आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान | Aadhunik Hindi Katha Sahitya Aur Manovigyan | देवराज उपाध्याय – Devraj Upadhyay
“आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान” – एक अनोखा विश्लेषण
यह पुस्तक देवराज उपाध्याय जी द्वारा लिखी गई है, जो हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम है। पुस्तक में उन्होंने आधुनिक हिंदी कथा साहित्य को मनोविज्ञान के नजरिए से बेहद गहराई से विश्लेषण किया है। लेखक ने साहित्यिक कृतियों में पात्रों की मनोवैज्ञानिक स्थिति, उनके विचारों, प्रेरणाओं और व्यवहार को मनोविज्ञान के सिद्धांतों से जोड़कर समझाया है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है जो हिंदी साहित्य की गहनता से समझ करना चाहते हैं।
आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान: एक गहन विश्लेषण
यह लेख “आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान” पुस्तक का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसके लेखक प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार देवराज उपाध्याय हैं। इस पुस्तक में, उपाध्याय जी ने हिंदी साहित्य की आधुनिक रचनाओं को मनोविज्ञान के दायरे में रखकर उनके मनोवैज्ञानिक आयामों को उजागर किया है।
हिंदी साहित्य में मनोविज्ञान का प्रवेश
हिंदी साहित्य में मनोविज्ञान का प्रवेश, कहानी और उपन्यास लेखन के विकास के साथ-साथ हुआ है। साहित्यकारों ने अपने पात्रों को अधिक जीवंत बनाने के लिए उनके मनोविज्ञान को समझने का प्रयास किया। प्राचीन काल से ही, कवि और लेखक अपने काव्य और कथाओं में मानव मन की जटिलताओं को बयां करते रहे हैं।
लेकिन, आधुनिक युग में मनोविज्ञान का साहित्यिक रचनाओं में प्रयोग अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। 20वीं सदी के हिंदी साहित्यकारों, जैसे जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, और रघुवीर साहित्यकारों ने अपनी कृतियाओं में मानसिक विकारों, मनोवैज्ञानिक दुविधाओं, और मानव मन की विविध अवस्थाओं को बहुत सुंदरता से पेश किया है।
देवराज उपाध्याय का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
देवराज उपाध्याय की पुस्तक “आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान” इस प्रवृत्ति को आगे बढ़ाती है। उपाध्याय जी ने विभिन्न साहित्यकारों की कृतियाओं का गहन अध्ययन किया है और उनके पात्रों के मनोविज्ञान का विश्लेषण मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धांतों से किया है।
पुस्तक में उपाध्याय जी ने पात्रों के व्यवहार को समझने के लिए मनोविश्लेषण, व्यवहारवाद, मानवतावादी मनोविज्ञान, और अन्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग किया है। उन्होंने पात्रों के मनोविज्ञान को समझने के लिए उनकी बचपन, परिवार, समाज, और अन्य कारकों का अध्ययन किया है।
कुछ प्रमुख उदाहरण
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पुस्तक में उपाध्याय जी ने जयशंकर प्रसाद की “कामायनी” में कामदेव के मनोविज्ञान का विश्लेषण किया है। उन्होंने कामदेव के प्रभाव को समझने के लिए फ्रायड के मनोविश्लेषण के सिद्धांत का प्रयोग किया है।
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उपाध्याय जी ने प्रेमचंद की “गोदान” में होरी के मनोविज्ञान का अध्ययन किया है। उन्होंने होरी के दुख और पीड़ा को समझने के लिए व्यवहारवाद के सिद्धांत का प्रयोग किया है।
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उपाध्याय जी ने रघुवीर साहित्यकारों की “कहानी मुझे सुनाओ” में पात्रों के मनोविज्ञान को समझने के लिए मानवतावादी मनोविज्ञान का प्रयोग किया है। उन्होंने पात्रों के अस्तित्व और अनुभवों का विश्लेषण किया है।
निष्कर्ष
“आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान” एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो हिंदी साहित्य के प्रेमियों के लिए बहुत उपयोगी है। पुस्तक में देवराज उपाध्याय जी ने साहित्य और मनोविज्ञान के बीच का नाता स्थापित किया है और हिंदी साहित्य की समझ को नई ऊंचाइयों पर ले गई है।
संदर्भ:
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देवराज उपाध्याय. (2015). आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य और मनोविज्ञान. https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.443744
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Aadhunik Hindi Katha Sahitya Aur Manovigyan by Upadhyay,dr.devraj |
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Title: | Aadhunik Hindi Katha Sahitya Aur Manovigyan |
Author: | Upadhyay,dr.devraj |
Subjects: | Banasthali |
Language: | hin |
Collection: | digitallibraryindia, JaiGyan |
BooK PPI: | 300 |
Added Date: | 2017-01-18 15:37:23 |