
भूमिका
इस ग्रन्थका नाम “गुणोंकी पिटारी इसलिये रक्खा है कि, इसमें मनुष्योंके ऊपर उपकार करनेवाले अनेक गुण भरे हैं, जिन गुणोंसे लोग बहुतसे फायदे उठा सकते हैं और भी बहुतले गुण इस ग्रन्थमें ऐसे भरे हैं जो कि, शरीरको पुष्ट और बली करनेवाले हैं और बहुतसे गुण इसमें ऐसे भी हैं कि लोग जीविकोपार्जन अच्छी तरहसे कर सकते हैं और बहुतते गुण खाने पीनेके कामवाले हैं, जिनको बनाकरके खाने पीनेका मजा मिलता है और बहुतसे गुण इसमें ऐसे भी हैं जो कि, जमींदारीके कामके वास्ते परमोपयोगी हैं। और बहुत से गुण अनेक रोगोंको भी दूर करनेवाले इसमें भरे हैं । इस ग्रन्थमें पांच अध्याय हैं । १ पहले अध्यायमें अनेक प्रकारकी arasोंके फूँकने और सेवन करनेके तरीके लिखे हैं । २ दूसरे व्यायमें सिंदूर वगैरहके बनानेके तरीके हैं । ३ तीसरे अध्यायमें साबुन और दूसरी अनेक चीजोंके बनानेके तरीके हैं। बाकीके अध्यायोंमें सब प्रकारके तरीके अंतीव उपयोगी हैं, वे इस ग्रन्थकी विषयानुक्रमणिका देखनेसे भलीभांति मालूम होंगे । इस ग्रन्थ में जो जो विषय हमने उद्धृत किये हैं वे अनेक ग्रंथोंके आधारसे बड़े परिश्रम के साथ प्राप्त किये हैं, जो साधारण मनुष्य भी अनुभव प्राप्त कर घर बैठे ही अनेक प्रकारके ज्ञान प्राप्त कर कृतार्थ होंगे और साथ ही मुझे भी अनुगृहीत कर सकेंगे ऐसी आशा है।
इस ग्रंथको मैंने परोपकारके वास्ते बड़े परिश्रमसे निर्माण कर जगद्विख्यात “श्रीवेंकटेश्वर” स्टीम् – मुद्रणालयाध्यक्ष-सेठ खेमराज श्रीकृष्णदास महोदयको पुनर्मुद्रणादि सर्व हक्क समेत अर्पण किया है ।
द० स्वामी श्रीपरमानन्दजी
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श्रीः
अथ गुणोंकी पिटारी
पहला अध्याय
मंगलाचरण
दोहा – बन्दों परमानंदको, जो अनन्त
निजरूप ॥
ध्यानधरत जिहि तम मिटे स्मृत हूँ ब्रह्मस्वरूप ॥ १ ॥
वर्णाश्रम जामें नहीं, नहीं जाति
श्ररु रूप ॥
जो जानै निज रूपकर
लं पद
परम
अनूप ॥ २ ॥
ऊंच नीच जामें नहीं,
नाहीं जानें
भेव ॥
पूरण सबमें एक जो, रहित त्रिविध परिछेद ॥ ३ ॥ हंसदास गुरुको प्रथम, प्रणव बारंबार ॥
नाम लेत जिह तम मिट, अघ होवत सब छार ॥ ४ ॥
चौपाई
परमानंद मम नाम पछानो, उदासीन मम पथको जानो ॥ रामदास मम गुरुको गुरु हैं, श्रात्मवित्त जो मुनिवर मुनि है ॥ ५ ॥ दोहा-परसराम मम नगर है, सिंधुनदी उस पार ॥
भारत मंडलके विषे, जानें सब संसार ॥ ६ ॥
प्रथम धातुयोंके शोधनेकी रीतिको लिखते हैं जो कि रांगा और शीशा वगैरह पिघलनेवाली धातुएं हैं उनकी इस रीतिसे शोधे- किसी बर्तनमें तेल या छांछ या गोमूत्र अथवा कांजीका पानी डालदेवे और उस बर्तन के मुखपर एक छिद्रवाला ढकना धरदेवे फिर धातुको पिघाल करके ढकनेमें छोडदेवे वह छिद्रद्वारा हांडीमें चलीजायगी जब कि ठंढी होजावे फिर उसी तरह करे तीन या सात वार करनेसे शुद्ध होजायगी, इसी तरह करनेसे धातु उछलती नहीं है और चांदी, सोना,
(२)
गुणोंकी पिटारी
तांबा, फौलाद, वगैरहके महीन पत्र बनवाकर उनको अग्निमें तपा करके तेल कांजी और छांछ तथा गोमूत्रमें सात २ बार बुतानेसे शुद्ध होजाते हैं और शिगरफ, हरताल, संखिया वगैरह यह सब उडनेवाली धातु हैं इनको तागासे बांधकर दूधमें लटका देनेसे नीचे आग जला- नेसे शुद्ध होजाती हैं | इनकी शोधनेकी रीतियां श्रागे लिखी जायंगी । जो धातु मारी जाय प्रथम उसकी परीक्षा करलेनी चाहिये। शिंगरफ संखिया, हरताल इनकी जरासी राखको जलते हुये अग्निके कोइलापर डाले अगर धूवां देवे तब जानलेना कि, कच्ची है। और रांगा, शीशा, तांबा वगैरह धातुओंकी जरासी राखको एक गिलासमें पानी भरकर उसपर छोडे फिर उस पर गेहूंके पांच सात दाने छोडे अगर वे दाने डूब जायें तब कच्ची, तरजायें तब पकी और पकी धातुका खाना गुणकारी होता है और कच्ची धातु नुकसान करती है । अब उन धातुनोंके मारने की विधिको लिखते हैं-जिनकी एक रत्ती या एक चावलभर राखके खानेसे शरीरकी सब बीमारियाँ दूर होजाती हैं। और घृत दूध भी खूब पचजाता है और दुर्बल शरीर भी बलवाला हो जाता है ।
प्रथम शिगरफकी विधिको दिखाते हैं
यह शिगरफ उपधातु है अग्निपर रखनेसे कोइला होजाता है अर्थात् जल करके धुवां होकरके उडजाता है फिर यह शिगरफ धातु दो प्रकारकी होती है, एक तो पारा और चांदी सोनेकी खानोंसे निकलती है वह खानी कहाती है और दूसरी पारा और गंधकके मिलनेसे बनाई जाती है, जो बनावटी कहाती है । खानी शिगरफ बहुत ही कम मिलती है और बनावटी ही सब जगहमें मिलती है, इसमें भी दो भेद होते हैं एक नर शिंगरफ कहाता है दूसरा मादा कहाता है जिसमें सुफेद मोटी २ लकीरें हों वह नर गिरफ कहा जाता है, और जिसमें सुफेद छोटी २ लकीरें हों वह मादा शिंगरफ कहा जाता है, रंग इसका लाल होता है, तोलमें भारी है, फूंकनेसे
Book Name | Gunon Ki Pitari Khemraj |
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