भारतीय सहकारिता आन्दोलन | Bharatiya Sahakarita Andolan | अज्ञात – Unknown
भारतीय सहकारिता आन्दोलन: एक विस्तृत दृष्टिकोण
“भारतीय सहकारिता आन्दोलन” शंकर सहाय सक्सेना द्वारा लिखी गई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो भारत में सहकारिता आंदोलन के इतिहास और विकास को एक व्यापक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है। पुस्तक में, लेखक सहकारिता आंदोलन के मूल सिद्धांतों, इसकी चुनौतियों, और भविष्य के लिए संभावनाओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं।
सहकारिता का मूल: एक भारतीय परिप्रेक्ष्य
सहकारिता का मूल भारत के प्राचीन सामाजिक और आर्थिक ढांचे में पाया जा सकता है। गांवों में, लोगों ने सदियों से सहकारिता के सिद्धांतों पर आधारित समुदायों में रहते थे। इस पारंपरिक सहकारिता के उदाहरणों को “पंचायत”, “गाँव सभा”, “जात” और “कुटुम्ब” में देखा जा सकता है।
ब्रिटिश शासन के प्रभाव
ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था में गिरावट आई, जिसके कारण ग्रामीण आबादी को कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस अवधि में, सरकार ने “सहकारिता आन्दोलन” को ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास के लिए एक उपकरण के रूप में शुरू किया।
गांधी और सहकारिता
महात्मा गांधी का सहकारिता आंदोलन के प्रति दृढ़ विश्वास था। उनका मानना था कि सहकारिता गाँवों को स्वावलंबी बनाने और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का एक तरीका है। उन्होंने 1920 के दशक में “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” के माध्यम से सहकारिता आंदोलन को बढ़ावा दिया।
स्वतंत्रता के बाद सहकारिता
भारत की आजादी के बाद, सहकारिता आंदोलन को एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नीति के रूप में अपनाया गया। सरकार ने सहकारी समितियों के विकास के लिए कई नीतियाँ और कार्यक्रम शुरू किए।
सहकारिता के विभिन्न क्षेत्र
भारतीय सहकारिता आंदोलन ने कृषि, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आवास, और अन्य क्षेत्रों में सहकारी समितियों के विकास को प्रोत्साहित किया।
आज की सहकारिता
आज, भारतीय सहकारिता आंदोलन अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। इन चुनौतियों में प्रतिस्पर्धा, वित्तीय समस्याएं, गवर्नेंस, और प्रशिक्षण की कमी शामिल है। हालांकि, सहकारिता आंदोलन में अभी भी बहुत सी संभावनाएं है।
सहकारिता के भविष्य के लिए दिशानिर्देश
भारतीय सहकारिता आंदोलन को अधिक प्रभावी और सफल बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने चाहिए।
- मजबूत गवर्नेंस: सहकारी समितियों को मजबूत गवर्नेंस और पारदर्शिता कायम करने की जरूरत है।
- वित्तीय स्थिरता: सहकारी समितियों को वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रभावी वित्तीय प्रबंधन का अभ्यास करना चाहिए।
- प्रशिक्षण और शिक्षा: सहकारी समितियों के सदस्यों और प्रबंधकों को प्रशिक्षण और शिक्षा दिया जाना चाहिए ताकि वे समितियों का प्रभावी रूप से प्रबंधन कर सकें।
- नवोन्मेष और तकनीक: सहकारी समितियों को नवोन्मेष और तकनीक को अपनाने की जरूरत है ताकि वे बाजार में प्रतिस्पर्धी बन सकें।
निष्कर्ष
भारतीय सहकारिता आंदोलन भारत की आर्थिक और सामाजिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी सफलता के लिए यह जरूरी है कि सहकारी समितियों को आधुनिक बदलावों के साथ खुद को अनुकूलित करना होगा। सहकारिता आंदोलन में बहुत सी संभावनाएं है जो भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।
संदर्भ:
- भारत में सहकारिता आंदोलन का इतिहास
- सहकारिता आंदोलन की चुनौतियाँ
- सहकारिता के भविष्य के लिए दिशानिर्देश
Bharatiya Sahakarita Andolan by Saksena, Shankar Sahay |
|
Title: | Bharatiya Sahakarita Andolan |
Author: | Saksena, Shankar Sahay |
Subjects: | Banasthali |
Language: | hin |
Collection: | digitallibraryindia, JaiGyan |
BooK PPI: | 300 |
Added Date: | 2017-01-15 07:28:15 |