर निकला और संतश्री को चोर-डाकू समझकर  निकला और संतश्री को चोर-डाकू समझकर उसने पुरे मोहल्ले को जगाया सभी लोग लाठीभालाचाकूछुरीधारिया आदि लेकर हमला करने को उद्वत खड़े हो गयेलेकिन जिसके पास आत्मशांति का हथियार होउसका भला कौन सामना कर सकता है शोरगुल के कारण साधक का ध्यान टूटा और सब पर एक प्रेमपूर्ण दृष्टि डालते हुए धीर-गंभीर निश्चल कदम उठाते हुए आसुमल भीड़ चीरकर बाहर निकल आये बाद में लोगों को सच्चाई का पता चला तो सबने क्षमा माँगी |

आप अनुष्ठान में संलग्न ही थे कि घर से माताजी एवं धर्मपत्नी आपको वापस घर ले जाने के लिये आ पहुँची आपको इस अवस्था में देखकर मातुश्री एवं धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी दोनों ही फ़ूट-फ़ूटकर रो पड़ी इस करुण दृष्य को देखकर अनेक लोगों का दिल पसीज उठालेकिन इस वीर साधक कि दृढ़ता तनिक भी न डगमगाई |

अनुष्ठान के बाद मोटी कोरल गाँव से संतश्री की विदाई का दृष्य भी अत्यधिक भावुक था हजारों आंखें उनके वियोग के समय  बरस रही थीं |

लालजी महाराज जैसे स्थानीय पवित्र संत भी आपको विदा करने स्टेशन तक आये मियांगाँव स्टेशन से आपने अपनी मातुश्री एवं धर्मपत्नी को अमदावाद की ओर जानेवाली गाड़ी में बिठाया और स्वयं चलती गाड़ी से कूदकर सामने के प्लेटफ़ार्म पर खड़ी गाड़ी से मुंबई की ओर रवाना हो गये |

12. आत्म-साक्षात्कार :

दूसरे दिन प्रातः मुंबई में वृजेश्वरी पहुँचेजहाँ आपके सदगुरूदेव परम पूज्य लीलाशाहजी महाराज एकांतवास हेतु पधारे थे साधना की इतनी तीव्र लगनवाले अपने प्यारे शिष्य को देखकर सदगुरूदेव का करुणापूर्ण हृदय छलक उठा गुरूदेव ने वात्सल्य ब्बरसाते हुए कहा :हे वत्स ! ईश्वरप्राप्ति के लिए तुम्हारी इतनी तीव्र लगन देखकर में बहुत प्रसन्न हूँ |”

गुरूदेव के हृदय से बरसते हुए कृपा-अमृत ने साधक की तमाम साधनाएँ पूर्ण कर दी पूर्ण गुरू ने शिष्य को पूर्ण गुरुत्व में सुप्रतिष्ठित कर दिया साधक में से सिद्द प्रकट हो गया आश्विन मास शुक्ल पक्ष द्वितीया संवत 2021 तदनुसार 7 अक्तुबर 1964 बुधवार को मधयान्ह ढाई बजे आपको आत्मदेव-परमात्मा का साक्षात्कार हो गया आसुमल में से संत श्री आसारामजी महाराज का आविर्भाव हो गया |

आत्म-साक्षात्कार पद को प्राप्त करने के बाद उससे ऊँचा कोई पद प्राप्त करना शेष नहीं रहता है उससे बड़ा न तो कोई लाभ हैन पुण्य…| इसे प्राप्त करना मनुष्य जीवन का परम कर्त्तव्य माना गया है जिसकी महिमा वेद और उपनिषद अनादिकाल से गाते आ रहे है…| जहाँ सुख और दुःख की तनिक भी पहुँच नहीं हैजहाँ सर्वत्र आनंद-ही-आनंद रहता हैदेवताओं के लिये भी दुर्लभ इस परम आनन्दमय पद में स्थिति प्राप्तकर आप संत श्री आसारामजी महाराज बन गये |

13. एकांत साधना

सात वर्ष तक डीसा आश्रम और माउन्ट आबू की नलगुफ़ा में योग की गहराइयों तथा ज्ञान के शिखरों की यात्रा की धयान्योगलययोगनादानुसंधानयोगकुंडलिनीयोगअहंग्रह उपासना आदि भिन्न-भिन्न मार्गों से अनुभूतियाँ करनेवाले इस परिपक्व साधक को सिद्द अवस्था में पाकर प्रसन्नात्माप्राणिमात्र के परम हितैषी पूज्यपाद लीलाशाहजी बापू ने आपमें औरों को उन्नत करने का सामर्थ्य पूर्ण रूप से विकसित देखकर आदेश दिया :

मैने तुम्हें जो बीज दिया थाउसको तुमने ठीक वृक्ष के रूप में विकसित कर लिया है अब इसके मीठे फ़ल समाज में बाँटों पापतापशोकतनाववैमनस्यविद्रोहअहंकार और अशांति से तप्त संसार को तुम्हारी जरूरत है |”

गुलाब का फ़ूल दिखाते हुए गुरूदेव ने कहा :इस फ़ूल को मूँगमटरगुड़चीनी पर रखो और फ़िर सूँघो तो सुगन्ध गुलाब की ही आएगी ऐसे ही तुम किसी के अवगुण अपने में मत आने देना गुलाब की तरह सबको आत्मिक सुगंधआध्यात्मिक  सुगंध देना |”

आशीर्वाद बरसाते हुए पुनः उन परम हितैषी पुरुष ने कहा |

आसाराम ! तू गुलाब होकर महक तुझे जमाना जाने अब तुम गृहस्थी में रहकर संसारताप से तप्त लोगों में यह पापतापतनावरोगशोकदुःख-दर्द से छुड़ानेवाला आध्यात्मिक  प्रसाद बाँटों और उन्हें भी अपने आत्म-स्वरूप में जगाओ।

बनास नदी के तट पर स्थित डीसा में आप ब्रह्मानन्द की मस्ती लुटते हुए एकांत में रहे यहाँ आपने एक मरी हुई गाय को जीवनदान दियातबसे लोग आपकी महानता जानने लगे फ़िर तो अनेक लोग आपके आत्मानुभव से प्रस्फ़ुटित सत्संग सरिता में अवगाहन कर शांति प्राप्त करने तथा अपना दुःख-दर्द सुनाने आपके चरणों में आने लगे |

 

प्रतिदिन सायंकाल को घुमना आपका स्वभाव है एक बार डीसा में ही आप शाम को बनास नदी की रेत पर आत्मानन्द की मस्ती में घुम रहे थे कि पीछे से दो शराबी आये और आपकी गरदन पर तलवार रखते हुए बोले : काट दूँ क्या ? आपने बड़ी ही निर्भीकता से जवाब दिया कि : तेरी मर्जी पूरण हो |” वे दोनों शराबी तुरन्त ही आपश्री की निर्भयता एवं ईश्वरीय मस्ती देख भयभीत होकर आपके चरणों में नतमस्तक हो गये और क्षमा-याचना करने लगे एकांत में रहते हुए भी आप लोकोउत्थान की प्रवृत्तियों में संलग्न रहकर लोगों के व्यसनमांस व मद्दपान छुड़ाते रहे |

उसी दौरान एक दिन आप डीसा से नारेश्वर की ओर चल दिये तथा नर्मदा के तटवर्ती एक  ऐसे घने जंगल में पहुँच गये कि वहाँ कोई आता-जाता न था वहीं एक वृक्ष के नीचे बैठकर आप आत्मा-परमात्मा के ध्यान में ऐसे तन्मय हुए कि पूरी रात बीत गई सवेरा हुआ तो ध्यान छोड़कर नित्यकर्म में लग गये तत्पश्चात भूख-प्यास सताने लगी लेकिन आपने सोचा : मैं कहीं भी भिक्षा माँगने नहीं जाऊँगायहीं बैठकर अब खाऊँगा यदि सृष्टिकर्ता को गरज होगी तो वे खुद मेरे लिए भोजन लाएँगे |’

और सचमुच हुआ भी ऐसा ही दो किसान दूध और फ़ल लेकर वहाँ आ पहुँचेसंतश्री के बहुत इन्कार करने पर भी उन्होंने आग्रह करते हुए कहा : हम लोग ईश्वरीय प्रेरणा से ही आपकी सेवा में हाजिर हुए हैं किसी अदभुत शक्ति ने रात्रि में हमें मार्ग दिखाकर आपश्री के चरणों की सेवा में यह सब अर्पण करने को भेजा है|” अतः संत श्री आसारामजी ने थोड़ा-सा दूध व फ़ल ग्रहणकर वह स्थान भी छोड़ दिया और आबू की एकांत गुफ़ाओंहिमालय के एकांत जंगलों तथा कन्दराओं में जीवनमुक्ति का विलक्षण आनंद लूटते रहे साथ -ही- साथ संसार के ताप से तप्त हुए लोगों के लिये दुःखनिवृत्ति और आत्मशांति के भिन्न-भिन्न उपाय खोजते रहे तथा प्रयोग करते रहे |

लगभग सात वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात परम पूज्य सदगुरूदेव स्वामी श्री लीलाशाहजी महारज के अत्यन्त आग्रह के वशीभूत हो एवं अपनी मातुश्री को दिये हुए वचनों का पालनार्थ पूज्यश्री ने संवत 2028 में गुरूपूर्णिमा अर्थात 8 जुलाई1971 के दिन अमदावाद की धरती पर पैर रखा |

14. आश्रम स्थापना :

साबरमती नदी के किनारे की उबड़-खाबड़ टेकरियो (मिटटी के टीलों) पर भक्तों द्वारा आश्रम के रूप में दिनांक : 29 जनवरी1972 को एक कच्ची कुटिया तैयार की गयी इस स्थान के चारों ओर कंटीली झाड़ियों व बीहड़ जंगल थाजहाँ दिन में भी आने पर लोगों को चोर-डाकुओं का भय बराबर बना रहता था लेकिन आश्रम की स्थापना के बाद यहाँ का भयानक और दूषित वातावरण एकदम बदल गया आज इस आश्रमरूपी विशाल वृक्ष की शाखाएँ भारत ही नहींविश्व के अनेक देशों तक पहुँच चुकी है साबरमती के बीहड़ों में स्थापित यह कुटिया आज संत श्री आसारामजी आश्रम के नाम से एक महान पवित्र धाम बन चुकी है इस ज्ञान की प्याऊ में आज लाखों की संख्या में आकर हर जातिधर्म व देश के लोग ध्यान और सत्संग का अमृत पीते है तथा अपने जीवन की दुःखद गुत्थियाँ को सुलझाकर धन्य हो जाते है |

15. आश्रम द्वारा संचालित सत्प्रवृत्तियाँ

 (क) आदिवासी विकास की दिशा में कदम :

संत श्री आसारामजी आश्रम एवं इसकी सहयोगी संस्था श्री योग वेदांत सेवा समिति द्वारा वर्षभर गुजरातमहाराष्ट्र राजस्थानमध्यप्रदेशउड़ीसा आदि प्रान्तों के आदिवासी क्षेत्रों में पहुँचकर संतश्री के सानिधय में निर्धन तथा विकास की धारा से वंचित जीवन गुजारनेवाले वनवासियों को अनाजवस्त्रकम्बलप्रसाददक्षिणा आदि वितरित किया जाता है तथा व्यवसनों एवं कुप्रथाओं से सदैव बचे रहने के लिए विभिन्न आध्यात्मिक  एवं यौगिक प्रयोग उन्हें सिखलायें जाते हैं |

(ख) व्यवसनमुक्ति की दिशा में कदम :

साधारणतया लोग सुख पाने के लिये व्यवसनों के चुँगल में फ़ँसते हैं पूज्यश्री उन्हें केवल निषेधात्मक उपदेशों के द्वारा ही नहीं अपितु शक्तिपात वर्षा के द्वारा आंतरिक निर्विषय सुख की अनुभूति करने में समर्थ बना देते हैतब उनके व्यसन स्वतः ही छूट जाते हैं |

सत्संग-कथा में भरी सभा में विषैले व्यवसनों के दुर्गुणों का वर्णन कर तथा उनसे होनेवाले नुकसानों पर प्रकाश डालकर पूज्यश्री लोगों को सावधान करते हैं समाज में नशे से सावधान नामक पुस्तिका के वितरण तथा अनेक अवसरों पर चित्र-प्रदर्शनियों के माधयम से जनमानस में व्यवसनों से शरीर पर होनेवाले दुष्प्रभाओं का प्रचार कर विशाल रूप से व्यवसनमुक्ति अभियान संचालित किया जा रहा है युवाओं में व्यवसनों के बढ़ते प्रचलन को रोकने की दिशा में संत श्री आसारामजी महाराजस्वयं उनके पुत्र भी नारायण स्वामी तथा बापूजी के हजारों शिष्य सतत प्रयत्नशील होकर विभिन्न उपचारों एवं उपायों से अब तक असंख्य लोगों को लाभान्वित कर चुके हैं |

(ग) संस्कृति के प्रचार की दिशा में कदम :

भारतीय संस्कृति को विश्वव्यापी बनाने के लिये संतश्री केवल भारत के ही गाँव-गाँव और शहर-शहर ही नहीं घुमते हैं अपितु विदेशों में भी पहुँचकर भारत के सनातनी ज्ञान की संगमित अपनी अनुभव-सम्पन्न योगवाणी से वहाँ के निवासियों में एक नई शांतिआनंद व प्रसन्नता का संचार करते हैं इतना ही नहींविभिन्न आश्रम एवं समितियों के साधकगण भी आडियो-विडियो कैसेटों के माधयम से सत्संग व संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते रहते हैं |

(घ) कुप्रथा-उन्मूलन कार्यक्रम :

विशेषकर समाज के पिछड़े वर्गों में व्याप्त कुप्रथाओं तथा अज्ञानता के कारण धर्म के नाम पर तथा भूत-प्रेतबाधा आदि का भय दिखाकर उनकी सम्पत्ति का शोषण व चरित्र का हनन अधिकांश स्थानों पर हो रहा है संतश्री के आश्रम के साधकों द्वारा तथा श्री योग वेदांत सेवा समिति के सक्रिय सदस्यों द्वारा समय-समय पर सामूहिक रूप से ऐसे शोषणकारी षड़यंत्रों से बचे रहने का तथा कुप्रथाओं के त्याग का आह्मान किया जाता हैं |

(च) असहाय-निर्धन-रोगी-सहायता अभियान :

विभिन्न प्रांतों में निराश्रितनिर्धन तथा बेसहारा किस्म के रोगियों को आश्रम तथा समितियों द्वारा चिकित्सालयों में निःशुल्क दवाईभोजनफ़ल आदि वितरित किए जाते हैं |

(छ) प्राकृतिक प्रकोप में सहायता

भूकम्प होप्लेग हो अथवा अन्य किसी प्रकार की महामारीआश्रम से साधकगण प्रभावित क्षेत्रों में पहुँचकर पीड़ितों को तन-मन-धन से आवश्यक सहायता-सामग्री वितरित करते हैं ऐसे क्षेत्रों में आश्रम द्वारा अनाजवस्त्रऔषधि एवं फ़ल-वितरण हेतु शिविर भी आयोजित किया जाता हैं प्रभावित क्षेत्रों में वातावरण की शुद्वता के लिए धूप भी किया जाता हैं |

(झ) सत्साहित्य एवं मासिक पत्रिका प्रकाशन :

संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा भारत की विभिन्न भाषाओं एवं अंग्रेजी में मिलाकर अब तक 180 पुस्तकों का प्रकाशन कार्य पूर्ण हो चुका हैं यही नहींहिन्दी एवं गुजराती भाषा में आश्रम से नियमित मासिक पत्रिका ॠषि प्रसाद का भी प्रकाशन होता हैजिसके लाखों - लाखों पाठक हैं देश -विदेश का वैचारिक प्रदूषण मिटाने में आश्रम का यह सस्ता साहित्य अत्यधिक सहायक सिद्व हुआ हैं इसकी सहायता से अब तक आध्यात्मिक  क्षेत्र में लाखों लोग प्रगति के पथ पर आरूढ़ हो चुके हैं |

(ट) विद्वार्थी व्यक्तित्व विकास शिविर :

आनेवाले कल के भारत की दिशाहीन बनी इस पीढ़ी को संतश्री भारतीय संस्कृति की गरिमा समझाकर जीवन के वास्तविक उद्वेश्य की ओर गतिमान करते हैंविद्वार्थी शिविरों में विद्वार्थियों को ओजस्वी-तेजस्वी बनाने तथा उनके सर्वांगीण विकास के लिए ध्यान की विविध द्वारा विद्वार्थियों की सुषुप्त शक्तियों को जागृत कर समाज में व्याप्त व्यवसनों एवं बुराइयों से छूटने के सरल प्रयोग भी विद्वार्थी शिविरों में कराये जाते हैं इसके अतिरिक्त विद्वार्थियों में स्मरणशक्ति तथा एकाग्रता के विकास हेतु विशेष प्रयोग करवाये जाते हैं |

(ठ) ध्यान योग शिविर :

वर्ष भर में विविध पर्वों पर वेदान्त शक्तिपात साधना एवं ध्यान योग शिविरों का आयोजन किया जाता हैजिसमें भारत के चारों ओर से ही नहींविदेशों से भी अनेक वैज्ञानिकडॉक्टरइन्जीनियर आदि भाग लेने उमड़ पड़ते हैं आश्रम के सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू का सान्निध्य पाकर हजारों साधक भाई-बहन अपने व्यावहारिक जगत को भूलकर ईश्वरीय आनन्द में तल्लीन हो जाते हैं बड़े-बड़े तपस्वियों के लिए भी जो दुर्लभ एवं कष्टसाध्य हैऐसे दिव्य अनुभव पूज्य बापू के शक्तिपात द्वारा प्राप्त होने लगते हैं |

(ड) निःशुल्क छाछ वितरण :

भारत भर की विभिन्न समितियाँ निःशुल्क छाछ वितरण केन्द्रों का भी नियमित संचालन करती हैं तथा ग्रीष्म ॠतु में अनेक स्थानों पर शीतल जल की प्याऊ भी संचालित की जाती है |

(ढ) गौशाला संचालन :

विभिन्न आश्रमों में ईश्वरीय मार्ग में कदम रखनेवाले साधकों की सेवा में दूधदहीछाछमक्खनघी आदि देकर गौमाताएँ भी आश्रम की गौशाला में रहकर अपने भवबंधन काटती हुई उत्क्रांति की परम्परामें शीघ्र गति से उन्नत होकर अपन जीवन धन्य बना रही हैं आश्रम के साधक इन गौमाताओं की मातृवत् देखभाल एवं चाकरी करते हैं |

(त) आयुर्वेदिक औषधालय व औषध निर्माण :

संतश्री के आश्रम में चलने वाले आयुर्वेदिक औषधियों से अब तक लाखों लोग लाभान्वित हो चुके हैं संतश्री के मार्गदर्शन में आयुर्वेद के निष्णात वेदों द्वारा रोगियों का कुशल उपचार किया जाता हैं अनेक बार तो अमदावाद व मुंबई के प्रख्यात चिकित्सायलों में गहन चिकित्सा प्रणाली से गुजरने के बाद भी अस्वस्थता यथावत् बनी रहने के कारण रोगी को घर के लिए रवाना कर दिया जाता हैं वे ही रोगी मरणासन्न स्थिति में भी आश्रम के उपचार एवं संतश्री के आशीर्वाद से स्वस्थ व तंदुरूस्त होकर घर लौटते हैं साधकों द्वारा जड़ी-बूटियों की खोज करके सूरत आश्रम में विविध आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जाता हैं |

(थ) मौन-मंदिर :

तीव्र साधना की उत्कंठावाले साधकों को साधना के दिव्य मार्ग में गति करने में आश्रम के मौन-मंदिर अत्यधिक सहायक सिद्ध हो रहे हैं साधना के दिव्य परमाणुओं से घनीभूत इन मौन-मंदिरों में अनेक प्रकार के आध्यात्मिक  अनुभव होने लगते हैंजिज्ञासु को षटसम्पत्ति की प्राप्ति होती हैं तथा उसकी मुमुक्षा प्रबल होती हैं एक सप्ताह तक वह किसी को नहीं देख सकता तथा उसको भी कोई देख नहीं सकताभोजन आदि उसे भीतर ही उपलब्ध करा दिया जाता हैं समस्त विक्षेपों के बिना वह परमात्ममय बना रहता हैं भीतर उसे अनेक प्राचीन संतोंइष्टदेव व गुरूदेव के दर्शन एवं संकेत मिलते हैं |

(द) साधना सदन :

आश्रम के साधना सदनों में देश-विदेश से अनेक लोग अपनी इच्छानुसार सप्ताहदो सप्ताहमासदो मास अथवा चातुर्मास की साधना के लिये आते हैं तथा आश्रम के प्राकृतिक एकांतिक वातावरण का लाभ लेकर ईश्वरीय मस्ती व एकाग्रता से परमात्मस्वरूप का ध्यान - भजन करते हैं |

(घ) सत्संग समारोह :

आज के अशांत युग में ईश्वर का नामउनका सुमिरनभजनकीर्तन व सत्संग ही तो एकमात्र ऐसा साधन है जो मानवता को जिन्दा रखे बैठा है और यदि आत्मा-परमात्मा को  छूकर आती हुई वाणी में सत्संग मिले तो सोने पे सुहागा ही मानना चाहिये श्री योग वेदांत सेवा समिति की शाखाएँ अपने-अपने क्षेत्रों में संतश्री के सुप्रवचनों का आयोजन कर लाखों की संख्या में आने वाले श्रोताओं को आत्मरस का पान करवाती हैं |

श्री योग वेदांत सेवा समितियों के द्वारा आयोजित संत श्री आसारामजी बापू के दिव्य सत्संग समारोह में अक्सर यह विशेषता देखने को मिलती है कि इतनी विशाल जन-सभा में ढ़ाई-ढ़ाई लाख श्रोता भी शांत व धीर-गंभीर होकर आपश्री के वचनामृतों का रसपान करते है तथा मंडप कितना भी विशाल भी क्यों नहीं बनाया गया होवह भक्तों की भीड़ के आगे छोटा पड़ ही जाता हैं |

(न) नारी उत्थान कार्यक्रम

राष्ट्र को उन्नति के परमोच्च शिखर तक पहुँचाने के लिए सर्वप्रथम नारी-शक्ति का जागृत होना आवश्यक हैं…’ यह सोचकर इन दीर्घदृष्टा मनीषी ने साबरमती के तट पर ही अपने आश्रम से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर नारी उत्थान केन्द्र के रूप में महिला आश्रम की स्थापना की |

महिला आश्रम में भारत के विभिन्न प्रांतों से एवं विदेशों से आयी हुई अनेक सन्नारियाँ सौहार्द्रपूर्वक जीवनयापन करती हुई आध्यात्मिक  पद पर अग्रसर हो रही हैं|

साधना काल के दौरान विवाह के तुरंत ही बाद संतश्री आसारामजी महाराज अपने अंतिम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार की सिद्दी के लिए गृहस्थी का मोहक जामा उतारकर अपने सदगुरूदेव के सान्निध्य में चले गये थे |

आपश्री की दी हुई आज्ञा एवं मार्गदर्शन के अनुरूप सर्वगुणसम्पन्न पतिव्रता श्रीश्री माँ लक्ष्मीदेवी ने अपने स्वामी की अनुपस्थिति में तपोनिष्ठ साधनामय जीवन बिताया सांसारिक सुखों की आक्षांका छोड़कर अपने पतिदेव के आदर्शों पर चलते हुए आपने आध्यात्मिक  साधना के रहस्यमय गहन मार्ग में पदापर्ण किया तथा साधना काल के दौरान जीवन को सेवा के द्वारा घिसकर चंदन की भांति सुवासित बनाया |

सौम्यशांतगंभीर वदनवाली पूजनीया माताजी महिला आश्रम में रहकर साधना मार्ग में साधिकाओं का उचित मार्गदर्शन करती हुई अपने पतिदेव के दैवी कार्यों में सहभागी बन रही हैं |

जहाँ एक ओर संसार की अन्य नारियाँ फ़ैशनपरस्ती एवं पश्चिम की तर्ज पर विषय-विकारों में अपना जीवन व्यर्थ गवाँ रही हैंवहीं दूसरी ओर इस आश्रम की युवतियाँ संसार के समक्ष आकर्षणों को त्यागकर पूज्य माताजी की स्नेहमयी छत्रछाया में उनसे अनुष्ठान एवं आनंदित जीवनयापन कर रही हैं |

नारी के सम्पूर्ण शारीरिकमानसिकबौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिये महिला आश्रम में आसनप्राणायामजपध्यानकीर्तनस्वाध्याय के साथ-साथ विभिन्न पर्वोंउत्सवों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता हैजिसका संचालन संतश्री की सुपुत्री वंदनीया भारतीदेवी करती हैं |

ग्रीष्मावकाश में देशभर से सैकड़ों महिलाएँ एवं युवतियाँ महिला आश्रम में आती हैंजहाँ उन्हें पूजनीया माताजी एवं वंदनीया भारतीदेवी द्वारा भावीजीवन को सँवारनेपढ़ाई में सफ़लता प्राप्त करने तथा जीवन में प्रेमशांतिसद् भावपरोपकारिता के गुणों की वृद्धि के संबंध में मार्गदर्शन प्रदान किया जाता हैं |

गृहस्थी में रहनेवाली महिलाएँ भी अपनी पीड़ाओं एवं गृहस्थ की जटिल समस्याओं के संबंध में पुजनीया माताजी से मार्गदर्शन प्राप्त कर स्वयं के तथा परिवार के जीवन को सँवारती हैं वे अनेक बार यहाँ आती तो हैं रोती हुई और उदासलेकिन जब यहाँ से लौटती हैं तो उनके मुखमंडल पर असीम शांति और अपार हर्ष की लहर छायी रहती हैं |

महिला आश्रम में निवास करनेवाली साध्वी बहनें भारत के विभिन्न शहरों एवं ग्रामों में जाकर संत श्री आसारामजी बापू द्वारा प्रदत्त ज्ञान एवं भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों एवं पावन संदेशों का प्रचार-प्रसार करती हुई भोली-भाली ग्रामीण नारियों में शिक्षाव्यवसनमुक्तिस्वास्थ्यबच्चों के उचित पोषण करनेगृहस्थी के सफ़ल संचालन करने तथानारीधर्म निबाहने की युक्तियाँ भी बताती हैं |

नारी उत्थान केन्द्र की अनुभवी साधवी बहनों द्वारा विद्यालयों में घूम-घूमकर स्मरणशक्ति के विकास एवं एकाग्रता के लिए प्राणायामयोगासनध्यान आदि की शिक्षा दी जाती हैं इन बहनों द्वारा विद्यार्थी जीवन में संयम के महत्व तथा व्यवसनमुक्ति से लाभ के विषय पर भी प्रकाश डाला जाता है |

संत श्री के मार्गदर्शन में महिला आश्रम द्वारा धन्वन्तरि आरोग्य केन्द्र के नाम से एक आयुर्वेदिक औषधालय भी संचालित किया जाता हैजिसमें साध्वी वैद्दों द्वारा रोगियों का निःशुल्क उपचार किया जाता है अनेक दीर्घकालीन एवं असाधय रोग यहाँ के कुछ दिनों के साधारण उपचारमात्र से ही ठीक हो जाते है जिन रोगियों को एलोपैथी में एकमात्र आपरेशन ही उपचार के रूप में बतलाया गया थाऐसे रोगी भी आश्रम की बहनों द्वारा किये गये आयुर्वेदिक उपचार से बिना आपरेशन के ही स्वस्थ हो गये |

इसके अतिरिक्त महिला आश्रम में संतकृपा चूर्णआँवला चूर्ण अवं रोगाणुनाशक धूप का निर्माण भी बहनें अपने ही हाथों से करती हैं सत्साहित्य प्रकाशन के लिये संतश्री की अमृतवाणी का लिपिबद्व संकलनपर्यावरण संतुलन के लिये वृक्षारोपण एवं कृषिकार्य तथा गौशाला का संचालन आश्रम की साध्वी बहनों द्वारा ही किया जाता है |

नारी किस प्रकार से अपनी आन्तरिक शक्तियों को जगाकर नारायणीं बन सकती है तथा अपनी संतानों एवं परिवार में सुसंस्कारों का चिंतन कर भारत का भविष्य उज्ज्वल कर सकती हैइसकी सुसंसकारों का चिंतन कर भारत का भविष्य उज्जवल कर सकती हैइसकी ॠषि-महर्षि प्रणीत प्राचीन प्रणाली को अमदावाद महिला आश्रम की साधवी बहनों द्वारा बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय समाज में प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है |

महिलाओं को एकांत साधना के लिये नारी उत्थान आश्रम में मौन-मंदिर व साधना सदन आदि भी उपलब्ध कराये जाते हैं इनमें अब तक देश-विदेश की हजारों बहनें साधना कर ईश्वरीय आनन्द और आन्तरिक शक्ति जागरण की दिव्यानुभूति प्राप्त कर चुकी हैं |

(प) विद्यार्थियों के लिये सस्ती नोटबुक (उत्तरपुस्तिका)

संत श्री आसारामजी आश्रमसाबरमतीअहमदाबाद से प्रतिवर्ष स्कूलों एवं कालेजों के विद्यार्थियों के लिये प्रेरणादायी उत्तरपुस्तिकाओं (Note Books) का निर्माण किया जाता है |

इन उत्तरपुस्तिकाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसके प्रत्येक पेज पर संतोंमहापुरुषों की तथा गाँधी व लालबहादुर जैसे ईमानदार नेताओं की पुरूषार्थ की ओर प्रेरित करनेवालि जीवनोद्वारक वाणी अंतिम पंक्ति में अंकित रहती है इनकी दूसरी विशेषता यह है कि ये बाजार भाव से बहुत सस्ती होती ही हैंसाथ ही गुणवत्ता की दृष्टि से उत्कृष्टसुसज्ज एवं चित्ताकर्षक होती हैं |

विद्यार्थी जीवन में दिव्यता प्रकटाने में समर्थ संत श्री आसारामजी बापू के तेजस्वी संदेशों से सुसज्ज मुख्य पृष्ठोंवाली ये उत्तरपुस्तिकाएँ निर्धन बच्चों में यथास्थिति देखकर निःशुल्क अथवा आधे मूल्य पर अथवा आधे मूल्य पर अथवा रियायती दरों पर वितरित की जाती हैंताकि निर्धनता के कारण भारत का भविष्यरूपी कोई बालक अशिक्षित न रह जाय |

ये उत्तरपुस्तिकाएँ बाजार भाव से 15-20 रूपये प्रतिदर्जन सस्ती होती हैं इसलिये भारत के चारों कोनों में स्थापित श्री योग वेदांत सेवा समितियों द्वारा प्रतिवर्ष समाज में हजारों नहींअपितु लाखों की संख्या में इन नोटबुकों का प्रचार-प्रसार किया जाता है |

16 भाषा ज्ञान :

यद्यपि संत श्री आसारामजी महाराज की लौकिक शिक्षा केवल तीसरी कक्षा तक ही हुई हैलेकिन आत्मविद्यायोगविद्या व ब्रह्मविद्या के धनी आपश्री को भारत की अनेक भाषाओंयथा- हिन्दीगुजरातीपंजाबीसिंधीमराठीभोजपुरीअवधीराजस्थानी आदि का ज्ञान है इसके अतिरिक्त अन्य अनेक भारतीय भाषाओं का ज्ञान भी आपश्री के पास संचित है |

17 सादगी :

संतश्री के जीवन में सादगी एवं स्वच्छता कूट-कूटकर भरी हुई है आप सादा जीवन जीना अत्यधिक उत्कृष्ट समझते हैं व्यर्थ के दिखावे में आप कतई विश्वास नहीं करते आपका सुत्र है : जीवन में तीन बातें अत्यधिक जरूरी हैं : (1) स्वस्थ जीवन (2) सुखी जीवनऔर (3) सम्मानित जीवन |” स्वस्थ जीवन ही सुखी जीवन बनता है तथा सत्कर्मों का अवलंबन लेने से जीवन सम्मानित बनता है |

18. सर्वधर्मसमभाव :

आप सभी धर्मों का समान आदर करते हैं आपकी मान्यता है कि सारे धर्मों का उदगम भारतीय संस्कृति के पावन सिद्वांतों से ही हुआ है आप कहते हैं :

 ारे धर्म उस एक परमात्मा की सत्ता से उत्पन्न हुए हैं और सारे-के-सारे उसी एक परमात्मा में समा जाएँगे लेकिन जो सृष्टि के आरंभ में भी थाअभी भी है और जो सृष्टि के अंत में भी रहेगावही तुम्हारा आत्मा ही सच्चा धर्म है उसे ही जान लोबस तुम्हारी सारी साधनापूजाइबादत और प्रेयर (प्रार्थना) पूरी हो जायेगी |”

19. परमश्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ :

आपश्री को वेदवेदान्तगीतारामायणभागवतयोगवाशिष्ठ-महारामायणयोगशास्त्रमहाभारतस्मृतियाँपुराणआयुर्वेद आदि अन्यान्य धर्मग्रन्थों का मात्र अध्ययन ही नहींआप इनके ज्ञाता होने के साथ अनुभवनिष्ठ आत्मवेत्ता संत भी हैं |

20. वर्षभर क्रियाशील :

आपके दिल में मानवमात्र के लिये करूणादया व प्रेम भरा है जब भी कोई दिन-हीन आपश्री को अपने दुःख-दर्द की करूणा-गाथा सुनाता हैआप तत्क्षण ही उसका समाधान बता देते हैं भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों का स्थायित्व समाज में सदैव बन ही रहेइस हेतु आप सतत क्रियाशील बने रहते हैं भारत के प्रांत-प्रांत और गाँव-गाँव में भारतीय संस्कृति का अनमोल खजाना बाँटने के लिये आप सदैव घूमा ही करते हैं समाज के दिशाहीन युवाओं कोपथभृष्ट विद्यार्थियों को एवं लक्ष्यविहीन मानव समुदाय को सन्मार्ग पर प्रेरित करने के लिए अनेक कष्टों व विध्नों का सामना करते हुए भी आप सतत प्रयत्नशील रहते हैं आप चाहते है कि कैसे भी करकेमेरे देश का नौजवान सत्यमार्ग का अनुसरण करते हुए अपनी सुषुप्त शक्तियों को जागृत कर महानता के सर्वोत्कृष्ट शिखर पर आसीन हो जाय |

21. विदेशगमन :

सर्वप्रथम आप सन् 1984 में भारतीय योग एवं वेदान्त के प्रचारार्थ 28 मई से शिकागोसेन्टलुईसलास एंजिल्सकोलिन्सविलेसैन्फ़्रान्सिस्कोकनाड़ाटोरेन्टो आदि विदेशी शहरों में पदार्पण किये |

सन् 1987 में सितम्बर - अक्तूबर माह के दरम्यान आपश्री भारतीय भक्ति-ज्ञान की सरिता प्रवाहित करने इंग्लैण्ड़पश्चिमी जर्मनीस्विटजरलैंण्डअमेरिका व कनाड़ा के प्रवास पर पधारे 19 अक्तूबर1987 को शिकागो में आपने एक विशाल धर्मसभा को सम्बोधित किया |

सन् 1991 में 8 से 10 अक्तूबर तक आपश्री ने मुस्लिम राष्ट्र दुबई में28 से 31 अक्तुबर तक हाँगकाँग में तथा 1 से 3 नवम्बर तक सिंगापुर में भक्ति-ज्ञान की गंगा प्रवाहित की |

आपश्री सन् 1993 में 19 जुलाई से 4 अगस्त तक हांगकांगताईवानबैंकागसिंगापुरइंडोनेशिया (मुस्लिम राष्ट्र) में सत्संग-प्रवचन किये तत्पश्चात् आप स्वदेश लौटे लेकिन मानवमात्र के हितैषी इन महापुरूषों को चैन कहाँ अतः वेदान्त शक्तिपात साधना शिविर के माध्यम से मानव मन में सोई हुई आध्यात्मिक  शक्तियों को जागृत करने आप 12 अगस्त1993 को पुनः न्यूजर्सीन्यूयार्कबोस्टनआल्बनीक्लिफ़्टनजोलियटलिटिलफ़ोक्स आदि स्थानों के लिये रवाना हुए इसी दौरान आपश्री ने शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में भाग लेकर भारत देश को गौरान्वित किया तत्पश्चात् कनाड़ा के टोरेन्टों व मिसीसोगा तथा ब्रिटेन के लंदन व लिस्टर में अधयात्म की पताका लहराते हुए आप भारत लौटे |

सन् 1995 में पुनः 21 से 23 जुलाई तक अमेरिका के न्यूजर्सी में28 से 31 जुलाई तक कनाड़ा के टोरेन्टो में5 से 8 अगस्त तक शिकागो में तथा 12 से 14 अगस्त तक ब्रिटेन के लंदन में आपश्री के दिव्य सत्संग समारोह आयोजित हुए |

22. शिष्यों की संख्या :

भारत सहित विश्व के अन्य देशों में आपश्री के शिष्यों की संख्या सन् 1995 में 15 लाख थी और अब तो सच्ची संख्या प्राप्त करना संभव ही नहीं है विभिन्न धर्मोंसम्प्रदायोंमजहबों के लोग जाति-धर्म का भेदभाव भूलकर आपश्री के मार्गदर्शन में ही जीवनयापन करते हैं आपके श्रोताओं की संख्या तो करोड़ों में है वे आज भी अत्यधिक एकाग्रता के साथ आपश्री के सुप्रवचनों का आडियो-विडियो कैसेटों के माधयम से रसपान करते हैं |

यह अत्यधिक आश्चर्य का विषय है कि आत्मविद्या के धनी संत श्री आसारामजी बापू के आज करोड़ों-करोड़ों ग्रेजुएट शिष्य हैं अनेक शिष्य तो पीएच.डी. डाक्टरइंजीनियरवकीलप्राधयापकराजनेता एवं उद्योगपति हैं |

अध्यात्म में भी आप सभी मार्गों भक्तियोगज्ञानयोगनिष्काम कर्मयोग एवं कुंडलिनी योग का समन्वय करके अपने विभिन्न स्तर के जिज्ञासु - शिष्यों के लिए सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं आश्रम में रहकर सत्संग-प्रवचन के बाद आपश्री घंटों तक व्यासपीठ पर ही विराजमान रहकर समाज के विभिन्न वर्गों के दीन-दुखियों एवं रोगियों की पीड़ाएँ सुनकर उन्हें विभिन्न समस्याओं से मुक्त होने की युक्तियाँ बताते हैं आश्रम के शिविर के दौरान तीन कालखंडों में दो-दो घंटे के सत्संग - प्रवचन होते हैंलेकिन उसके बाद दिन-दुखियों की सुबह-शाम तीन-तीन घंटे तक कतारे चलती हैंजिसमें आपश्री उन्हें विभिन्न समस्याओं का समाधान बताते हैं |

23सिंहस्थ (कुम्भ) उज्जैन व अर्धकुम्भ इलाहाबाद :

सन् 1992 में उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ (कुम्भ) में आपश्री का सत्संग सतत एक माह तक चला दिनांक : 17 अप्रैल से 16 मई1992 तक चले इस विशाल कुम्भ मेले में संत श्री आसारामजी नगर की विशालताभव्यतासाज-सज्जा एवं कुशलता तथा समुचित-सुन्दर व्यवस्था ने देश-विदेश से आये हुए करोड़ों लोगों को प्रभावित एवं आकर्षित किया |

आपकी अनुभव-सम्पन्न वाणी जिसके भी कानों से टकराईबस उसे यही अनुभव हुआ कि जीवन को वास्तविक दिशा प्रदान करने में आपके सुप्रवचनों में भरपूर सामर्थ्य है यही कारण है कि सतत एक माह तक प्रतिदिन दो-ढाई लाख से भी अधिक बुद्विजीवी श्रोताओं से आपकी धर्मसभा भरी रहती थी और सबसे महान आश्चर्य तो यह होता कि इतनी विशाल धर्मसभा में कहीं भी किसी श्रोता की आवाज या शोरगुल नहीं सुनाई पड़ता था सबके-सब श्रोता आत्मानुशासन में बैठे रहते थे यह विशेषता आपके सत्संग में आज भी मौजूद है |

आपश्री के सत्संग राष्ट्रीय विचारधारा के होते हैंजिनमें साम्प्रदायिक विद्वेष की तनिक भी बू नहीं आती आपश्री की वाणी किसी धर्मविशेष के श्रोता के लिए नहीं अपितु मानवमात्र के लिये कल्याणकारी होती है यही कारण है कि इलाहाबाद के अर्धकुम्भ मेले के अंतिम दिनों में आपके सत्संग - प्रवचन कार्यक्रम आयोजित होने पर भी काफ़ी समय पूर्व से आई हुई भारत की श्रद्वालु जनता आपश्री के आगमन की प्रतीक्षा करती रही दिनांक : 1 से 4 फ़रवरी1995 तक आपका प्रयाग (इलाहाबाद) के अर्धकुम्भ में सिंहस्थ उज्जैन के समान ही विराट सत्संग समारोह आयोजित हुआ|

24राष्ट्रीय व  अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया पर प्रसारण :

ऐसे तो भारत के कई शहरों एवं कस्बों में आपश्री के यूमैटिकबिटाकेम व यू.एच.एसकैसेटों के माधयम से निजी चैनलों पर लोग घर बैठे ही सत्संग का लाभ लेते हैं लेकिन पर्वोंउत्सवों आदि के अवसर पर भी आपश्री के कल्याणकारी सुप्रवचन आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्न स्टेशनों तथा राष्ट्रीय प्रसारण केन्द्रों से भी प्रसारित किये जाते हैं |

विदेश प्रवास के दौरान वहाँ के लोगों को भी आपश्री के सुप्रवचनों का लाभ प्रदान करने की दृष्टि से आपके वहाँ पहुँचते ही विदेशी मीडिया को उसका लाभ दिया जाता है कनाड़ा के एक रेडियो स्टेशन ज्ञानधारा पर तो आज भी भजनावली में आपश्री के सत्संग विशेष रूप से प्रसारित किये जाते हैं |

विश्वधर्म संसद में भी आपश्री की विद्वता से पप्रभावित होकर शिकागो दूरदर्शन ने आपके इन्टरव्यू को प्रसारित किया थाजिसे विदेशों में लाखों दर्शकों ने सराहा था एवं पुनःप्रसारण की माँग भी की थी |

आपश्री के सुप्रवचनों की अन्तर्राष्ट्रीय लोकप्रियता को देखते हुए जी टी.वीने भी माह अक्तुबर1994 से अपने रविवारीय साप्ताहिक सीरियल जागरण के माधयम से अनेकों सफ़्ताह के लिए आपके सत्संग-प्रवचनों का अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण आरंभ किया इसके नियमित प्रसारण की माँग को लेकर जी टी.वी. कार्यालय में भारत सहित विदेशों से हजारों - हजारों पत्र आये थे दर्शकों की माँग पर जी टी.वी. ने इस कार्यक्रम का दैनिक प्रसारण ही आरम्भ कर दिया . टी. एन.सोनीयस आदि चैनल भी पूज्य बापुश्री के सुप्रवचनों का अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण करते रहते हैं |

भारतीय दूरदर्शन के राष्ट्रीय प्रसारण केन्द्र एवं क्षेत्रीय स्टेशनों से आपके सुप्रवचनों का तो अनेकानेक बार प्रसारण हो चुका है आपके जीवन तथा आश्रम द्वारा संचालित सत्प्रवृत्तियों पर दिल्ली दूरदर्शन द्वारा निर्मित किये गये वृत्तचित्र कल्पवृक्ष का राष्ट्रीय प्रसारण दिनांक 9 मार्च1995 को प्रातः 8:40 से 9:12 बजे तक किया गयाजिसके पुनः प्रसारण की माँग को लेकर दूरदर्शन के पास हजारों पत्र आये फ़लस्वरूप दिनांक : 25 सितम्बर1995 को दूरदर्शन ने पुनः इसका राष्ट्रीय प्रसारण किया |

इसके अतिरिक्त संत श्री आसारामजी महाराज के सत्संग - प्रवचन जिस क्षेत्र में आयोजित होते हैंवहाँ के सभी अखबार आपके सत्संग-प्रवचनों के सुवाक्यों से भरे होते हैं |

25. विश्वधर्मसंसदशिकागो में प्रवचन :

माह सितम्बर1993 के प्रथम सफ़्ताह में विश्व धर्मसंसद का आयोजन किया गया था जिसमें सम्पूर्ण विश्व से 300 से अधिक वक्ता आमंत्रित थेभारत से आपश्री को भी वहाँ मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था आपके सुप्रवचन वहाँ दिनांक : 1 से 4 सितम्बर1993 के दौरान हुए यह आश्चर्य का विषय है कि पहले दिन आपको बोलने के लिए केवल 35 मिनट का समय मिलालेकिन 55 मिनट तक आपश्री को सभी मंत्रमुग्ध होकर श्रवण करते रहे अंतिम दिन आपको सवा घंटे का समय मिलालेकिन सतत एक घंटा 55 मिनट तक आपश्री के सुप्रवचन चलते रहे विश्वधर्म संसद में आपही एकमात्र ऐसे भारतीय वक्ता थेजिन्हें तीन बार जनता को सम्बोधित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ |

संपूर्ण विश्व से आये हुए विशाल एवं प्रबुद्व श्रोताओं की सभा को सम्बोधित करते हुए आपश्री ने कहा :

 हम किसी भी देश मेंकिसी भी देश मेंकिसी भी जाति में रहते होंकुछ भी कर्म करते होंलेकिन सर्वप्रथम मानवाधिकारों की रक्षा होनी चाहिये पहले मानवीय अधिकार होते हैंबाद में मजहबी अधिकार लेकिन आज हम मजहबी अधिकारों मेंसंकीर्णता में एक-दूसरे से भिड़कर अपना वास्तविक अधिकार भूलते जा रहे हैं |

जो व्यक्तिजातिसमाज और देश ईश्वरीय नियमों के अनुसार चलता हैउसकी उन्नति होती है तथा जो संकीर्णता से चलता हैउसका पतन होता है यह ईश्वरीय सृष्टि का नियम है |

आज का आदमी एक-दूसरे का गला दबाकर सुखी रहना चाहता है एक गाँव दूसरे गाँव को और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को दबाकर खुद सुखी होना चाहता हैलेकिन यह सुख का साधन नहीं हैएक दूसरे की मदद व भलाई करना सुख चाहते हो तो पहले सुख देना सीखो हम जो कुछ करते हैघूम-फ़िरकर वह हमारे पास आता है इसलिये विज्ञान के साथ-साथ मानवज्ञान की भी जरूरत है आज का विज्ञान संसार को सुंदर बनाने की बजाय भयानक बना रहा है क्योंकि विज्ञान के साथ वेदान्त का ज्ञान लुप्त हुआ जा रहा हैं |

आपश्री ने आह्मवान किया : हम चाहे U.S.A. के हों, U.K. के होंभारत के होंपाकिस्तान के हों या अन्य किसी भी देश केआज विश्व को सबसे बड़ी आवश्यकता है कि वह पथभ्रष्ट और विनष्ट होती हुई युवा पीढ़ी को यौगिक प्रयोग के माधयम से बचा ले क्योंकि नई पीढ़ी का पतन होना प्रत्येक राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है आज सभी जातियोंमजहबों एवं देशों को आपसी तनावों तथा संकीर्ण मानसिकताओं को छोड़कर तरूणों की भलाई में ही सोचना चाहिये विश्व को आज आवश्यकता है कि वह योग और वेदान्त की शरण जाये |

आपश्री ने आह्मवान किया : इस युग के समस्त वक्ताओं सेचाहे वे राजनीति के क्षेत्र के हों या धर्म के क्षेत्र केमेरी विनम्र प्रार्थना है कि व समाज में विद्रोह पैदा करनेवाला भाषण न करें अपितु प्रेम बढ़ानेवाला भाषण देने का प्रयास करें मानवता को विद्रोह की जरूरत नहीं है अपितु परस्पर प्रेम व निकटता की जरूरत है  किसी भारतवासी के किसी कृत्य पर भारत के धर्म की निन्दा करके मानव जाति को सत्य से दूर करने की कोशिश न करें- यह मेरी सबसे प्रार्थना है |”

बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट के साथ आपश्री के सुप्रवचनों का जोरदार स्वागत होता था विश्वधर्म संसद में ही भाग लेने आये एक अफ़्रीकी धर्मगुरू तो आपश्री की यौगिक शक्तियों से इतने प्रभावित हुए कि वे बार-बार चरण चूमने लगे तथा दीक्षा-प्राप्ति की माँग करने लगे |

26प्रवचनों की संख्या :

अब तक देश-विदेश में आपश्री के हजारों प्रवचन आयोजित हो चुके हैंजिनमें 10800 घंटों के आपश्री के सुप्रवचन आश्रम में आडियो कैसेट में रिकार्ड किये हुए रेकार्ड रूम में संग्रहित हैं आपश्री के पावन सान्निध्य में आध्यात्मिक शक्तियों के जागरण के लिए आयोजित होनेवाले शिविरों में सर्वप्रथम शिविर में मात्र 163 शिविरार्थियों ने भाग लिया थाजबकि आज के एक-एक शिविर में 20-25 हजार शिविरार्थी लाभ ले रहे हैं यह पूबापू की शक्तिपात-वर्षा के लाभ का चमत्कार है |

27. आदिवासी उत्थान कार्यक्रम :

संत श्री आसारामजी बापू केवल प्रवचनों अथवा वेदान्त शक्तिपात साधना शिविरों तक ही सीमित नहीं रहते हैं अपितु समाज के सबसे पिछड़े वर्ग में आनेवालेसमाज से कोसो दूर वनों और पर्वतों में बसे आदिवासियों के नैतिकआध्यात्मिकबौद्विकसामाजिक एवं शारीरिक विकास के लिए भी सदैव प्रयत्नशील रहते हैं पर्वतीयवन्य अथवा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जाकर संतश्री स्वयं उनके बीच कपड़ाअनाजकम्बलछाछभोजनव दक्षिणा का वितरण करते-कराते हैं अब तक आप भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासियों के उत्थान हेतु अनेक कार्यक्रम व गतिविधियाँ संचालित कर चुके हैं जैसेगुजरात में धरमपुरकोटड़ानानारांधाभैरवी आदिराजस्थान में सागवाड़ाप्रतापगढ़कुशलगढ़नाणाभीमाणासेमलिया आदिमध्यप्रदेश में नावलीखापरजावदाप्रकाशा आदि व उड़ीसा में भद्रक आदि |

उपरोक्त वर्णित स्थानों पर अनेक बार संतश्री के पावन सान्निध्य में आदिवासियों के उत्थान के लिये भंडारा एवं सत्संग - प्रवचन समारोह आयोजित हो चुके हैं |

28. एकता व अखंडता के प्रबल समर्थक :

आप भारत की राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के प्रबल समर्थक हैं यही कारण है कि एक हिन्दू संत होने के बावजूद भी हजारों मुस्लिमईसाईपारसीसिखजैन व अन्यान्य धर्मों के अनुयायी आपश्री के शिष्य कहलाने में गर्व महसूस करते हैं आपश्री की वाणी में साम्प्रदायिक संकीर्णता क विद्वेष लेशमात्र भी नहीं है आपकी मान्यता है :

संसार के जितने भी मजहबमत-पंथजात-नात आदि हैंवे उसी एक चैतन्य परमात्मा की सत्ता से स्फ़ुरित हुए हैं और सारे-के-सारे एक दिन उसी में समा जाएँगे फ़िर अज्ञानियों की तरह भारत को धर्मजातिभाषा व सम्प्रदाय के नाम पर क्यों विखंडित किया जा रहा है ? निर्दोष लोगों के लहू से भारत की पवित्र धरा को रंजित करनेवाले लोगों को तथा अपने तुच्छ स्वार्थों की खातिर देश की जनता में विद्रोह फ़ैलानेवालों को ऐसा सबक सिखाना चाहिये कि भविष्य में कोई भी व्यक्ति या जाति भारत के साथ गद्दारी करने की बात सोच भी न सके |”

आप ही की तरह आपका विशाल शिष्य-समुदाय भी भारत की राष्ट्रीय एकताअखंडता व शांति का समर्थक होकर अपने राष्ट्र के प्रति पूर्णरूपेन समर्पित है |

आपश्री के सुप्रवचनों से सुसज्ज पुस्तक महक मुसाफ़िर को भोपाल का एक मौलवी (मुसलमान धर्मगुरू) पढ़कर इतना प्रभावित हुआ कि उसने स्वयं इस पुस्तक का उर्दू में अनुवाद किया तथा मुस्लिम समाज के लिए प्रकाशित करवाया |

 

*
भारत एवं विदेशों में पूज्यश्री के प्रमुख आश्रम

 

परम पूज्य संत श्री आसारामजी के पावन सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में अब तक सम्पूर्ण भारत एवं विदेशों में ज्ञानवाटिका के रूप में 200 से अधिक आश्रमों की स्थापना हो चुकी हैजिनमें से प्रमुख आश्रमों की स्थापना हो चुकी हैजिनमें से प्रमुख आश्रम निम्नानुसार है :

 

·          ग़ुजरात : अमदावादसूरतहिम्मतनगरभावनगरराजकोटलुणावालावड़ोदरावापीभेटासी,मोड़ासाभैरवीविसनगरडीसावलसाड़सरसवा (पूर्व)गोधराविरमगामबायड़कलोलरापरचकलासीजुनागढ़मेहसाणाथरादलिम्बडी (सुरेन्द्र नगर)बारडोलीवल्लभीपुर ।

·          सेलवासा (दादरानगर हवेली) |

·          राजस्थान : अजमेरआमेटसागवाड़ाजोधपुरडभोक (उदयपुर)सुमेरपुरकोटासरमथुराबांराभरतपुरबाड़मेरभीलवाड़ानिवाई गौशाला |

·         मध्यप्रदेश: भोपालछिन्दवाड़ामनावरराणापुररतलामपंचेड़रायपुरइन्दौरग्वालियरउज्जैनबड़गाँवजबलपुरदेवासनीमचब्यौहारीपिपरिया |

·         महाराष्ट्र : गोरेगाँव (मुंबई)सोलापुरउल्हासनगरउल्हासनगरप्रकाशानासिकनागपुरऔरंगाबादगोंदियाधुलियाभुसावलबदलापुरदोंडाईचा |

·         उत्तर प्रदेश : हापुड़लखनऊवृंदावनआगरागाजियाबादउझानीमुजफ़्फ़रनगरवाराणासीझाँसीगोंडामेरठकानपुर |

·         हरियाणा-पंजाब : चंडीगढ़करनालपानीपतलुधियानादिड़बा मंडीजालंधरअमृतसरफ़ाजिल्कारेवाड़ीहिसारअंबालारोहतकबहादुरगढ़फ़रीदाबादहेमा माजरा (अंबाला)मांडी इसराना |

·         दिल्ली : वंदे मातरम् रोड़रवीन्द्र रंगशाला के सामने |

·         उत्तरांचल : हरिद्वारदेहरादूननई टिहरीॠषिकेश |

·         पश्चिम बंगाल : कोलकाता

·         आंध्र प्रदेश : हैदराबाद

·         उड़ीसा : कटक

·         जम्मू-कश्मीर : कठुआ

·         विदेश में : मेटावन (यू. एस. ए.)

सम्पूर्ण जीवनी -   DOWNLOAD

दादागुरु स्वामी श्रीलीलाशाहजी महाराज जीवनी - DOWNLOAD

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